रायबरेली सदर विधानसभा सीट से कौन जीत रहा है चुनाव?

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रायबरेली सदर विधानसभा सीट पर इस बार चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है. कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुई अदिति सिंह के सामने इस बार चुनाव जीतने की बड़ी चुनौती है. इस सीट पर 1993 के बाद से एक ही परिवार का कब्जा रहा है लेकिन इस बार समीकरण बदले हुए हैं.

रायबरेली सदर विधानसभा सीट कांग्रेस की प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई है और वह हर हालत में यहां पर चुनाव जीतना चाहेगी. यहां इस बार बीजेपी की टिकट से चुनाव लड़ रहीं अदिति सिंह इस बार विधानसभा चुनाव में अपने पिता की ‘समृद्ध विरासत’ को केंद्र में रखकर चुनाव प्रचार कर रही हैं. रायबरेली सदर विधानसभा सीट पर तीन दशक से एक ही परिवार का कब्जा रहा है। भले ही वह कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में हो, या पीस पार्टी, भाजपा के टिकट पर हो या निर्दलीय उम्मीवार के तौर पर।

यह विधानसभा सीट कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है। यह परिवार है पांच बार के विधायक, दिवंगत अखिलेश सिंह और उनकी बेटी अदिति सिंह। इन दोनों का कांग्रेस और गांधी परिवार से बेहतर रिश्ता रहा है। कांग्रेस के हाईप्रोफाइल गढ़ की यह सीट अंतिम बार इस परिवार के बाहर 1991 में गई थी, जब जनता दल और जनता पार्टी शीर्ष दावेदार थे और भारत में अधिक उदार अर्थव्यवस्था शुरू नहीं हुई थी।

आदित्य सिंह 2017 में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर निर्वाचित हुई थीं, लेकिन 2021 में कांग्रेस पर हमले करते हुए भाजपा में शामिल हो गई थीं। दोनों परिवारों के बीच इंदिरा गांधी के जमाने से ही पारिवारिक रिश्ते थे. अदिति के पिता अखिलेश सिंह की मृत्यु 2019 में कैंसर के कारण हो गई थी। समाजवादी पार्टी ने इस सीट से जमीनी कार्यकर्ता आरपी यादव को चुनाव मैदान में उतारा है।

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सपा ने अखिलेश सिंह के कार्यकाल को ‘दागी और अपराध में लिप्त विरासत’ करार दिया और दावा किया कि वह मौजूदा चुनाव में रायबरेली सदर सीट को इस परिवार के चंगुल से छीन लेगी। उधर, कांग्रेस ने भी अदिति सिंह को धोखेबाज करार देते हुए उनके खिलाफ चौतरफा अभियान शुरू कर दिया है।

अखिलेश सिंह ने 1993 में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ा था और विजयी रहे थे और 1996 और 2002 में भी विजयश्री उनके गले लगी थी, लेकिन उसके बाद कांग्रेस से उनके संबंध खराब हो गए थे। अखिलेश सिंह को कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया था, लेकिन 2007 में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में यह सीट अपनी झोली में डाल ली थी। तब उन्होंने 76,603 मतों से कांग्रेस उम्मीदवार रुद्र प्रताप सिंह को हराया था।

अगले (2012 के) विधानसभा चुनावों में उन्होंने पीस पार्टी के टिकट पर 75,588 मतों से अपना परचम लहराया था और सपा के राम प्रताप यादव को हराया था। तीन लाख 64 हजार मतदाताओं वाले इस विधानसभा क्षेत्र में इस बार समीकरण बदले हुए हैं और यहां पर देखना महत्वपूर्ण होगा कि कांग्रेस अपनी प्रतिष्ठा बचा पाती है या फिर अदिति सिंह अपने पिता की विरासत को संभाल पाएंगी.

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