कोरोना में एंटीबायोटिक से क्या होगा…जो दवा दे रहे वो कारगर है भी या नहीं
कोरोना में एंटीबायोटिक से क्या होगा, लोग मर रहे, कैसे हो इलाज पर भरोसा, जो दवा दे रहे वो कारगर है भी या नहीं
मरीज पर एजिथ्रोमाइसिन और आइवरमेक्टिन असर नहीं करतीं
कोरोना में एंटीबायोटिक जरूरी हो गई है. कई राज्यों में कोविड-19 के इलाज के लिए बनाई गई सरकारी मेडिकल किटों में भी इन दवाओं को शामिल किया गया है
22 अप्रैल, 2021 वह तारीख है जब भारत में रोज़ाना आने वाले कोविड मामलों के आंकड़े ने एक नई ऊंचाई छुई. इस दिन देश भर में 3.14 लाख कोविड मामले दर्ज किए
दुनिया भर में एक दिन में सबसे अधिक मामले दर्ज करने का रिकॉर्ड भारत के नाम हो गया है.
रोज़ाना आने वाले इन लाखों लोगों में से ज्यादातर लोग उनके घरों में ही क्वारंटीन किए जा रहे हैं.
कोरोना वायरस के मरीजों को मिलीं सरकारी पर्ची पर पैरासीटामॉल, एजिथ्रोमाइसिन, डॉक्सी (डॉक्सीसाइक्लिन), आइवरमेक्टिन और विटामिन बी, सी और डी जैसे कुछ सप्लिमेंट्स के नाम लिखे होते हैं. पैरासीटामॉल और विटामिन स्पलीमेंट्स को छोड़ दें तो बाकी तीन दवाओं से कोरोना वायरस के इलाज में कोई मदद मिलती है, इस बात के कोई वैज्ञानिक साक्ष्य मौजूद नहीं हैं.
क्या कहता है सर्वे?
बीते साल नवंबर में ऑक्सफोर्ड र्यूनिवर्सिटी द्वारा शुरू किए गए एक शोध में 50 साल से अधिक उम्र वाले कोरोना संक्रमितों के एक समूह को तीन दिनों तक एजिथ्रोमाइसिन और दूसरे समूह को छह दिनों तक डॉक्सीसाइक्लिन दी गई. जनवरी, 2021 में आए इस शोध के नतीजे बताते हैं कि इन दवाओं के इस्तेमाल से न तो मरीज की रिकवरी में तेज़ी आई और न ही इन्हें इलाज की शुरूआत में देने पर लक्षणों को नियंत्रित करने में कोई खास मदद मिल सकी.
सिर्फ खानापूर्ति क्यों?
कहा ये जा रहा है कि जब इन्हीं एंटीबायोटिक और एंटीवायरल दवाओं का इस्तेमाल साधारण सर्दी-बुखार यानी फ्लू से निपटने के लिए किया जा रहा है तो फिर कोरोना संक्रमण का इलाज करते हुए इन्हें देने में क्या बुराई है. एजिथ्रोमाइसिन या डॉक्सी जैसी दवाओं का इस्तेमाल फ्लू के इलाज के लिए किया तो जाता है, लेकिन तब भी मरीज के लक्षणों के मुताबिक इनका इस्तेमाल करने या न करने की सलाह दी जाती है. वहीं, कोरोना वायरस के संदर्भ में तथ्य यह है कि चाहे मरीज में संक्रमण के लक्षण गंभीर हों या फिर हल्के-फुल्के, सभी को यही दवाएं दी जा रही हैं.
ये हैं तर्क
किसी भी रेस्पिरेटरी (श्वसन संबंधी) वायरल इंफेक्शन के मरीजों में दूसरे अन्य संक्रमण होने की संभावना हमेशा रहती है, इन्हें सेकंडरी या को-इंफेक्शन कहा जाता है. इसे दूर करने के लिए
इस तरह के इंफेक्शन आम तौर पर बैक्टीरिया के चलते होते हैं और ये अक्सर मरीज की स्थिति गंभीर होने या कुछ मौकों पर मौत का कारण भी बन सकते हैं. इसलिए दवा जरूरी
अक्सर वायरल संक्रमणों का इलाज करते हुए एंटीबायोटिक्स और एंटीवायरल दवाएं भी दी जाती हैं.
मलेरिया, फ्लू वगैरह के इलाज में ये हमेशा दी जाती हैं इसलिए दिए चले जा रहे हैं.
जानें दवा के बारे में…
आइवरमेक्टिन एक बहुत सस्ती दवा है जो एंटी-पैरासिटिक के तौर पर हमेशा ही मलेरिया, डेंगू, मौसमी बुखार से लेकर तमाम तरह की छोटी-बड़ी बीमारियों में दी जाती रही है. लेकिन दवाओं की, दवाओं के व्यवसाय की और सरकारी तौर पर दवाओं के रिकमंडेशन या यूजेज की अपनी पॉलिटिक्स होती है. डॉक्सी हो या एजिथ्रोमाइसिन, ये बहुत कॉमन दवाएं हैं. लेकिन बाज़ार में इन्हें लेकर प्रतिस्पर्धा बहुत है. सबको दवा बेचना है, सबको मुनाफा कमाना है. कोरोना ऐसे लोगों के लिए एक मौका भी बन गया है.
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