कौन दे रहा है राजनीतिक पार्टियों का अकूत पैसा ?

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राजनीतिक पार्टियों के पास अकूत पैसा है लेकिन यह पैसा कहां से आया इसके स्रोत अज्ञात हैं. एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि राजनीतिक पार्टियों ने फंडिंग के अधिकांश स्त्रोतों को ‘अज्ञात’ बताया है. 

भारत के अलावा दुनिया में कोई भी ऐसा लोकतंत्र नहीं है जहां राजनीतिक पार्टियों को इतना अकूत पैसा मिलता हो और उसके स्रोत की जानकारी ना हो. दूसरे किसी भी बड़े लोकतंत्र में फंडिंग के स्त्रोतों को इस तरह छुपाने की अनुमति नहीं है.

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट में बताया गया है की पार्टियों के आय कर रिटर्न्स और चुनाव आयोग को दी गई चंदे की जानकारी में कितना अंतर है. चुनावी चंदे से जुड़ी बातों की समीक्षा कर एडीआर इस नतीजे पर पहुंची कि पार्टियों की फंडिंग के अधिकांश स्त्रोत अज्ञात हैं.

एडीआर की रिपोर्ट कहती है कि वित्त वर्ष 2019-20 में क्षेत्रीय पार्टियों ने अज्ञात स्त्रोतों से 445.774 करोड़ रुपए कमाए जो उनकी कुल कमाई का 55.50 प्रतिशत है. इन पैसों में से भी 95.6 प्रतिशत चुनावी बॉन्ड से आए, जो यह दिखाता है कि ये बॉन्ड अज्ञात स्त्रोतों से कमाई का सबसे बड़ा जरिया बने हुए हैं.

क्या हैं ये ‘अज्ञात’ स्त्रोत

यकीनन आप सोच रहे होंगे कि अज्ञात स्रोत क्या है तो आपको बता दें कि एडीआर ने अपने इस अध्ययन के लिए ज्ञात स्त्रोत उन्हें बताया है जिनकी जानकारी पार्टियों द्वारा चुनाव आयोग को दी गई है. इनमें 20,000 रुपए से ज्यादा मूल्य का चंदा, चल और अचल संपत्ति की बिक्री, सदस्यता शुल्क, प्रतिनिधि शुल्क, बैंक से मिला ब्याज, प्रकाशित पुस्तिकाओं की बिक्री इत्यादि.

अज्ञात स्त्रोत का मतलब 20,000 रुपए से कम का चंदा जिसका ऑडिट रिपोर्ट में जिक्र तो है लेकिन उसके स्रोत के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है. इनमें चुनावी बॉन्ड से मिला चंदा, कूपनों की बिक्री, राहत कोष, फुटकर आय, स्वेच्छापूर्वक दिया गया चंदा, बैठकों/मोर्चों में मिला चंदा इत्यादि. इन तरीकों से मिले चंदे की विस्तृत जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं होती है.

मौजूदा व्यवस्था के तहत पार्टियों को 20,000 रुपयों से कम मूल्य का चंदा देने वाले व्यक्तियों या संगठनों का नाम ना बताने की छूट है. नतीजतन, उन्हें बहुत अधिक मात्रा में ऐसा चंदा मिलता है जिसे देने वाले का पता नहीं लगाया जा सकता. आरटीआई के तहत यह जानकारी सिर्फ राष्ट्रीय पार्टियों से मांगी जा सकती है, लेकिन उन पार्टियों ने भी केंद्रीय सूचना आयोग के इस आदेश का पालन नहीं किया है.

नियम नहीं मानती पार्टियां

अज्ञात स्त्रोतों से सबसे ज्यादा कमाई करने वाली पार्टियों में टीआरएस (89.158 करोड़ रुपए), टीडीपी (81.694 करोड़), वाईएसआर-सी (74.75 करोड़), बीजेडी (50.586 करोड़) और डीएमके (45.50 करोड़) शामिल हैं. इस रिपोर्ट के लिए एडीआर ने 53 ऐसी क्षेत्रीय पार्टियों का अध्ययन किया था जिन्हें चुनाव आयोग ने मान्यता दी हुई है.

लेकिन इनमें से सिर्फ 28 पार्टियों ने अपनी सालाना ऑडिट रिपोर्ट और चंदे की जानकारी की रिपोर्ट दर्ज की हैं. 16 पार्टियों ने दोनों में से कोई भी रिपोर्ट पेश नहीं की है और नौ पार्टियों की दर्ज की हुई रिपोर्टें चुनाव आयोग की वेबसाइट पर दिखाई नहीं दे रही हैं. यह दिखाता है कि पार्टियां चुनाव आयोग की अपेक्षाओं को भी पूरा नहीं करती हैं.

एडीआर के मुताबिक पैसों को लेकर पारदर्शिता के मामले में राष्ट्रीय पार्टियां ज्यादा दोषी हैं. 2019-20 में अज्ञात स्रोतों से हुई कमाई राष्ट्रीय पार्टियों की कुल कमाई का 70.98 प्रतिशत थी. एडीआर का कहना है कि भारत अकेला ऐसा बड़ा लोकतांत्रिक देश है जहां ऐसी लचर व्यवस्था है.

अमेरिका, ब्राजील, जर्मनी, फ्रांस, इटली जैसे देशों का उदाहरण तो है ही, यहां तक नेपाल और भूटान में भी पार्टियों के लिए अपनी कमाई के 50 प्रतिशत से ज्यादा के स्त्रोत को अज्ञात रखना मुमकिन ही नहीं है. लेकिन भारत में सब कुछ संभव है और यही कारण है की राजनीति गंदी होती जा रही है.

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