बेरोजगारी किसी बीमारी से कम नहीं है. बेरोजगार युवाओं की पूरी फौज खड़ी है और सरकार के पास उन्हें रोजगार देने का कोई साधन नहीं है. ऐसे में युवा हताशा और अवसाद का शिकार हो रहे हैं. सालों प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने के बाद भी युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा और इसका उनकी सेहत पर भयानक असर हो रहा है.
बेरोजगारी से पैदा हुई हताशा और अवसाद से बचने के लिए युवाओं को क्या करना चाहिए? कैसे युवा खुद को निराश होने से बचाएं? इन प्रश्नों के उत्तर तलाशने की जरूरत है. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में पिछले दो हफ्ते में कम से कम चार प्रतियोगी छात्रों ने आत्महत्या कर ली. बताया जा रहा है कि सभी ने अवसाद के चलते यह कदम उठाया है. अवसाद के पीछे परीक्षाओं में असफलता और अवसरों की कमी है. भारत में दिन-ब-दिन बढ़ रही बेरोजगारी किसी बीमारी से कम नहीं है. अवसाद ग्रस्त छात्र आत्महत्या का रास्ता चुन रहे हैं और उन्हें बचाने के लिए हमारे सिस्टम के पास कोई पुख्ता तैयारी नहीं है.
बेरोजगारी से से बचने के लिए मौत का रास्ता चुना
प्रयागराज में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए लाखों की संख्या में छात्र रहते हैं और कोचिंग सेंटरों या फिर घर पर रहकर पढ़ाई करते हैं. सलोरी इलाके के मनीष यादव ने 27 फरवरी को फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली. मनीष गाजीपुर के रहने वाले थे और पिछले दो साल से यहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे. पिछले कुछ दिनों में यह इस तरह की चौथी घटना थी. प्रयागराज में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र बड़ी संख्या में लंबे समय से रह रहे हैं और इन परीक्षाओं में सफलता भी पाते रहे हैं और विफलता भी. लेकिन अवसाद में आकर आत्महत्या कर लेने की बातें अक्सर सुनने में नहीं आती हैं. इसीलिए जब महज दो हफ्तों में ऐसी ही कई घटनाएं सामने आईं तो लोगों का हैरान होना लाजिमी था. हर लोग इसके पीछे बेरोजगारी को भी एक कारण मान रहे हैं.
आत्महत्या को क्यों चुन रहे हैं युवा?
नौकरियों में अवसरों की कमी, परीक्षाओं का समय पर न होना, होने पर भी परिणाम का समय पर न आना जैसी स्थितियों से छात्र फ्रस्टेशन का शिकार हो जाते हैं. बेरोजगारी बढ़ने के कई कारण हैं. जवाब प्रयागराज जैसे शहर में इस समस्या की जड़ तक पहुंचने के लिए आते हैं तो आपको इसकी कई पहले समझ आते हैं. प्रयागराज यानी इलाहाबाद प्रतियोगी छात्रों का एक पसंदीदा शहर रहा है. इसकी एक वजह यह भी है कि यहां राज्य लोक सेवा आयोग के मुख्यालय के अलावा कई अन्य भर्ती आयोगों के मुख्यालय और केंद्रीय आयोगों के क्षेत्रीय कार्यालय हैं. यही आयोग विभिन्न सेवाओं के लिए भर्ती परीक्षाओं का आयोजन करते हैं. लेकिन हर जगह पिछले कई सालों से भर्तियां रुकी हुई हैं या फिर देर-सवेर चल रही हैं. कर्मचारी चयन आयोग, उत्तर प्रदेश माध्यमिक सेवा चयन बोर्ड, उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग जैसी संस्थाओं की भर्ती प्रक्रिया पूरी होने में तीन से चार साल तक का समय लग रहा है.
उदाहरण के तौर पर कर्मचारी चयन आयोग की साल 2017 और साल 2018 की भर्ती प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हो सकी है. यही नहीं, उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड ने पिछले चार साल में किसी नई भर्ती के लिए घोषणा ही नहीं की है. इस बोर्ड से राज्य के माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है. पिछले साल अक्टूबर में चयन बोर्ड की ओर से करीब पंद्रह हजार पदों के लिए भर्ती करने की घोषणा हुई लेकिन शुरुआती दौर में ही तमाम विसंगतियों के चलते बोर्ड ने इसे वापस ले लिया. नए सिरे से अब तक कोई प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है. पिछले दिनों सोशल मीडिया पर छात्रों ने इस बारे में अभियान भी चलाया था.
बेरोजगारी है आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट कहती है कि साल 2019 में आत्महत्या करने वाले कुल 1,39,123 लोगों में से दस फीसद ऐसे थे जिन्होंने बेरोजगारी से तंग आकर यह कदम उठाया था. यानी यदि साल 2019 की बात करें तो हर रोज करीब 38 बेरोजगारों ने खुदकुशी की. आंकड़ों के मुताबिक, बेरोजगार लोगों की आत्महत्या का यह आंकड़ा पिछले 25 साल में सबसे ज्यादा है. पिछले कोविड संक्रमण की वजह से मार्च में शुरू हुए लॉकडाउन के बाद यह संख्या और भी ज्यादा हुई है. बेरोजगार युवकों की आत्महत्या का यह आंकड़ा किसानों की आत्महत्या से भी ज्यादा है. आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर वे छात्र हैं जो किसी परीक्षा में फेल हो जाते हैं या फिर प्रतियोगी परीक्षा में असफल रह जाते हैं और अवसादग्रस्त होकर खुदकुशी जैसा कदम उठाते हैं.
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