‘मैंने सरकारी सिस्टम की सड़ी हुई लाश देखी जिससे भयंकर बदबू आ रही थी’
‘ट्रेन गोरखपुर से लौटकर झांसी पहुंची तो ट्रेन की सफाई का काम शुरु हुआ. सफाईकर्मी एक-एक करके बोगियों के शौचालय साफ कर रहे थे. सफाई के दौरान एक शौचालय से गंदी बदबू आ रही थी हमने जब शौचालय खोलकर देखा तो उसमें एक लाश पड़ी थी जो सड़ चुकी थी. उससे भयंकर बदबू आ रही थी. हमारा वहां खड़ा होने मुश्किल हो गया था. साहब ये मजदूर का नहीं बल्कि सरकारी सिस्टम सड़ाद है जो अब हमसे बर्दाश्त नहीं हो रही’
नाम न बताने की शर्त पर झांसी रेलवे यार्ड के एक सफाईकर्मी ने हमें ये बात बताई. जिस ट्रेन के शौचालय से मजदूर का सड़ा हुआ शव मिला था वो 23 मई को झांसी से गोरखपुर के लिए चली थी. सफाई का काम तब हो रहा था जब ट्रेन गोरखपुर में सवारियों को उतारकर वापस पहुंची थी. शौचालय से शव मिलने की खबर तेजी से फैली. पड़ताल में पता चला ये शव उत्तर प्रदेश में बस्ती के रहने वाले मोहनलाल शर्मा का है.
मोहनलाल शर्मा 23 मई को झांसी से बस्ती के लिए इस ट्रेन में बैठे थे और शौचालय में ही उनकी मौत हो गई. उनकी मौत के बारे में रेलवे को जानकारी तब हुई जब ट्रेन गोरखपुर से दोबारा झांसी लौट आई. ट्रेन को इस सफर में चार दिन का वक्त लगा. यानी चार दिनों तक मोहनलाल का शव ट्रेन के शौचालय में लड़ा हुआ सड़ता रहा. वैसे हम आपको बता दें कि जिस ट्रेन में मोहनलाल की मौत हुई उसे दो दिनों में वापस झांसी लौटके आना था लेकिन उसे चार दिन का वक्त लगा.
मोहनलाल इकलौते ऐसे मजदूर नहीं है जिनकी मौत रेलवे की अमानवीय कृत्य की वजह से हुई. मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि करीब 80 मजदूरों इस दौरान अपनी जान गंवाई है. और ज्यादा मजदूरों की मौत कैसे हुई इस रहस्य से अभी तक पर्दा नहीं हटा है. हालांकि मोहनलाल की मौत कैसे हुई इसके बारे में तब पता लगे जब विसरा जांच की रिपोर्ट आ जाएगी. रेलवे अभी ये बता पाने की स्थिति में नहीं है कि मोहनलाल के साथ हुआ क्या था?
सफाईकर्मी ने हमें ये जरूर बताया कि जिस शौचालय से शव मिला वो अंदर से बंद था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक मोहनलाल की मौत 24 मई को हो चुकी थी. यानी जिस दिन ट्रेन झांसी से छूटी उससे एक दिन बाद उनकी मौत हो गई थी. शव की छानबीन में मोहनलाल का आधारकार्ड, कुछ कागजात और 27 हजार रुपये मिले थे. मोहनलाल का परिवार बस्ती में रहता है. हमने उनके परिवार में गांव के प्रधान के जरिए बड़े बेटे से बात की. उनके बेटे ने हमें बताया कि मोहनलाल मुंबई में ड्राइवर थे. 23 मई को उनका फोन आया था और उन्होंने कहा था कि हम ट्रेन में बैठक गए हैं जल्दी ही घर पहुंचेंगे. परिवार का ये भी कहना है कि 23 के बाद सीधे 28 को फोन आया कि झांसी में मोहनलाल का शव मिला है.
मोहनलाल के चार बच्चे हैं जो गांव में अपनी मां के साथ रहते हैं. मोहनलाल की पत्नी को शिकायत है कि उन्हें अपने पति का मुंह आखिरी बार देखने तक को नहीं मिला. झांसी में ही पुलिस वालों ने अंतिम संस्कार करा दिया. हमारी किसी ने कोई मदद नहीं की है. सिर्फ मोहनलाल ही नहीं बल्कि दर्जनों मजदूर ऐसे ही हालातों का शिकार हुए हैं और हमारे सरकारी सिस्टम की बेहयाई ये है कि उसकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा. बल्कि रेल मंत्री अपनी पीठ ठोंक रहे हैं और कृषि मंत्री कह रही हैं कि मजदूर अधीर हो गए थे.
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