क्या ये ‘टोटका’ अखिलेश यादव को जिताएगा 2022 का चुनाव, ‘विजय रथ यात्रा’ का किस्मत कनेक्शन

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समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने 2022 में जीत दर्ज करने के लिए ‘विजय यात्रा’ शुरू कर दी है. 12 अक्टूबर से शुरू हुई इस यात्रा को मिल रहे जनसमर्थन को देखकर सपा कार्यकर्ता गदगद हैं.

2017 में बीजेपी के हाथों शिकस्त खाने के बाद अखिलेश यादव की किस्मत का सितारा चमकाने में विजय यात्रा का बड़ा योगदान रहने वाला है. ऐसा हम नहीं कह रहे यह बात उन हजारों कार्यकर्ताओं की जुबान पर है जो इस बात से खुश हैं क्यों उनका नेता सड़कों पर संघर्ष करने के लिए निकल चुका है. कानपुर से शुरू हुई समाजवादी विजय यात्रा धीरे धीरे अपने महत्वपूर्ण पड़ाव पर पहुंच गई है. इस यात्रा का लक्ष्य 2022 में अखिलेश यादव को दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाने का है.

अखिलेश यादव ने इस विजय रथ यात्रा की शुरुआत कानपुर के जाजमऊ से की. ख़ास बात यह है कि इस ‘विजय रथ’ यात्रा को हरी झंडी दिखाने का काम पाँच साल के बच्चे खजांचीनाथ ने किया. खजांचीनाथ के माध्यम से अखिलेश ने मोदी के नोटबंदी पर हल्ला बोला. 2016 में नोटबंदी के दौरान कानपुर देहात की एक महिला ने बैंक में लाइन लगने के दौरान ही प्रसव पीड़ा से छटपटाते हुए बच्चे को जन्म दिया था. यही बच्चा खजांचीनाथ है और उन्हें यह नाम तब ख़ुद अखिलेश यादव ने दिया था.

विजय रथ यात्रा को मिल रहा है जन समर्थन

अखिलेश यादव के टोटके के बारे में बताने से पहले आपको यह जानना जरूरी है कि 12 अक्टूबर को विजय रथ यात्रा की शुरुआत और उसके बाद का माहौल किस तरह से समाजवादियों के चेहरे पर खुशी ला रहा है. 12 अक्टूबर को कानपुर-लखनऊ एनएच हाइवे-27 से कोई दो किलोमीटर तक 80-90 गाड़ियों के क़ाफ़िले में अखिलेश यादव का ‘विजय रथ’ आगे बढ़ा जो बाद में प्रयागराज होते हुए कानपुर इटावा आने वाले एनएच-2 से भी गुज़रा और कोई 10 से 12 किलोमीटर की दूरी तय करके घाटमपुर की ओर मुड़ गया.

पिछले चुनाव में गंवाई सीटें और पार्टी का बिखरा हुआ वोट समेटने के लिए उन्होंने ‘विजय रथ’ का रूट कानपुर से वाया घाटमपुर होते हुए बुंदेलखंड क्षेत्र को चुना है, उनकी इस सभा में काफ़ी भीड़ भी दिखाई दी. कानपुर के साथ ही हमीरपुर, जालौन की विधानसभा क्षेत्रों में सभाएं करते हुए वह ‘विजय रथ’ लेकर कानपुर देहात की सीमा में फिर वापस आएंगे.

क्या है अखिलेश यादव का टोटका?

अखिलेश की चुनावी रथयात्रा को सपा नेता सत्ता पर क़ाबिज़ होने का टोटका मानते हैं, वैसे रथ की परंपरा मुलायम सिंह यादव ने शुरू की थी. 1987 में उन्होंने कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए ‘क्रांति रथ’ निकाला था. तब भी शुरुआत कानपुर से हुई थी. कानपुर देहात के झींझक में रैली करने के बाद दूसरी रैली उन्होंने मैनपुरी में की थी और इसके बाद 1989 के चुनाव में मुलायम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे. इसी रास्ते चलते हुए अखिलेश यादव ने 2011 में अपने पिता मुलायम के ही अंदाज़ में ‘क्रांति रथ’ निकाला वह भी कानपुर से शुरुआत करके पूरे प्रदेश में घूमे. 2012 के चुनाव में पूर्ण बहुमत से सपा की सरकार प्रदेश में आयी थी और अखिलेश पहली बार मुख्यमंत्री बने.

अब एक बार फिर 2022 में अखिलेश यादव उसी रास्ते पर हैं. और समाजवादी पार्टी से जुड़े तमाम लोगों को उम्मीद है की रास्ता उन्हें सीएम की कुर्सी तक ले जाएगा. 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आंधी के सामने उनकी करारी शिकस्त हुई थी. कांग्रेस से गठजोड़ के बाद भी दोनों को मिलाकर कुल 52 सीटें ही मिल पाई थीं. लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी वापसी की उम्मीद कर रही है.

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