आत्‍मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोजगार अभियान: मजदूरी ही रोजगार है क्या?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अभियान शुरु किया है. इस अभियान के जरिए प्रदेश में 1.25 करोड़ कामगारों का विभिन्न परियोजनाओं में नियोजन होगा. विपक्ष इसे आत्मनिर्भरता के नाम पर छलावा कह रहा है. यहां सवाल ये भी है कि क्या मजदूरी ही रोजगार है क्या?

Atma Nirbhar Uttar Pradesh Rojgar Abhiyan: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने ‘आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोजगार कार्यक्रम’ लॉन्च किया है. ये अभियान ऐसे समय में शुरु किया गया है जब प्रदेश में बड़े पैमाने पर लोग बेरोजगार हुए हैं. लाखों लोग पलायन करके अपने गांव लौट आए हैं. और उन्हें रोजगार की जरूरत है. अभियान के वर्चुअल लॉन्च के दौरान पीएम मोदी ने यूपी के 6 जिलों के ग्रामीणों से कॉमन सर्विस सेंटर या कृषि विज्ञान केंद्र के जरिए बातचीत की. पीएम मोदी ने संबोधन में कहा,

‘हमारे सामाजिक जीवन में भी, गांव में, शहर में, अलग-अलग तरह की कठिनाइयां आती ही रहती हैं. मुझे पूरा विश्वास है कि योगी जी के नेतृत्व में, जिस तरह आपदा को अवसर में बदला गया है, जिस तरह वो जी-जान से जुटे हैं, देश के अन्य राज्यों को भी इस योजना से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा, वो भी इससे प्रेरणा पाएंगे.’

प्रधानमंत्री ने लांचिंग के मौके पर यूपी सरकार की तारीफ भी की और सीएम योगी की पीठ भी थपथपाई. आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में करीब 30 लाख प्रवासी श्रमिक अपने-अपने घर वापस लौट चुके हैं. और इन प्रवासी मजदूरों को रोजगार देना, इन्हें गांव में रोकना और गांव को आत्मनिर्भर बनाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. उत्तर प्रदेश में 1.25 करोड़ रोजगार पैदा करने के दावे पर सवाल उठ रहे हैं और विपक्ष इसे सिरे से खारिज कर रहा है.

‘सरकार सिर्फ छलावा कर रही है’

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू का कहना है कि ‘भारतीय जनता पार्टी की सरकार प्रदेश के नौजवानों का छल रही है. ये सरकार श्रमिकों के साथ धोखा करने का काम कर रही है. जब प्रधानमंत्री प्रदेश में मजदूरों और युवाओं को रोजगार देने के लिए और आत्मनिर्भर बनाने का ज्ञान दे रहे थे तो उन्हीं जिलों में प्रदेश कांग्रेस ने मजदूर पंचायत लगाई थी.’

‘मजदूरों ने हमें बताया कि वो कितने परेशान हैं. एक मजदूर ने बताया कि वो वाई फाई का काम करता था. और आप चार महीनों से काम बंद है. काम बंद होने से घर में रोटी-रोजगार दोनों का संकट है. सरकार ने कोई सुविधा नहीं की. एक पेंटर ने बताया कि लॉकडाउन में रोजगार चला गया और हालात ये हैं कि परिवार भूख से मर रहा है. सरकार ने कोई सुविधा नहीं दी. एक मजदूर ने कहा कि मैं 8 हजार कमाता था. गुडगांव में रहता था लेकिन अब गांव में हूं और मेरा परिवार भी परेशान है. दो वक्त की रोटी का जुगाड़ नहीं हो रहा है.’

'Inflation and unemployment record to rise in 2020'

अजय कुमार लल्लू बताते हैं कि ‘सरकार के आंकड़े झूठे हैं. बढ़ई, कुम्हार और सब्जी बेचने वाले जैसे तमाम जैसे तमाम लोग परेशान हैं. और सरकार इन स्वाबलंबियों को भी अपने आंकड़ों में शामिल कर रही है. सरकार आंकड़ेबाजी में जुटी है’. आत्मनिर्भर भारत की पर बात अजय कुमार लल्लू कहते हैं कि ‘ये ढोंग और छालावा है. प्राइवेट सेक्टर हो या पब्लिक सेक्टर. हर सेक्टर में लोगों की नौकरियां गईं हैं. ये सरकार कुछ नहीं कर रही और इनके बस का कुछ नहीं है. ये सरकार लोगों को सिर्फ छल रही है. उन्होंने चीन का मुद्दा हो या फिर देश में लॉकडाउल के दौरान फैली अव्यवस्था का मुद्दा. हर मोर्चे पर केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार फेल हो गई है.’

कोविड-19 महामारी का प्रवासी श्रमिकों पर हुआ असर 

इससे पहले पीएम ने देश के पिछड़े क्षेत्रों में बुनियादी ढांचागत सुविधाएं तैयार करने पर विशेष जोर देते हुए रोजगार सृजन के लिए 20 जून, 2020 को ‘गरीब कल्याण रोजगार अभियान’ का शुभारंभ किया गया था. मोदी सरकार का कहना है कि 125 दिनों का यह अभियान मिशन मोड में चलाया जाएगा. 50 हजार करोड़ रुपये के फंड से एक तरफ प्रवासी श्रमिकों को रोजगार देने के लिए विभिन्न प्रकार के 25 कार्यों को तेजी से कराया जाएगा.

