पश्चिमी यूपी: पहले चरण का मतदान, कौन मारेगा जाटलैंड में मैदान ?
11 अप्रैल को पश्चिमी यूपी में पहले चरण का मतदान किया जाएगा. यहां मुकाबला बीजेपी बनाम महागठबंधन होने की उम्मीद है. पहले चरण में पश्चिमी यूपी की जिन सीटों पर वोट डाले जा रहे हैं वो सभी सीटें बीजेपी के पास हैं. इस बार समीकरण बदले हैं और सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन बीजेपी को चुनौती दे रहा है.
लोकसभा चुनाव 2019: सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन क्या पहले चरण में जिन सीटों पर वोट डाले जा रहे हैं वहां क्लीन स्वीप करेगा ? ये सवाल अब अहम इसलिए हो गया है क्योंकि ‘लाठी, हाथी और 786’ नारे के साथ महागठंबधन चुनाव प्रचार में जुटा है.
पहले चरण का मतदान 11 अप्रैल को होना है जिसें देश की 91 लोकसभा सीटों पर वोट डाले जाएंगे. इन 91 सीटों में से 8 सीटें पश्चिमी यूपी की हैं जिनपर अभी बीजेपी का कब्जा है.
पश्चिमी यूपी की जिन 8 सीटों पर वोट डाले जाएंगे वहां पर जाट, गुर्जर, मुस्लिम और दलित मतदाता निर्णायक भूमिका में है. 2014 में बीजेपी ने इन्हीं का वोट हासिल करके इस इलाके में क्लीन स्वीप किया था.
महागठबंधन का बीजेपी से मुकाबला
‘जाटलैंड’ कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-आरएलडी की एकता पिछले साल कैराना सीट पर हुए उप-चुनावों में देखी गई थी. कैराना के नतीजे ही महागठबंधन उत्साहित कर रहे हैं. उपचुनाव में यहां से सपा की तबस्सुम हसन को आरएलडी ने अपने चिह्न पर चुनाव लड़ाया और उन्होंने दिवंगत केंद्रीय मंत्री हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को 45 हज़ार वोटों से हराया.
सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन मिलकर जो जातीय समीकरण बनाता है उससे बीजेपी की मुश्किलें निश्चित तौर पर बढ़ेंगी. क्योंकि उपचुनाव में गठबंधन ने फूलपुर, नूरपुर, कैराना और गोरखपुर सीटों पर भी जीत दर्ज की थी. महागठबंधन ने पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जीत दर्ज करके ये स्पष्ट कर दिया कि समीकरण महागठंबनध के पक्ष मे हैं.
मुस्लिम और जाटों की भूमिका
पश्चिमी यूपी में जाट, गुर्जर, मुस्लिम और जाटव को मिलाकर जो वोटबैंक बनता है वो आसानी से बीजेपी पर भारी पड़ सकता है. चुंकि पश्चिमी यूपी में जातियां ही केंद्र में होती हैं और इस बार तो गन्ना किसानों के भुगतान और यूरिया जैसे मुद्दे भी सत्ताधारी दल को मुश्किल में डाल सकते हैं.
हालांकि इन मुद्दों के इतर पश्चिमी यूपी में जातीय समीकरण हमेशा हावी रहा है. 2014 में सांप्रदायिक और जातिगत मुद्दों के दम पर ही बीजेपी जीती थी. यहां की चुनावी फिजा का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि सहारनपुर की रैली में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कांग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद को चरमपंथी मसूद अज़हर का दामाद तक कह दिया था.
पहले चरण में जिन आठ सीटों पर वोट डाले जाएंगे वहां पर बीजेपी अपनी बिसात बिझा रही है. हालांकि यहां महागठबंधन को जातिगत समीकरणों के कारण बढ़त हासिल है लेकिन ग़ाज़ियाबाद, गौतम बुद्ध नगर और सहारनपुर जैसी तीन सीटों पर बीजेपी मजबूत है. सिलसिलेवार तरीके से देखें तो यहां मुकाबला कांटे का है लेकिन बढ़त महागठबंधन के पास है.
मेरठ लोकसभा सीट
यहां 2019 की लड़ाई महागठबंधन के लिए आसान नहीं है. 2014 के चुनाव में राजेंद्र अग्रवाल ने बसपा के मोहम्मद शाहिद अख़लाक को ढाई लाख वोटों से हराया था. इस बार बसपा के हाजी मोहम्मद याक़ूब, भाजपा के वर्तमान सांसद राजेंद्र अग्रवाल और कांग्रेस के हरेंद्र अग्रवाल मेरठ सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.
