अर्थव्यवस्था को ‘पाताललोक’ में पहुंचाने के लिए कौन है जिम्मेदार?

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अर्थव्यवस्था को पाताललोक में पहुंचाने के लिए कौन जिम्मेदार है? आप इसके लिए मोदी सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराएंगे या फिर आप यह कहेंगे कि कोरोनावायरस के चलते अर्थव्यवस्था बैठ गई. यह सवाल इसलिए है क्योंकि सरकार आर्थिक नीतियों के मोर्चे पर विफल होने के बाद इसे ‘एक्ट ऑफ गॉड’ कह रही है.

भारत की अर्थव्यवस्था में कोरोना महामारी और उसके चलते तालाबंदी के बाद एक तिमाही में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की है. अप्रैल से जून के बीच की तिमाही में भारत की जीडीपी 23.9 फीसदी गिर गई है. भारत में तालाबंदी की शुरूआत 25 मार्च को हुई थी और जीडीपी के ये आंकड़े ठीक उसी के बाद के तीन महीनों के हैं. इससे पहले की तिमाही में 4.2 फीसदी का विकास हुआ था जबकि एक साल पहले की ठीक इसी अवधि के लिए यह आंकड़ा 5.2 फीसदी था. हालांकि आर्थिक जानकार आशंका जता रहे हैं कि वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में भारत अब तक की सबसे बड़ी मंदी देखेगा. अमूमन आर्थिक भाषा में अगर इस गिरावट को समझने की कोशिश करें तो जब किसी देश की अर्थव्यवस्था में लगातार दो तिमाही गिरावट रहती है तो उसे मंदी में घिरा कहा जाता है.

तो क्या भारत मंदी से घिर चुका है?

भारत में इससे पहले 1980 के दशक में मंदी आई थी और आजादी के बाद तब तीसरी बार ऐसा हुआ था. भारत में जीडीपी के तिमाही आंकड़े जारी करने की शुरुआत 1996 में हुई थी और उसके बाद यह अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है. महामारी के बाद बड़े एशियाई देशों में हुई आर्थिक गिरावट के लिहाज से भी यह सबसे बड़ी है. अगर पश्चिमी देशों पर नजर डालें तो ब्रिटेन में यह गिरावट 20.4 फीसदी थी. इधर सबसे ज्यादा बुरा हाल स्पेन का हुआ था जहां यह आंकड़ा 22.1 फीसदी पर पहुंच गया हालांकि भारत उससे भी आगे निकल गया है. भारत सरकार पर आरोप लगता रहा है कि अर्थव्यवस्था को संभालने में विफल रही है. कोरोनावायरस के आने से पहले सरकार ने नोटबंदी और गलत जीएसटी लागू करके पहले ही असंगठित अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया था. तो क्या यह कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना से पहले ही भारत की अर्थव्यवस्था डामाडोल होने लगी थी.

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GDP-Growth-Rate

भारत की अर्थव्यवस्था के घटकों में सबसे बड़े सेवा क्षेत्र में सबसे बड़ी हिस्सेदारी वित्तीय सेवाओं की है. पिछले साल की तुलना में इस बार यह 5.3 फीसदी नीचे गया है. इसी तरह उत्पादन क्षेत्र 39.3 फीसदी और निर्माण क्षेत्र 50.3 फीसदी सिकुड़ा है. विकास केवल कृषि क्षेत्र में हुआ है और वह भी महज 3.4 फीसदी. ऊपर से तुर्रा यह है कि  केंद्र सरकार ने मई के मध्य से ही रणनीतिक रूप से पाबंदियां हटानी शुरू कर दीं. लेकिन इन पाबंदियों की वजह से बड़ी संख्या में लोगों की नौकरी छिन गई और जिसका खामियाजा पहले ही सुस्त रफ्तार से चल रही अर्थव्यवस्था को उठाना पड़ा. यहां सबसे बड़ी हैरानी की बात यह है कि अर्थव्यवस्था का यह हाल तब है जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 266 अरब डॉलर के प्रोत्साहन पैकेज का एलान किया है. यह रकम भारत की जीडीपी के 10 फीसदी के बराबर है.

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