Mission 2022 में कैसे कैंडिडेट पर दांव खेलेगी सपा , अखिलेश की ‘गुडबुक’ में यह नाम सबसे ऊपर
Mission 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव कैंडिडेट चयन की प्रक्रिया बदल रहे हैं. इस बार 2017 की तरह कैंडिडेट की इमेज नहीं बल्कि उसके जीतने की संभावना को ध्यान में रखकर टिकट बांटे जाएंगे.
UP election 2022 जैसे-जैसे करीब आ रहा है सभी सियासी पार्टियां अपनी-अपनी चुनावी तैयारियों को आखरी रूप देने में लगी हुई है. उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी सभी जिलों में जिला इकाइयों को सक्रिय कर के न सिर्फ संभावित उम्मीदवारों की सूची तैयार करवा रही है बल्कि अखिलेश यादव अपनी गुड बुक के आधार पर कैंडिडेट चयन की प्रक्रिया को आखिरी रूप देने में लगे हैं.
इमेज नहीं बल्कि कैंडिडेट का जिताऊ होना है पहली प्राथमिकता
पूर्वांचल के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के बड़े भाई पूर्व विधायक सिबगतुल्लाह अंसारी और उनके बेटे समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अंसारी परिवार के सदस्यों को सपा की सदस्यता दिलाई. हालांकि, एक समय अखिलेश यादव अपनी क्लीन छवि के लिए मुख्तार अंसारी परिवार के सपा में शामिल होने पर अपने चाचा शिवपाल यादव से अदावत कर बैठे थे.
अखिलेश यादव ने 2016 में मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का सपा में विलय यह कहकर रद्द कर दिया था कि माफियाओं के लिए पार्टी में जगह नहीं है. इस बात पर शिवपाल और अखिलेश यादव के बीच ऐसी कलह मची कि सपा दो हिस्सों में बट गई, लेकिन पिछले दो चुनावों से पार्टी को मिल रही हार ने अखिलेश को अपने ही फैसले को बदलने के लिए मजबूर कर दिया है और अब खुद ही अखिलेश ने मुख्तार परिवार के सदस्यों को सपा की सदस्यता दिलाई है.
2017 की गलती नहीं दोहराना चाहते सपा प्रमुख अखिलेश यादव
दिसंबर 2016 में फिर मुलायम सिंह यादव की सहमति पर शिवपाल यादव ने न केवल कौमी एकता दल का सपा में विलय कराया बल्कि अंसारी बंधुओं को टिकट देने का भी ऐलान कर दिया. इसके बाद अखिलेश यादव के हाथों में पार्टी की कमान आते ही कौमी एकता दल के विलय को रद्द कर दिया गया और साथ ही अंसारी बंधुओं की प्रस्तावित सीटों से दूसरे प्रत्याशी घोषित कर दिए थे. इसके बाद अंसारी बंधुओं ने अपनी पार्टी कौमी एकता दल का विलय बसपा में कर दिया था. मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी ने कहा था कि अखिलेश ने अपनी ब्रांडिंग के लिए हमारा अपमान किया है, पूर्वांचल में उन्हें इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा.
वहीं, 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा को मिली हार के बाद अब अखिलेश यादव का जोर सपा के चाल, चरित्र और चेहरा बदलने से ज्यादा जीतने वाले नेताओं पर है. ऐसे में 2022 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ऐसे नेताओं को पार्टी में शामिल कराने में जुटे हैं, जिनका अपने इलाके में सियासी आधार हो. मुख्तार अंसारी परिवार की सियासी ताकत पूर्वांचल के कई जिलों में है.
अंसारी भाइयों की ताकत से वाकिफ हैं सपा मुखिया
पूर्वांचल में दर्जनभर विधानसभा और लगभग पांच-छह जिले ऐसे हैं जहां अंसारी बंधुओं का दखल मुस्लिम वोटरों के बीच चलता है. ऐसा माना जाता है कि गाजीपुर, मऊ, बलिया, बनारस, आजमगढ़, चंदौली में मुस्लिम समुदाय के भीतर अंसारी बंधुओं की स्वीकार्यता है और ये लोग कई सीटों पर अपना सीधा दखल रखते हैं. 2022 के चुनाव से पहले इन्हीं समीकरणों को ध्यान में रखते हुए अखिलेश ने मुख्तार परिवार को साथ लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
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मुख्तार अंसारी के भाई के सपा में शामिल होने पर बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि समाजवादी पार्टी की साइकिल का पहिया बिना अपराधियों के पैडल मारे नहीं घूम सकता, मुख्तार अंसारी के परिवार को फिर समाजवादी पार्टी में शामिल करके अखिलेश यादव ने इसे प्रमाणित कर दिया है. सपा बसपा ने उत्तर प्रदेश में ‘अपराध और अपराधी’ को बढ़ावा दिया है. अखिलेश चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं और सूबे की जनता उनकी हकीकत को देख रही है और इसका जवाब चुनाव के दौरान देगी.
इस बार कैंडिडेट चैन में किसे दी जाएगी वरीयता?
यह सवाल बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि एक जमाने में इमेज देखकर टिकट देने की परंपरा शुरू करने वाले सपा मुखिया अखिलेश यादव अब कैंडिडेट के जीतने की संभावना को ध्यान में रखते हुए टिकट बांट रहे हैं. हाल फिलहाल के घटनाक्रम पर अगर बारीकी नजर डालें तो यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है कि 2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर अखिलेश यादव कितनी संवेदनशीलता बरत रहे हैं. समाजवादी पार्टी सभी विधानसभा सीटों की स्क्रुटनी करा रही है और सभी संभावित उम्मीदवारों की सूची का गहराई से अवलोकन कराया जा रहा है. इसलिए यह कहना मुश्किल नहीं है कि 22 में साइकिल दौड़ आने के लिए अखिलेश किन लोगों पर दांव खेलेंगे.
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