उत्तराखंड में इन सीटों पर है नजर, कौन बनेगा पहाड़ का किंग?

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The eyes are on these seats in Uttarakhand, victory and defeat will decide the political future of this hill state

The eyes are on these seats in Uttarakhand, victory and defeat will decide the political future of this hill state

उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों के लिए मतदान खत्म हो चुका है. ऐसा पहली बार हो रहा है कि मुख्यमंत्री पद के लिए तीन उम्मीदवार स्पष्ट रूप से मैदान में हैं. इस बार भी मुख्य मुक़ाबला सत्तारूढ़ बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही नज़र आ रहा है, लेकिन आम आदमी पार्टी (आप) तीसरी शक्ति के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही है.

उत्तराखंड में इस बार हरदा का जादू चलने की उम्मीद कांग्रेस कर रही है लेकिन वोटरों के रूख को देखकर जीत किसकी होगी इसका आंकलन करना थोड़ा मुश्किल है. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 70 में से 57 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत की सरकार बनाई थी हालांकि राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि इस बार मुक़ाबला कड़ा है. और जीत किसी भी खेमे में जा सकती है. यहां आपको बताने जा रहे हैं उन सीटों के बारे में जिनपर सभी की निगाह है.

कोटद्वार

कोटद्वार सीट कई मायने में महत्वपूर्ण है. इसी सीट से हार की वजह से 2012 में बीजेपी सत्ता गंवा बैठी थी. 2012 में तीसरी विधानसभा के गठन के लिए हुए चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह नेगी से चुनाव हार गए थे. उस चुनाव में कांग्रेस 32 सीट के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी और बीजेपी एक सीट से पिछड़ गई. अगर खंडूरी जीत जाते तो बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी होती और फिर सरकार बनाने के लिए उसे ही मौक़ा मिलता. कोटद्वार सीट एक बार फिर 2012 की तरह निर्णायक साबित हो सकती है. यहां से इस बार जनरल (रिटायर्ड) बीसी खंडूरी की बेटी और यमकेश्वर की विधायक ऋतु खंडूरी बीजेपी के टिकट पर मैदान में हैं. उनके सामने हैं खंडूरी को 2012 में हराने वाले कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह नेगी. हालांकि शुरुआत में ऋतु खंडूरी कमज़ोर नज़र आ रही थीं, लेकिन शनिवार, 12 फ़रवरी को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रैली के बाद स्थितियां कुछ बदली हैं. दरअसल ऋतु खंडूरी 2017 में गढ़वाल की ही यमकेश्वर सीट से विधायक बनी थीं. इस बार पार्टी ने यमकेश्वर से उन्हें टिकट नहीं दिया. कोटद्वार से मौजूदा विधायक हरक सिंह रावत के पार्टी से निष्कासन के बाद अंतिम समय में पार्टी ने ऋतु खंडूरी को कोटद्वार से चुनाव मैदान में उतारा. दूसरी और सुरेंद्र सिंह नेगी पिछले पांच साल से चुनाव की तैयारियों में लगे हैं और उनकी ज़मीन पर पकड़ मजबूत है.

लैंसडाउन

पौड़ी गढ़वाल की लैंसडाउन सीट भी इस बार सुर्ख़ियों में है. यहां बीजेपी के दो बार के विधायक महंत दिलीप रावत को उत्तराखंड की राजनीति के सबसे माहिर खिलाड़ियों और सबसे चर्चित नेताओं में से एक हरक सिंह रावत की पुत्रवधू और पूर्व ब्यूटी क्वीन अनुकृति गुसाईं चुनौती दे रही हैं. कोटद्वार से लगती इस सीट का महत्व दरअसल हरक सिंह रावत की वजह से बढ़ गया है. तीन दशक से भी ज़्यादा समय से चुनावी राजनीति में सक्रिय हरक सिंह रावत सिर्फ़ एक विधानसभा चुनाव हारे हैं. उनके समर्थक मानते रहे हैं कि उनके पास से कैबिनेट मंत्री को अलॉट होने वाला बंगला नहीं छिन सकता. 2002, 2012 और 2017 में तो वह सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे ही, 2007 में बतौर नेता प्रतिपक्ष उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल रहा. राज्य बनने के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि वह चुनाव मैदान में नहीं हैं. अपनी पुत्रवधु अनुकृति गुसाईं को चुनाव लड़वाने के लिए वह बीजेपी में अड़ गए थे और अब तक छह बार पार्टी बदल चुके हरक सिंह रावत को पहली बार निष्कासित किया गया.

कांग्रेस में आने के लिए उन्हें सार्वजनिक रूप से माफ़ी भी मांगनी पड़ी और जिस हनक के लिए हरक सिंह रावत जाने जाते हैं, वह ख़त्म होती भी दिखी. अब उनका सारा राजनीतिक कौशल अनुकृति गुसाईं को विधानसभा भेजने के ही काम आना है. बीजेपी से अनुकृति गुसाईं के टिकट की मांग पर मौजूदा विधायक महंत दिलीप रावत ने खुलकर नाराज़गी जताई थी और अब अनुकृति उन्हीं के ख़िलाफ़ चुनाव मैदान में हैं. लैंसडाउन विधानसभा से अनुकृति गुसाईं की हार या जीत उनके राजनीतिक करियर की दिशा तो तय करेगी ही,  हरक सिंह रावत और उनके जैसी राजनीति के भविष्य का भी फ़ैसला करेगी.