बागपत लोकसभा सीट
2014 में यहां से केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह बीजेपी की टिकट पर यहां से जीते थे. इस भी बीजेपी ने उन्हीं को मैदान में उतारा है. आरएलडी की ओर से इस बार जयंत चौधरी महागठबंधन के उम्मीदवार हैं. ये अजित सिंह की पारंपरिक सीट रही है लेकिन 2014 में वो बीजेपी से हार गए थे. इस बार यहां कांग्रेस ने उनके ख़िलाफ़ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है. इस कारण मुख्य मुक़ाबला सत्यपाल सिंह और जयंत चौधरी के बीच है.
गाजियाबाद लोकसभा सीट
यहां शहरी मतदाता वाली सीट पर मुकाबला है और बीजेपी इसमें बढ़त बनाए हुए है. इस क्षेत्र की अधिकतर आबादी शहरों में रहती है जिनमें सवर्ण अधिक है जो पारंपरिक रूप से बीजेपी का वोटर है. यहां महागठबंधन से सपा के सुरेश बंसल, बीजेपी की ओर से वर्तमान सांसद वीके सिंह और कांग्रेस की ओर से डॉली शर्मा इस सीट पर मुख्य उम्मीदवार हैं.
गौतम बुद्ध नगर सीट
बीजेपी ने यहां एक बार फिर से केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा को उम्मीदवार बनाया है. महागठबंधन की ओर से बसपा के सतबीर नागर और कांग्रेस के अरविंद सिंह चौहान भी इस सीट पर अपनी दावेदारी ठोंक रहे हैं. 2014 में सपा के नरेंद्र भाटी को महेश शर्मा ने करीब दो लाख 80 हज़ार वोटों से हराया था. इस बार भले ही महेश शर्मा के खिलाफ लोगों में नाराजगी है लेकिन उन्हें हराना महागठबंधन के लिए आसान नहीं होगा
सहारनपुर लोकसभा सीट
बीजेपी के राघव लखनपाल यहां से टिकट मिला है. 2014 में भी वो जीते थे. बसपा की ओर से हाजी फ़ज़लुर्रहमान और कांग्रेस से इमरान मसूद उम्मीदवार हैं. यहां पर कांग्रेस और महागठबंधन के उम्मीदवार मुस्लिम हैं, 2014 में इमरान मसूद को चार लाख वोट मिले थे जो अब महागठबंधन के साथ बंटेगा.
कैराना लोकसभा सीट
2018 में कैराना सीट पर हुए उप-चुनावों में आरएलडी की तबस्सुम हसन ने जीत दर्ज की थी. अब तबस्सुम सपा की ओर से महागठबंधन की उम्मीदवार हैं. बीजेपी भी यहां पर कच्ची गोलियां नहीं खेलना चाहती और बीजेपी ने यहां से प्रदीप चौधरी को टिकट दिया है. कांग्रेस की ओर से हरेंदर मलिक उम्मीदवार हैं. यहां इस बार मुकाबला त्रिकोणीय है.
मुज़फ़्फ़रनगर सीट
2013 के मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के अभियुक्त रहे वर्तमान सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान इस सीट से फिर एक बार बीजेपी के उम्मीदवार हैं. संजीव बालियान का यहां मुकाबला है आरएलडी प्रमुख और महागठबंधन के उम्मीदवार अजित सिंह से जाहिर है मुकाबला रोचक होगा. कांग्रेस ने यहां से कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है. यहां लड़ाई जाट बनाम जाट है. 30 फीसदी मुस्लिम जिधर जाएगा जीतेगा वही.
बिजनौर लोकसभा सीट
यहां मुस्लिम वोट ज्यादा है और ये वोट महागठंबन के पास जागा. महागठबंधन की ओर से बसपा के मलूक नागर यहां से उम्मीदवार हैं. भाजपा ने वर्तमान सांसद कुंवर भारतेंद्र सिंह को फिर एक बार अपना उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस की ओर से नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी यहां से लड़ रहे हैं. इस वजह यहां मुकाबला रोचक हो गया है. देखना होगा कि मुस्लिम वोट किसके खाते में जाता है.