पश्चिम बंगाल चुनाव में चमत्कार करेगा ये अहम ‘फैक्टर’?

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पश्चिम बंगाल चुनाव में बीजेपी और टीएमसी के बीच जोरदार टक्कर के आसार हैं. हालांकि लेफ्टऔर कांग्रेस की अपना दम दिखा रहे हैं लेकिन चर्चाओं में टीएमसी और बीजेपी ही है.

पश्चिम बंगाल चुनाव की बात करने से पहले एक बात समझना बहुत जरूरी है किस राज्य की चुनावी लड़ाई मुसलमान बोर्ड को नजरअंदाज करके नहीं लड़ा जा सकती. इसका बड़ा कारण है राज्य की आबादी में मुसलमानों का बड़ा हिस्सा. पश्चिम बंगाल में कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी लगभग 30 प्रतिशत है. और जब बात सीटों पर इस वोट बैंक के असर की होती है तो राज्य की लगभग 70-100 सीटों पर उनका एकतरफ़ा वोट जीत और हार तय कर सकता है.

पश्चिम बंगाल चुनाव का सबसे बड़ा फैक्टर

यानी पश्चिम बंगाल चुनाव में मुसलमान वोट एक बड़ा फैक्टर है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस वोट बैंक पर कौन सी पार्टी असर करती है. यानी मुसलमान वोट जिसे भी सपोर्ट करेगा जीत का सेहरा उसी के सिर पर सजेगा. यही वजह है कि कांग्रेस, लेफ़्ट, बीजेपी और टीएमसी सब इन वोटरों को साधने की कोशिश में जुटे हैं. इस वोट बैंक को साधने के लिए हर पार्टी की अपनी-अपनी रणनीति है. कांग्रेस और लेफ़्ट का गठबंधन पहले ही हो चुका था, लेकिन उनके साथ अब फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ के पीरज़ादा अब्बास सिद्दीक़ी भी हैं. दूसरी तरफ़ ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी भी चुनावी मैदान में उतरने का एलान कर चुके हैं.   

पश्चिम बंगाल चुनाव में टीएमसी से छिटके का मुस्लिम वोट?

यह एक बहुत अहम सवाल है. क्योंकि टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी राज्य मुसलमान वोट लेकर ही सत्ता तक पहुंचती रही हैं. लेकिन इस बार उन्हें नुकसान होने के आसार हैं क्योंकि ओवैसी की पार्टी राज्य में तेजी से सक्रिय हुई है. जानकारों का कहना है की असदुद्दीन ओवैसी और लेफ्ट कांग्रेस के गठबंधन से जुड़े सिद्दीकी मुसलमान वोट को अपने पाले में खींचने की कोशिशों में लगे हैं लेकिन बंगाली मुसलमान क्या ममता को छोड़कर इनके खेमे में जाएगा यह देखना बेहद दिलचस्प होगा.

पश्चिम बंगाल के पिछले विधानसभा चुनाव में मुसलमान वोट ममता बनर्जी के पास रहा था और यही उनके लिए जीत की वजह भी बना था. लिहाजा इस बार भी ममता बनर्जी अपने वोट बैंक को खोना नहीं चाहेंगी. पश्चिम बंगाल चुनाव में बीजेपी मुसलमान वोट बैंक के असर को समझती है और इसीलिए वह चाहती है की ओवैसी और सिद्दीकी के बीच यह वोट बैंक बट जाए जिस से सीधा सीधा नुकसान ममता बनर्जी का होगा और फायदा बीजेपी का.

पश्चिम बंगाल चुनाव के लिए टीएमसी की क्या है प्लानिंग?

टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बंगाली मुसलमानों को यह बताने की कोशिश कर रही हैं कि ओवैसी की पश्चिम बंगाल चुनाव में एंट्री ही बीजेपी को फ़ायदा पहुँचाने के लिए हुई है ताकि उनकी पार्टी टीएमसी के मुसलमान वोट काट सके. ओवैसी पर इस तरह के आरोप कई लोग लगाते हैं कि उनकी राजनीति बीजेपी को चुनावी फ़ायदा पहुँचाने के लिए होती है लेकिन एक सच यह भी है कि मुसलमानों का एक बहुत बड़ा तबक़ा संसद में मुसलमानों के मुद्दे पर बेबाकी से अपनी बात रखने वाले नेता के तौर पर भी देखता है.

पश्चिम बंगाल चुनाव में मुसलमानों के असर को देखते हुए ममता बनर्जी को यह डर भी सता रहा है कि कहीं असदुद्दीन ओवैसी बिहार विधानसभा चुनाव की तरह बंगाल में भी मुसलमानों का दिल जीत कर अपनी जगह न बना लें. इसलिए उन्होंने ओवैसी के लिए एक अलग रणनीति पर काम करना शुरू किया है. पश्चिम बंगाल में लंबे समय तक रहे और वहां की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार विजय शंकर पांडे बताते हैं कि लेफ्ट गठबंधन अब्बास सिद्दीक़ी के सहारे और बीजेपी ओवौसी के सहारे टीएमसी के मुसलमान वोटर में सेंधमारी की कोशिश में जुटी है.

पश्चिम बंगाल चुनाव में मुसलमान वोट का गणित

पश्चिम बंगाल चुनाव में क्योंकि राज्य के बांग्लादेश सीमा से लगे राज्य के ज़िलों में मुस्लिमों की आबादी बहुतायत में है. मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर दिनाजपुर में तो कहीं-कहीं  इनकी आबादी 50 फ़ीसद से ज़्यादा है. इनके अलावा दक्षिण और उत्तर 24-परगना ज़िलों में भी इनका ख़ासा असर है.

विधानसभा की 294 सीटों में से 70 से 100 सीटों पर इस तबक़े के वोट निर्णायक हैं.

2006 तक राज्य के मुस्लिम वोट बैंक पर वाममोर्चा का क़ब्ज़ा था. लेकिन उसके बाद इस तबक़े के वोटर धीरे-धीरे ममता की तृणमूल कांग्रेस की ओर आकर्षित हुए और साल 2011 और 2016 में इसी वोट बैंक की बदौलत ममता सत्ता में बनी रहीं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या टीएमसी का नुक़सान बीजेपी को फ़ायदा पहुँचा सकता है? जी हां यह बात बिल्कुल सही है कि बंगाली मुसलमान अगर बंट जाता है तो इसका सीधा सीधा फायदा बीजेपी को होगा. लेकिन एक सच ये भी है कि बीजेपी का आक्रामक हिंदुत्व वाला प्रचार टीएमसी की मदद कर सकता है. ऐसे में देखना होगा कि बंगाल में लेफ़्ट का प्रदर्शन कैसा रहेगा. लेफ़्ट और कांग्रेस के साथ आने से जो चुनाव त्रिकोणीय लगने लगा था, वो अब दोबारा से ममता – मोदी के बीच का मुक़ाबला बनता जा रहा है.

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