दिल्ली के चुनावी समर में जो जीता वही बनेगा सिकंदर !

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देश की राजधानी दिल्ली, दिल्ली जो दिलवालों की है और दिल्ली जो सियासत वालों की है. दिल्ली में देश का दिल है और इस दिल में रहते हैं सियासतदां. दिल्ली की बात इसलिए क्योंकि यहां लोकसभा की सात सीटें और यहां जो जीतता है उसका होता है देश.

इतिहास बता है कि 1912 में जब अंग्रेजों ने कलकत्ता के स्थान पर राजधानी बनाने का फैसला किया तब दिल्ली की आबादी सिर्फ 2,32,837 थी लेकिन आज के आकंड़ा दो करोड़ को पार कर गया है. आजादी के बाद जब देश में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए थे तब यहां की दोनों सीटों पर कांग्रेस जीती थी. बाहरी दिल्ली की सीट पर स्वाधीनता सेनानी सीके नायर जीते और नई दिल्ली सीट पर सुचेता कृपलानी चुनाव जीतीं थीं. सुचेता कृपलानी बाद में यूपी की राजनीति में सक्रिय हो गईं लेकिन दिल्ली की आबादी और सीटों की संख्या बढ़ती गई.

आज दिल्ली में सात लोकसभा की सीटें हैं. 1967 में ही यहां सात सीटें हो गई थीं और 2008 में जब नया परिसीमन आया तब भी यहां सीटों की संख्या को सात ही रखते हुए लोकसभा सीटों की आबादी बराबर करने की कोशिश की गई थी. यहां सात लोकसभा सीटों में हर सीट में दस दस विधानसभा सीटें आती है.

  • 1952 में लोकसभा की दो ही सीटें थीं
  • 1957 में चांदनी चौक और सदर बाजार सीटें बनीं
  • 1962 में करोलबाग आरक्षित सीट बनी
  • 1967 में सीटों की संख्या सात हो गई
  • दक्षिणी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली नाम की दो सीटें बनी

दिल्ली में पाकिस्तान से विस्थापित होकर पंजाब, सिंध और कुछ बंगाल मूल के लोग बसे थए और उनकी आबादी यहां निर्णायक भूमिका में रहती है. दिल्ली में उत्तराखंड के लोग भी अच्छी खासी तादाद में हैं.

80 के दशक में जब यहां एशियाड खेलों का आयोजन किया गया था तब यहां निर्माण कार्यो को व्यापक रफ्तार दी गई. कल कारखाने खुले और रोजगार के नए अवसर पैदा हुए. उसी दौरान बिहार, मध्य प्रदेश, ओड़िशा, पूर्वी उत्तर प्रदेश जैसे इलाकों से लोग यहां आए और बस गए. यहां की राजनीति की बात करें तो कहते हैं कि यहां जो नेता चमकता है वो देश पर राज करता है. फिर चांहे वो नई दिल्ली सीट से दो बार सुचेता कृपलानी हों, दो बार सांसद रहे अटल बिहारी वाजपेयी हों, दो बार सांसद रहे लालकृष्ण आडवाणी हों या फिर दो बार सांसद रहे दिल्ली के उप राज्यपाल रहे पूर्व नौकरशाह जग मोहन सांसद हों.

  1. चांदनी चौक सीट से जनसंघ के बड़े नेता रहे वसंत राव ओक को कांग्रेस के दिग्गज राधारमण ने पराजित किया
  2. स्वाधीनती सेनानी सुभद्रा जोशी चांदनी चौक से 1971 में चुनाव जीती और 1977 में पराजित हो गई
  3. दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश सदर से एक बार और बाहरी दिल्ली से चार बार सांसद बने
  4. भाजपा के दिग्गज कृष्णलाल शर्मा दो बार बाहरी दिल्ली से सांसद बने
  5. दिग्गज नेता और सत्ता के शीर्ष पर रहे जगजीवन राम की पुत्री आरक्षित सीट करोल बाग से दो बार संससद रहीं
  6. नई दिल्ली की तरह ही दक्षिणी दिल्ली सीट 2008 के परिसीमन से पहले वीआईपी सीट हुआ करती थी क्योंकि इस सीट से सुषमा स्वराज्य दो बार चुनाव जीतीं.
  7. भाजपा के मदन लाल खुराना और विजय कुमार मल्होत्रा दक्षिणी दिल्ली और सदर से सांसद रहे
  8. दिल्ली के दूसरे मुख्यमंत्री साहिब सिंह बाहरी दिल्ली से सांसद रहे
  9. कांग्रेस के एचकेएल कपूर पूर्वी दिल्ली से, सज्जन कुमार बाहरी दिल्ली से तो जगदीश टाइटलर सदर और जय प्रकाश अग्रवाल चांदनी चौक से सांसद रहे
  10. क्रिकेटर चेतन चौहान पूर्वी दिल्ली से पराजित हुए
  11. जनता पार्टी के टिकट पर सिकंदर बख्य चांदनी चौक से सांसद रहे
  12. भाजपा के विजय गोयल सदर और चांदनी चौक दोनों ही सीटों से सांसद रहे
  13. स्मृति ईरानी चांदनी चौक से पराजित हुर्इं तो कांग्रेस के कपिल सिब्बल विजयी रहे
  14. 1984 में दक्षिणी दिल्ली से संसद रहे ललित माकन की आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी
  15. 1985 में उस सीट से उप चुनाव में कांग्रेस दिग्गज अर्जुन सिंह चुनाव जीते और कांग्रेस के इतिहास में पहली बार उपाध्यक्ष बने

दिल्ली में लोकसभा की सात सीटें हैं जिनके नाम 2008 के परिसीमन के बाद बदल गए थे. इन सात सीटों के नाम आपको बता दें. नई दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली, चांदनी चौक, पूर्वी दिल्ली, उत्तर पूर्व दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली और एससी आरक्षित उत्तर पश्चिम दिल्ली हैं.

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