अखिलेश यादव ने ‘बॉर्डर’ को क्या तोहफा दिया है?
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बॉर्डर के पास मदद पहुंचा दी है. अखिलेश यादव के संदेश वाहक बनकर पूर्व मंत्री राजपाल कश्यप दलित परिवार के यहां पहुंचे.
कोरोनावायरस की वजह से हुए लॉक डाउन में बहराइच की एक महिला ने भारत नेपाल बॉर्डर पर एक बच्चे को जन्म दिया था. इस बच्चे का नाम बॉर्डर रखा गया. पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ट्वीट कर के इस परिवार के मदद की बात कही तथा अपने संदेश वाहक के रुप में पूर्व मंत्री व सदस्य विधान परिषद राजपाल कश्यप को भेज कर पचास हजार रुपये की आर्थिक सहायता की बात कही थी.
बुधवार को दोपहर 2 बजे थाना मोतीपुर क्षेत्र अंर्तगत झाला कलां पृथ्वी पुरवा गांव सपा के निवर्तमान जिलाध्यक्ष लक्ष्मीनरायन यादव के साथ पहुंचे राज्यपाल कश्यप ने पृथ्वी पुरवा निवासी दम्पति लालाराम पुत्र स्व.किशोरी लाल तथा उनकी पत्नी जामतारा पत्नी लालाराम से मुलाकात कर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की ओर से शुभकामना संदेश देते हुये पचास हजार की त्वरित आर्थिक सहायता प्रदान की तथा परिजनो को फल मेवा व कपड़े आदि दिए.
राजपाल कश्यप ने कहा कि ‘वर्तमान सरकार संवेदनहीन बनी हुई है जो काम मौजूदा सरकार को करना चाहिये वह समाजवादी पार्टी के लोग कर रहे है’ उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय अखिलेश यादव के निर्देश पर इस नवजात बालक के उज्जवल भविष्य हेतु उसकी पढ़ाई लिखाई व अन्य कार्यो हेतु ये आर्थिक सहायता दी जा रही है. इस मौके पर सपा के निवर्मान जिलाध्यक्ष लक्ष्मी नारायन यादव, हाजी इमलाक खां, सदस्य विधान परिषद, पूर्व मंत्री वंशीधर बौद्ध, पूर्व विधायक शब्बीर अहमद, किरन भारती विधानसभा अध्यक्ष बालकिशुन यादव, राजेश तिवारी, देवेश चंद्र, मिश्रा मजनू, शुऐब राईनी, किशोरी लाल पासवान, महताब राईनी, राकेश, रमापति देवी, अजय सिंह, अरमान, प्रेम चन्द साहनी, पम्मू तिवारी समेत काफी लोग मौजूद रहे.
‘7 महीने पहले बॉर्डर के उस पार नेपाल में ईट भट्टे पर मजदूरी करने गए थे. जब कोरोना फैला तो अचानक सब कुछ बंद कर दिया गया और हम दो वक्त की रोटी के मोहताज हो गए. मजबूरन हमें अपने वतन भागना पड़ा. हमारी पत्नी गर्भवती थी. जब हम बॉर्डर पर थे तब हमारी पत्नी की तबीयत खराब हो गई. हमें वहां रुकना पड़ा. वहीं पर हमें बेटा पैदा हुआ. जिसका नाम हमने ‘बॉर्डर’ रखा है.’
ये बात हमें नौनिहाल ‘बॉर्डर’ के पिता लालाराम ने बताई. इन दिनों लालाराम खुश भी हैं और ना खुश भी. खुशी इस बात को लेकर हैं कि उन्हें बेटा पैदा हुआ है और दुखी इस बात को लेकर हैं कि घर में खाने के दाने नहीं हैं. मोतीपुर तहसील क्षेत्र के झाला के पृथीपुरवा गाँव के रहने वाले लालाराम बताते हैं कि जब उन्हें पता चला जो उनके बेटा पैदा हुआ है तभी उन्होंने सोच लिया था जो उसका नाम ‘बॉर्डर’ रखेंगे.
लालाराम नेपाल में ईट भट्टे पर मजदूरी करते हैं. अपने परिवार के साथ साल के 8 से 9 महीने वो ईट भट्टे पर ही रहते हैं. यही उनकी रोटी रोजगार का जुगाड़ है. लॉकडाउन के दौरान नेपाल में उनका गुजर-बसर कैसे हुआ यह पूछे जाने पर वह बताते हैं. की ‘बहुत मुश्किल से 2 महीने काटे थे. दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल था. जब परेशान हो गए तब अपने वतन लौटने का फैसला किया. पत्नी भी गर्भवती थी सोच को भी बहुत परेशानी हो रही थी इसलिए हम भारत लौटना चाहते थे लेकिन जब बॉर्डर पर पहुंचे तो पत्नी को पेट में दर्द होने लगा हमें वहीं पर रुकना पड़ा और वहां हमारा प्यारा ‘बॉर्डर’ पैदा हुआ.’
‘बॉर्डर’ का जन्म भारत नेपाल सीमा पर मौजूद नो मैंस लैंड में हुआ है. पैदा होते ही ‘बॉर्डर’ मशहूर हो गया.
ऐसा नहीं है कि लालाराम के परिवार को कोई सरकारी मदद नहीं मिली. ‘बॉर्डर’ के जन्म के बाद लालाराम और उनके परिवार को सरकारी मदद मिली. उनकी पत्नी को एंबुलेंस से उनके गांव पहुंचा गया. आपको बता दें 23 मार्च को लॉक डाउन होने के बाद भारत नेपाल सीमा पर सैकड़ों मजदूर फंस गए थे. जिन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था.
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रिपोर्ट: सय्यद रेहान कादरी
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