कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे से पंजाब में कांग्रेस को कितना नुकसान होगा?

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कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद पंजाब में कांग्रेस के सामने बड़ा सियासी संकट खड़ा हो गया है जिसे सुलझाने के लिए पार्टी ने हरीश रावत को आनन-फानन में पंजाब भेजा. लेकिन क्या आगामी चुनाव में कांग्रेस के सामने बड़ी मुश्किल आने वाली है?

कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब में कांग्रेस के न सिर्फ मुख्यमंत्री थे बल्कि उनका सियासी कद आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकता है. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने आज राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित से मुलाक़ात कर उन्हें अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया है. और इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस आलाकमान के सामने अपनी नाराजगी भी जाहिर करने की कोशिश की. उन्होंने न केवल अपना इस्तीफ़ा सौंपा बल्कि काउंसिल ऑफ़ मिनिस्टर्स यानी कैबिनेट का भी इस्तीफ़ा सौंप दिया है.

शनिवार शाम पांच बजे पंजाब के सभी कांग्रेस विधायकों की बैठक चंडीगढ़ के प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में बुलाई गई थी, लेकिन उससे मिनटों पहले ही कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया है.

इससे पहले पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रमुख सुनील जाखड़ ने ट्वीट करके इसके संकेत भी दे दिए हैं कि कुछ बड़ा बदलाव होने जा रहा है.

उन्होंने ट्वीट किया था, “एक कठिन और जटिल समस्या को सिकंदर वाले समाधान का पंजाबी संस्करण इस्तेमाल करने के लिए श्री राहुल गांधी की प्रशंसा होनी चाहिए. इतना बड़ा साहसिक नेतृत्व निर्णय न केवल पंजाब कांग्रेस की उलझन सुलझाएगा बल्कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को भी रोमांचित करेगा लेकिन यह अकालियों की रीढ़ में कंपकंपी ज़रूर फैला देगा.”

अमरिंदर का राजनीतिक कद

2014 में जब ऐसी धारणा बन रही थी कि कांग्रेस के बड़े नेता लोकसभा चुनाव लड़ने से कतरा रहे हैं, उस समय भी सोनिया गाँधी के कहने पर अमरिंदर ने अरुण जेटली के ख़िलाफ़ अमृतसर से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए हामी भरी और अंततः जेटली को हराया.

ये चुनाव लड़ने के समय अमरिंदर पंजाब विधानसभा में विधायक थे.

2017 के विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई में कांग्रेस ने पंजाब में कुल 117 सीटों में से 77 सीटों पर जीत हासिल कर सत्ता में 10 साल बाद वापसी की थी.

अमरिंदर सिंह की यह जीत इस मायने में बेहद अहम थी कि 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद बीजेपी लगातार कई राज्यों में अपनी सरकार बनाती जा रही थी. इनमें हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, असम, गुजरात, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य शामिल थे.

लेकिन पंजाब की सत्ता में कांग्रेस की वापसी कर अमरिंदर सिंह बीजेपी की विजय रथ को रोकने वाले गिनती के नेताओं में शुमार हो गए.

2019 के लोकसभा चुनाव में हर तरफ़ मोदी लहर की ही चर्चा थी. यह नतीजों ने भी साफ़ दिखा और जनादेश स्पष्ट रूप से बीजेपी को मिला. लेकिन मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस ने पंजाब की 13 लोक सभा सीटों में से 8 सीटें जीतीं और इससे अमरिंदर का कद और ऊंचा हो गया.

सिद्धू के साथ मतभेद

नवजोत सिंह सिद्धू और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच विवाद काफ़ी समय से चला आ रहा है. माना जा रहा है कि सिद्धू जब बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे तभी से इसकी शुरुआत हो गई थी.

हालांकि, उनको कैप्टन सरकार में मंत्री का पद भी दिया गया था लेकिन दोनों के बीच तल्ख़ होते रिश्तों के बाद उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था.

इसके बाद कैप्टन की नाख़ुशी के बाद भी कांग्रेस ने सिद्धू को इसी साल जुलाई में प्रदेश अध्यक्ष का पद दे दिया जिसके बाद दोनों के बीच एकबार फिर टकराव देखने को मिलने लगा. दोनों ही एक दूसरे के ख़िलाफ़ बयानबाज़ियां करते रहे हैं.

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