रामदेव (Ramdev) के बयान और सरकार का उनके प्रति लचीला रवैया डॉक्टरों को राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन करने के लिए मजबूर कर रहा है. हाल के दिनों में आयुर्वेद बनाम एलोपैथ का विवाद खड़ा करने वाले योग कारोबारी अब देश के सामने एक नई मुश्किल खड़ी करने वाले हैं.
भारत में पहले से ही कोरोना महामारी (corona pandemic) के चलते मेडिकल सुविधाओं और स्वास्थ्य कर्मियों की कमी है और ऐसे में डॉक्टरों का रामदेव के खिलाफ लामबंद होना और 1 जून को राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन करने का ऐलान करना आपदा की इस घड़ी में लोगों की मुश्किलें और बढ़ा सकता है. एलोपैथ पर योग गुरु रामदेव की टिप्पणी से आहत ‘फेडरेशन ऑफ़ रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन’ के सदस्यों ने शनिवार को कहा कि वे एक जून को राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन करेंगे और इसे ‘काला दिन’ के तौर पर मनाएंगे.
रामदेव के खिलाफ बढ़ रहा है डॉक्टरों का गुस्सा
एलोपैथ और डॉक्टरों पर की गई उनकी हालिया टिप्पणी देश को एक बड़ी परेशानी में डाल सकती है. डॉक्टरों ने उनके के बयान को लेकर उनके खिलाफ राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन करने का ऐलान किया है. कोरोना संक्रमण के इलाज में इस्तेमाल की जा रही कुछ दवाओं पर सवाल उठाते हुए योग गुरु रामदेव ने कथित तौर पर ये कहा था कि ‘एलोपैथ की दवाएं खाकर लाखों लोग मर गए’ हैं.
इस टिप्पणी को लेकर रामदेव को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन ने उनके बयान को ‘बेहद दुर्भाग्यपूर्ण’ बताते हुए उसे वापस लेने के लिए कहा. जिसके बाद रामदेव ने अपना बयान वापस ले लिया.
रामदेव ने आईएमए से पूछे थे 25 सवाल
इस बीच रामदेव ने अपने ट्विटर हैंडल पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को एक ‘खुले खत’ में संबोधित करते हुए 25 सवाल पूछे. उन्होंने पूछा कि क्या एलोपैथ से रोग-बीमारी से स्थाई तौर पर राहत मिलती है. डॉक्टरों और अंग्रेजी दवाओं पर की गई उनकी टिप्पणी कहीं देश को और ज्यादा मुसीबत में ना डाल दें इससे बचने के लिए सरकार को जरूरी कदम उठाने होंगे. क्योंकि अगर डॉक्टरों के विरोध प्रदर्शन से मेडिकल सेवाओं में परेशानी होती है तो इससे लाखों मरीजों की जान खतरे में पड़ सकती है.
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