हरिद्वार ग्रामीण

हरिद्वार ग्रामीण सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के चुनाव अभियान का नेतृत्व कर रहे हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत दो बार के विधायक और प्रदेश के कैबिनेट मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद को चुनौती दे रही हैं. 2017 में मुख्यमंत्री रहते हुए हरीश रावत इस सीट से भी चुनाव लड़े थे और स्वामी यतीश्वरानंद ने उन्हें शिकस्त दी थी. यह कहा जा रहा है कि अनुपमा रावत अपने पिता की हार का बदला लेने के लिए मैदान में हैं. बीएसपी ने एक मुसलमान उम्मीदवार को मैदान में उतारा है जिससे मुसलमानों का वोट बंटने का अंदेशा है. इससे सीधा नुक़सान कांग्रेस को होगा. हालांकि धर्मेंद्र चौधरी कहते हैं कि इस बार ज़्यादातर मुसलमान वोटर्स बीजेपी को हराने के लिए वोट करने का मन बना चुके हैं और इसलिए संभवतः इस बार मुस्लिम वोट न बंटें. हरिद्वार ग्रामीण से अगर अनुपमा रावत चुनाव जीत जाती हैं तो हरीश रावत की राजनैतिक उत्तराधिकारी के तौर पर उत्तराखंड की राजनीति में स्थापित हो जाएंगी. वरना इस बार के कड़े मुक़ाबले में उनकी हार पार्टी को महंगी पड़ सकती है.

गदरपुर

गदरपुर से उत्तराखंड के स्कूली शिक्षा मंत्री अरविंड पांडे चुनाव मैदान में हैं. इस सीट पर उन्हें कांग्रेस के प्रेमानंद महाजन और आम आदमी पार्टी के जरनैल सिंह काली से चुनौती मिल रही है. उत्तराखंड के कई चुनावी मिथकों में से एक यह भी है कि राज्य का शिक्षा मंत्री रहा नेता कभी अगला चुनाव नहीं जीत पाया है. अरविंद पांडे के सामने इस मिथक को तोड़ने की भी चुनौती है. महाजन क्षेत्र में अच्छी-खासी तादाद में मौजूद बंगाली समुदाय से भी आते हैं. इसके अलावा गदरपुर उन सीटों में शामिल है जिन पर किसान आंदोलन का अच्छा असर है. गदरपुर सीट पर आम आदमी प्रत्याशी जनरैल सिंह काली भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं और माना जा रहा है कि वह भी अच्छे खासे वोट बटोर सकते हैं. गदरपुर सीट पर मौजूदा शिक्षा मंत्री की हार या जीत एक चुनावी मिथक को पुष्ट करेगा या तोड़ेगा. इसके अलावा किसान आंदोलन के उत्तराखंड की चंद सीटों पर असर की भी इस चुनाव परिणाम से पड़ताल हो जाएगी.

सल्ट

अल्मोड़ा की सल्ट सीट कांग्रेस की राजनीति और ख़ासकर हरीश रावत की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव डालने वाली सीट है. कांग्रेस ने काफ़ी उठापटक के बाद सल्ट से इस बार पार्टी के चार कार्यकारी अध्यक्षों में से एक रणजीत रावत को चुनाव मैदान में उतारा है. राजनीतिक हलकों में यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि किसी समय हरीश रावत के ख़ासमखास रहे रणजीत रावत अब उनके धुर विरोधी हैं. रणजीत रावत 2007 में सल्ट से विधायक बने थे, लेकिन 2012 और 2017 में बीजेपी के सुरेंद्र सिंह जीना के हाथों उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था. इसके बाद उन्होंने रामनगर का रुख़ किया और 2022 का चुनाव लड़ने के लिए वह पिछले पांच साल से रामनगर में सक्रिय थे. कांग्रेस ने अपनी दूसरी लिस्ट जारी की तो रामनगर का टिकट हरीश रावत को दे दिया गया. हरीश रावत रामनगर से चुनाव लड़ने की तैयारी करने लगे और रणजीत रावत खुलकर नाराज़गी जताते हुए रामनगर से ही निर्दलीय उतरने की. इसके बाद कांग्रेस ने संशोधित लिस्ट जारी की और हरीश रावत को लालकुआं से और रणजीत रावत को उनकी पुरानी सीट सल्ट से चुनाव मैदान में उतार दिया गया.

सल्ट से रणजीत रावत को दो बार हराकर विधायक बने सुरेंद्र सिंह जीना का 2020 में कोरोना से निधन हो गया. उनकी जगह उनके भाई महेश जीना विधायक बने. इस बार वे फिर से बीजेपी के उम्मीदवार हैं. सल्ट से रणजीत रावत को दो बार हराकर विधायक बने सुरेंद्र सिंह जीना का 2020 में कोरोना की वजह से निधन हो गया था. बीजेपी ने उनकी जगह उनके भाई महेश जीना को टिकट दिया था, जो अब विधायक हैं और पार्टी के उम्मीदवार भी. अगर रणजीत रावत सल्ट से जीत जाते हैं तो कांग्रेस में वह हरीश रावत के एक खुले विरोधी के रूप में मौजूद रहेंगे, जिनके आसपास असंतुष्ट जगह तलाश सकते हैं. अगर रणजीत रावत यह चुनाव हार जाते हैं तो राजनीतिक रूप से हरीश रावत म़जबूत हो जाएंगे और उनका विरोध करने वाले कोई भी क़दम उठाने से पहले कई बार सोचेंगे.

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