‘बॉयकाट चीन’ करने से पहले हमें इस सच को भी स्वीकार करना होगा

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बॉयकाट चीन: भारत में चीन से कुल 6844 प्रोडक्ट का आयात होता है, जिसकी वैल्यू 6530 करोड़ डॉलर के करीब पहुंच गई है.

गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच झड़प के बद भारत में बॉयकॉट चाइना की मुहिम तेज हो गई है. देश के ज्यादातर हिस्सों में चीन के प्रोडक्ट के बहिष्कार करने की मांग उठ रही है. इसकी जगी लोकल प्रोडक्ट को अपनाए जाने की मुहित चलाई जा रही है. लेकिन यह भी सही है कि भारत की तमाम इंडस्ट्री अपने प्रोडकट बनाने में जरूरी सामानों के लिए चीन पर बहुद हद तक निर्भर हैं. 

अगर हिस्ट्री की बात करें तो 1996-97 में भारत के लिए चीन 18वां सबसे बड़ा इंपोर्ट पार्टनर था. उस दौरान भारत में होने वाले कुल मर्केंडाइज इंपोर्ट में चीन की हिस्सेदारी 1.9 फीसदी थी. उस समय कंट्री वाइज क्लासिफिकेशन में पेट्रोलिसम प्रोडक्ट अलग कटेगिरी था. 1997 के बाद से भारत की चीन पर निर्भरता बढ़ने लगी. यह वित्त वर्ष 2018 में अपने पीक पर पहुंच गया. वित्त वर्ष 2019 में भारत में होने वाले कुल मर्केंडाइज इंपोर्ट में चीन की हिस्सेदारी बढ़कर 14 फीसदी पहुंच गई.

मौजूदा समय में भारत में चीन से कुल 6844 प्रोडक्ट का आयात होता है, जिसकी वैल्यू 6530 करोड़ डॉलर के करीब पहुंच गई है. कॉमर्स आफ मिनिस्ट्री के ताजा आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2020 में वित्त वर्ष 2019 के मुकाबले भारत का चीन से आयात कुछ घटा है. एक वित्त वर्ष के दौरान चीन से आयात में करीब 500 करोड़ डॉलर की कमी आई है. वित्त वर्ष 2018 के बाद से लगातार 2 साल इसमें गिरावट रही है. 

एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट क्या कहती है?

चीन में बनने वाले माल का भारत में कम दाम पर आयात होता है. लो वैल्यू इंपोर्ट की वजह से ज्यादा से ज्यादा भारतीय कंपनियां चीन से माल मंगाती हैं. यही प्रोडक्ट दूसरे देशों से मंगाने पर महंगा पड़ता है. कई क्षेत्रों में चीन से होने वाले आयात की हिस्सेदारी 90 फीसदी तक हो गई है. मसलन कमोडिटी एक ऐसा क्षेत्र है, जहां आयात की वैल्यू तो 100 मिलिसन डॉलर से भी कम है, लेकिन इसकी हिस्सेदारी 90 फीसदी है.

टेलिफोनिक और टेलिग्राफिक इक्यूपमेंट, पर्सनल कंप्यूटर, सोलर सेल्स, इलेक्ट्रॉनिक व इलेक्ट्रिकल गुड्स, इलेक्ट्रॉनिक इंटीग्रेटेड सर्किट, लिथियम आयन और कई अन्य केमिकल, मशीनरी इक्यूपमेंट, बेस मेटल, टेक्सटाइल्स, प्लास्टिक, रबर, आटो एसेसरीज, फुटवियर, हेडगियर इंपोर्ट के प्रमुख पार्ट के लिए भारत पूरी तरह से चीन पर निर्भर है.

कैसे संभव होगा ‘बॉयकाट चीन’?

चीन दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बन गया, जबकि भारत ऐसा नहीं कर पाया है. इसका अंतर साफ यहीं से दिख जाता है कि WTO डाटा के मुताबिक चीन का मर्केंडाइज एक्सपोर्ट 2499 बिलियन डॉलर है. जबकि भारत का सिर्फ 324 बिलियन डॉलर. जबकि 1950 के समय में हम चीन की मुकाबले दुनिया को ज्यादा एक्सपोर्ट करते थे. ऐसे में भारत को भी मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की दिशा में काम करना होगा. 

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