मोदी सरकार के नए कृषि विधेयकों को लेकर इतना हंगामा क्यों बरपा है?
किसान हितैषी होने का दावा करने वाली मोदी सरकार के खिलाफ किसान विरोधी होने का आरोप लग रहा है. यह आरोप विपक्ष के नेता नहीं बल्कि मोदी के मंत्री ही लगा रहे हैं. एक मंत्री ने तो कैबिनेट से इस्तीफा ही यह कहते हुए दिया कि मौजूदा सरकार की नीतियां किसान विरोधी हैं.
सबसे पहले तो आपके लिए यह जानना जरूरी है कि जिन बिलों को लेकर हंगामा बरपा है वह दरअसल है क्या? केंद्र ने सोमवार को लोक सभा में कृषि क्षेत्र से संबंधित तीन विधेयक प्रस्तुत किए थे – आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक और कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक. ये तीनों विधेयक पहले अध्यादेश की शक्ल में जून में लागू कर दिए गए थे. सरकार संसद के मानसून सत्र में अध्यादेशों को विधेयकों के रूप में ले आई है और इन्हें पारित करना चाहती है. इनमें से आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक मंगलवार को लोक सभा से पारित भी हो गया.
पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के किसान इन तीनों अध्यादेशों का जून से ही विरोध कर रहे हैं. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक का उद्देश्य है अनाज, दालों, तिलहन, आलू और प्याज जैसी सब्जियों के दामों को तय करने की प्रक्रिया को बाजार के हवाले करना. बिल के आलोचकों का मानना है कि इससे सिर्फ बिचौलियों और बड़े उद्योगपतियों का फायदा होगा और छोटे और मझौले किसानों को अपने उत्पाद के सही दाम नहीं मिल पाएंगे.
किसान, उनके प्रतिनिधि और विपक्ष के राजनीतिक दल इन तीनों विधेयकों का ही विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि सबसे पहले तो कोविड-19 महामारी के बीच में सरकार का कृषि क्षेत्र में इतने बड़े बदलावों को अध्यादेश के रूप में लाना सरकार की मंशा दिखाता है. उनका यह भी आरोप है कि इतने विरोध के बावजूद सरकार अध्यादेशों को कानून में बदलने से पहले भी किसानों से और उनके प्रतिनिधियों से चर्चा नहीं कर रही है.
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