8 मई को दुनिया हर साल ‘नो सॉक्स डे’ क्यों मनाती है?
8 मई को ‘नो सॉक्स डे’ का मकसद यही है कि लोगों को हमेशा जुराबे ना पहने रहने के फायदे बताए जाएं. जरूरी नहीं कि ऐसा करने के लिए बीच ही जाना जरूरी है. आप जहां हैं वहीं अपने पैरों को बदबूदार जुराबों से आजाद कर दीजिए.
ठंडे देशों में लोग सार्वजनिक रूप से विरले ही अपने पैर जूतों से बाहर निकालते हैं. लेकिन अब ऐसा करने की वजह है. खासकर जर्मनी में नंगे पैर चलने का ट्रेंड लोकप्रिय हो रहा है. इसके लिए खास तौर से रास्ते बनाए जा रहे हैं. कुछ जगहों पर तो कई कई किलोमीटर लंबे ऐसे रास्ते बनाए गए हैं.
8 मई यानी ‘नो सॉक्स डे’ लेकिन क्यों?
अमेरिकी अभिनेत्री क्रिस्टन स्टेवार्ट 2018 के कान फिल्म फेस्टविल में ज्यूरी की सदस्य थीं. जब वह रेड कार्पेट पर नंगे पैर चलीं तो विवाद खड़ा हो गया. एक टेबलॉइड ने लिखा, “उन्होंने गोल्डन रूल तोड़ा है.” कई लोगों ने इसे फेस्टविल की ड्रेस कोड के प्रति उनका विरोध बताया. हालांकि ऐसा कोई नियम नहीं है कि रेड कार्पेट पर हाई हील वाली सैंडल में चलना जरूरी है.
8 मई और पैर धोना एक ईसाई धार्मिक रिवाज
पोप फ्रांसिस ने 2016 में रोम के करीब एक शरणार्थी शिविर में अलग अलग देशों से आए लोगों के पैरों को धोकर और उन्हें चूमकर प्रवासियों की पीड़ाओं से हमदर्दी दिखाई. पैर धोना एक ईसाई धार्मिक रिवाज है. ईसा मसीह ने भी अंतिम भोज के दौरान अपने अनुयायियों के पैर धोए थे. प्राचीन सभ्यताओं में इसे मेहमाननवाजी का एक रिवाज माना जाता था.
मेहंदी लगाने की परंपरा
मेहंदी लगाने की परंपरा भारत के साथ पर्शिया, उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व में सदियों से रही है. महिलाओं के साथ साथ पुरुष भी मेहंदी लगाते हैं. भारत के बहुत से इलाकों में मेहंदी के बिना शादी नहीं होती. दुल्हा और दुल्हन ही नहीं, बल्कि उनके परिवारों की महिलाएं भी मेहंदी लगाती हैं. कई लोग अपने बाल भी मेहंदी से रंगते हैं.
‘नो सॉक्स डे’ की शुरुआत
ज्यादातर लोगों को कभी ना कभी ये अनुभव हुआ होगा. आप किसी व्यक्ति के घर में दाखिल होने के लिए जूते उतारते हैं और आपके जुराब से आपके पैर का अंगूठा झांक रहा होता है. इसीलिए अमेरिकी एक्टर थॉमस रॉय मानते हैं कि बिना जुराब ही ठीक है और उन्होंने ‘नो सॉक्स डे’ की शुरुआत की. वह कहते हैं कि कम जुराब रहेंगे तो धुलने के लिए कपड़े भी कम होंगे जो पर्यावरण के लिए अच्छा है.
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