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पश्चिम बंगाल चुनाव में अब ऐसे ‘खेला होबे’

पश्चिम बंगाल चुनाव : नंदीग्राम के जिस बिरुलिया इलाक़े में बुधवार शाम को ममता बनर्जी को चोट लगी वहां के कुछ लोग बदनामी और आरोपों की वजह से नाराज़ हैं. लेकिन क्या यह घटना मौजूदा विधानसभा चुनावों का टर्निंग प्वायंट साबित हो सकता है?

पश्चिम बंगाल चुनाव में अब लोगों की सहानुभूति ममता बनर्जी के साथ है. इससे एक जुझारू नेता और स्ट्रीट फ़ाइटर के तौर पर उनकी छवि और मज़बूत हुई है. लेकिन अगर जैसा कि लोग मानते हैं, इस घटना से ममता के प्रति सहानुभूति उमड़ती है तो दो पैमानों पर उसका विश्लेषण किया जा सकता है.

पश्चिम बंगाल चुनाव और ममता की चोट

पूर्व मेदिनीपुर जिले की नंदीग्राम सीट पर बुधवार शाम को नामंकन पत्र दाखिल करने के बाद शाम को एक मंदिर से वापस लौटते समय सड़क के दोनों और खडी भारी भीड़ के बीच अचानक कार का दरवाजा बंद होने की वजह से ममता को बाएं पैर, कंधे और गले में काफी चोट आई थी. उनको तत्काल ग्रीन कारीडोर के जरिए कोलकाता ले आकर एसएसकेएम अस्पताल में दाखिल कराया गया था. उस समय खुद ममता ने आरोप लगाया था कि एक साजिश के तहत चार-पांच बाहरी लोगों ने उनकी कार के दरवाजे को जबरन बंद कर दिया था जिससे वे घायल हो गई हैं.

नंदीग्राम और उसके आसपास की वे सीटें जिनपर पहले और दूसरे चरण में मतदान होना है. इनमें पूर्व मेदिनीपुर, पश्चिम मेदिनीपुर, बांकुड़ा और पुरुलिया की सीटें शामिल हैं. ऐसे में न चाहते हुए भी प्लास्टर और व्हील चैयर के साथ मैदान में उतरना ममता और उनकी पर्टी की मजबूरी है. इसकी वजह यह है कि राज्य की तमाम सीटों पर वे पार्टी की अकेली स्टार प्रचारक हैं. और ममता की चोट लोगों को TMC के पक्ष में मतदान करने के लिए मजबूर करेगी.

चोट पर पड़ेगा TMC के पक्ष में वोट

जहां तक नंदीग्राम के वोटरों का सवाल है वहां दो दिग्गजों के मैदान में उतरने से वहां लोगों में डर का माहौल है. इलाक़े में क़रीब 30 फ़ीसद अल्पसंख्यक वोटर हैं और 70 फ़ीसद हिंदू. इनमें दलितों की भी ख़ासी आबादी है. वहां दोनों पार्टियां धार्मिक कार्यक्रमों और मंदिरों में पूजन दर्शन पर ज़्यादा ध्यान दे रही हैं. ख़ुद ममता ने भी बीजेपी के हिंदू कार्ड के मुक़ाबले के लिए ख़ुद को ब्राह्मण की बेटी बताया था और मंच से चंडीपाठ किया था.

लेफ़्ट-कांग्रेस गठजोड़ ने पहले यह सीट इंडियन सेक्यूलर फ्रंट (आईएसएफ) को देने का फ़ैसला किया था. लेकिन अब सीपीएम यहां ख़ुद चुनाव लड़ेगी. इससे बीजेपी ख़ेमें में कुछ चिंता बढ़ी है. लेकिन शुभेंदु अधिकारी का दावा है कि यहां उनकी जीत तय है. ममता बनर्जी चोट के साथ जब मैदान में उतरेंगी तो माहौल बदल सकता है.

डॉक्टरों की राय में ममता को कम से कम दो सप्ताह तक व्हील चेयर पर रहना होगा. इससे उनकी गतिविधियों पर असर ज़रूर होगा. लेकिन बावजूद इसके उन्होंने इसी हालत में चुनाव अभियान पर निकलने की बात कही है.

पश्चिम बंगाल चुनाव में ममता को मिलेगा फायदा

इस घटना ने राज्य में चुनावी तस्वीर का रुख बदल दिया है. बुधवार शाम से ही हर तरफ इसी मामले की चर्चा है. न सिर्फ बंगाल में, बल्कि पूरे देश में. इसका फायदा ममता को मिल सकता है. ये हमला है या हादसा, अभी इस पर कुछ भी पक्के तौर पर जाँच रिपोर्ट आने के बाद ही कहा जा सकता. लेकिन हमलों से जूझते हुए ही उनकी जुझारू नेता की जो मजबूत छवि बनी उसने उनको कांग्रेस अलग होकर नई पार्टी बनाने और मुख्य विपक्ष पार्टी के तौर पर टीएमसी को स्थापित कर 34 साल से जमी लेफ्ट की सरकार को उखाड़ कर सत्ता में पहुंचने का रास्ता बनाया था. 16 अगस्त 1990 को कोलकाता में घर के पास ही हाजरा मोड़ पर सीपीएम के युवा संगठन डीवाईएफआ के नेता लालू आलम ने लाठी के वार से उनका सिर फोड़ दिया था. सिर पर पट्टी बांधे सड़कों पर उथरीं ममता की उस छवि ने उनको घर-घर में लोकप्रिय बना दिया था.

वैसे, ममता के साथ असल में हुआ क्या था, यह तो शायद विस्तृत जांच के बाद ही सामने आए. लेकिन यह सही है कि उनको लगी चोटों ने बुधवार शाम से ही पश्चिम बंगाल चुनाव अभियान की तस्वीर बदल दी है.

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