इसी तरह उत्तर प्रदेश में रोजगार की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए पीएम मोदी ने सीएम योदी की मौजूदगी में जो अभियान लांच किया है कि उसमें प्रदेश के 1.25 करोड़ लोगों को रोजगार देने का दावा किया जा रहा है. सरकार कह रही है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसके लिए राज्य में प्रवासी कामगारों के आने के साथ ही स्किल मैपिंग का काम पहले ही शुरू कराया था. प्रदेश सरकार के अनुसार, उसके पास 36 लाख प्रवासी श्रमिकों का पूरा डेटा बैंक मैपिंग के साथ तैयार है. विपक्ष कह रहा है कि सरकार की ये योजना महज जुमला है.

‘सरकार की बातों में सच्चाई कम और बड़बोलापन ज्यादा’

वरिष्ठ पत्रकार नवीन जोशी कहते हैं कि सरकार की योजनाएं हवा में ज्यादा हैं. ये अभियान सच्चाई कम और सरकार का बड़बोलापन ज्यादा लगता है. सच्चाई ये है कि 60 से 70 फीसदी रोजगार तो मनरेगा के कामों में दिया जा रहा है. सवाल ये है कि आत्मनिर्भर योजना के तहत मिला रोजगार स्थाई रोजगार बनेगा और लोग गांव में टिकेंगे ये आप किस आधार पर कह रहे हैं? जैसे गोंडा के कमलापुर गांव की महिलाओं ने नर्सरी लगाई. उन्होंने अपनी पहल और मेहनत से नर्सरी तैयार की. इसमें प्रशासन को लगा बरसात में पौधे तैयार हो जाएंगे और हम पौधे खरीद लेंगे. ये महिलाओं की अपनी सोच और अपनी मेहनत थी जिसमें उन्हें 20 से 22 लाख रुपये मिल गए. ये उनका अपना उद्यम था लेकिन सरकार इसे भी अपने काम में जोड़ रही है.

3 करोड़ कर्मचारी को फायदा, केंद्र सरकार ने लिया बड़ा फैसला

‘देखिए! योजना अच्छी है, हम तो इसके हिमायती हैं कि लोग गांव में रुकें और सरकार उन्हें रोजगार दे. लेकिन कोई पुख्ता रणनीति होनी चाहिए. जैसे हमारे यहां तमाम शिल्प कलाएं हैं. जो मर रही हैं. उन्हें जिंदा करने की जरूरत है. जैसे मुरादाबाद का पीतल उद्योग खत्म हो रहा है, फिरोजाबाद का चूड़ी उद्योग खत्म हो रहा है, अलीगढ़ का ताला उद्योग है. हमारे यहां हर जिले में ऐसी कलाएं हैं. जो दुनियाभ में मशहूर हो सकती हैं. उन्हें बढ़ाना चाहिए.’

‘लेकिन यहां मैं ये भी कहना चाहूंगा कि खाली रोजगार से आदमी नहीं रुकेेगा. उन्हें अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए अच्छा स्कूल चाहिए और इलाज के लिए अच्छा अस्पताल चाहिए. सरकार को लोगों को गांव में रोकने के लिए इस इंफ्रा पर भी काम करना होगा. आदमी मुंबई या गुजरात इसलिए भागता है कि उसे रोटी खानी है. वो इसलिए भी जाता है क्योंकि उसे अपने बच्चों को पढ़ाना और जरूरत पर इलाज मिल जाएगा. इसलिए सरकार रोजगार दे ये अच्छी बात है.’

‘लेकिन आप गांव को तब आत्मनिर्भर बना पाएंगे जब आप उसे चौतरफा विकास देंगे. अच्छा स्कूल देंगे, अच्छा अस्पताल देंगे, पानी की सुविधा देंगे. सबसे बड़ी चीज स्कूल है और गरीब से गरीब आदमी अपने बच्चे को पढ़ाकर के नौकरी करना चाहता है.’

‘तो सच्चाई ये है कि मौजूदा सरकार के पास सबसे बड़ा हथियार रोजगार देने के नाम पर मनरेगा है. इसकी ये आलोचना करते थे. इस योजना की इन्होंने फंडिग बंद कर दी थी. ये इसको गाली देते थे, आज ये सबसे बड़ा सहारा है. सबसे ज्यादा इसी की डिमांड है और जो लोग लौटे हैं वो लोग मजदूरी कर रहे हैं. तो सवाल ये है कि ‘मजदूरी ही रोजगार है क्या?’

तो इसलिए जो 1.25 करोड़ रोजगार की बात सरकार कर रही है उसका दावा जमीन पर जाकर परखना होगा. ये सब जोड़कर आंकड़े बना लेते हैं. अब देखिए. प्रधानमंत्री रोजगार योजना के लांच पर किसी से बात कर रहे थे जो बता रहा था कि मैं बेकरी में ब्रेड बना रहा हूं. तो प्रधानमंत्री ने कहा कि अच्छा अच्छा रस्क बना रहे हो जो चाय के साथ खाते हैं. ये तो ऐसा है कि कोई आदमी चाय बेचकर पकौड़े तलेगा उसको भी रोजगार मान लेते हैं. ठीक है कि वो भी एक रोजगार है लेकिन वो एक मजबूरियों का रोजगार है.

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