मुद्रा योजना से मिले रोजगार के डेटा में गड़बड़, दोबारा होगी जांच

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लोकसभा चुनाव में विपक्ष रोजगार के मुद्दे पर मोदी सरकार को घेर रहा है. विपक्ष का कहना है कि रोजगार देने में मोदी सरकार फेल रही है. ऐसे में मोदी सरकार मुद्रा योजना का जिक्र करते हुए कह रही है कि इस योजना के लिए जरिए करोड़ों रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं. लेकिन अब खबर आ रही है कि मुद्रा योजना से मिले रोजगार के आंकड़ों में गड़बड़ हुई है.

द टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक मुद्रा योजना से मिले रोजगार के आंकड़े सरकार को परेशान कर रहे हैं. मुद्रा योजना ने करोड़ों रुपये खर्च किए हैं. लेकिन 1.12 करोड़ अतिरिक्त नौकरियां पैदा होने का आकलन हुआ है जो उम्मीद से काफी कम है. एक्सपर्ट को शक है कि बहुत सारे कामगारों ने कर्ज तो ले लिया, लेकिन इससे नए रोजगार के अवसर नहीं पैदा हुए. अब केंद्र सरकार की एजेंसी इस डेटा की दोबारा जांच करेगा.

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आपको बता दें कि 1.12 करोड़ अतिरिक्त नौकरियों का जो डेटा सामने आया है वो लेबर ब्यूरो का आंकड़ा है. लेबर ब्यूरो ने पूरे देश में करीब 96000 लोगों से बात करके ये डेटा जमा किया है. लेबर ब्यूरो को मुद्रा योजना के लाभांवितों का सर्वे करने कहा गया था ताकि उनकी कारोबारी गतिविधियों से उत्पन्न हुई नौकरियों के बारे में पता लगाया जा सके. 9 महीने तक सर्वे चला और जब इसकी रिपोर्ट आई तो एक्सपर्ट कमेटी ने लेबर ब्यूरो से इन आंकड़ों की दोबारा जांच करने के लिए कहा है. कमिटी ने रिपोर्ट को जारी करने की मंजूरी नहीं दी है. अब कहा जा रहा है कि ये रिपोर्ट चुनाव बाद आ सकती है.

डेटा में कहां हुई गड़बड़ ?

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत 3 साल में 1.12 करोड़ अतिरिक्त नौकरियों पैदा करने का आकलन किया गया है. लेकिन कई एक्सपर्ट्स को शक है कि बिना जांच किए केंद्र सरकार नौकरियों से जुड़े इस डेटा को जारी नहीं करेगी. इसकी वजह यह है कि आंकड़े सरकार के उम्मीद के मुताबिक नहीं हैं. इस साल 1 फरवरी तक मुद्रा योजना के तहत 7.59 लाख करोड़ की रकम खर्च की गई है. एक्सपर्ट की मानें तो इतनी ज्यादा रकम खर्च होने के बाद 1.12 करोड़ अतिरिक्त नौकरियां पैदा होने का आकलन उम्मीद से काफी कम है

मुद्रा यानी माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी लिमिटेड एक नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी है जो लघु उद्योगों की मदद के लिए बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों के जरिए कर्ज के तौर पर आर्थिक मदद देती है. यह कर्ज नए या पहले से चल रहे आय संबंधित गतिविधियों की मदद के लिए होता है. कर्ज की रकम 10 लाख रुपये तक हो सकती है, लेकिन कहा जा रहा है कि बहुत सारे लाभांवितों ने एक बार में 50 हजार रुपये ही लिए. मोदी सरकार इस योजना को रोजगार की संभावनाएं पैदा करने के जरिए के तौर पर प्रचारित करती रही है लेकिन हकीकत ये है कि मुद्रा योजना के तहत जो लोन बांटे गए वो उसमें करीब 90 फीसदी शिशु लोन है.

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