‘ये समय उन आवाजों को सुनने का है, जो वास्तव में सरोकार रखती हैं’, कमल हासन की PM के नाम चिट्ठी
सेवा में,माननीय प्रधानमंत्री, भारतीय गणराज्य।
आदरणीय महोदय,
मैं यह पत्र देश के एक जिम्मेदार किन्तु निराश नागरिक के तौर पर आपको लिख रहा हूं। 23 मार्च को आपको लिखे अपने पहले पत्र में, मैंने सरकार से आग्रह किया था कि इस मुश्किल घड़ी में वह उन असहाय, कमजोर और आश्रित लोगों को अपनी नज़रों से ओझल न होने दे, जो हमारे समाज के अनाम नायक रहे हैं। अगले ही दिन, राष्ट्र ने एक सख्त और तत्काल लॉकडाउन की आपकी घोषणा सुनी, जो लगभग नोटबंदी की शैली में थी। मैं हतप्रभ ज़रूर हुआ, लेकिन मैंने आप पर, अपने चुने हुए नेता पर भरोसा करना चुना, जिसके प्रति हम यह विश्वास रखना चाहते थे, कि वह हमसे अधिक जानकार है। पिछली बार जब आपने नोटबंदी की घोषणा की थी, तब भी मैंने आप पर भरोसा करना चुना था, लेकिन समय ने साबित कर दिया कि मैं गलत था। समय ने साबित कर दिया कि आप एकदम ग़लत थे महोदय।
सबसे पहले, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आप अभी भी देश के चुने हुए नेता हैं, और आपके अलावा सभी 140 करोड़ भारतीय भी इस संकट के दौरान हर हाल में आपके हरेक दिशानिर्देश का पालन करेंगे। आज, शायद विश्व का कोई दूसरा ऐसा नेता नहीं है, जिसके पास इस तरह का जनसमर्थन हो। आप जो बोलते हैं, जनता अनुसरण करती है। आज पूरा देश इस अवसर पर एकजुट है और उसने आपके कार्यालय पर अपना विश्वास बनाए रखा है। आपने देखा होगा, कि जब आपने स्वास्थ्य के लिए नि:स्वार्थ भाव से और अथक परिश्रम करने वाले अनगिनत स्वास्थ्यकर्मियों की सराहना करने के लिएक देशवासियों का आह्वान किया, तो सबने उनके लिये ताली बजाई और जयजयकार की। हम आपकी इच्छाओं और आदेशों का पालन आगे भी करेंगे, लेकिन हमारे इस अनुपालन को हमारी अधीनता के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए। अपने लोगों के नेता के रूप में मेरी खुद की भूमिका मुझे अपने मन की बात कहने और आपके तरीकों पर सवाल उठाने के लिए मजबूर करती है। अगर मेरी बातों में शिष्टाचार की कोई कमी महसूस हो, तो कृपया क्षमा करें।
मेरा सबसे बड़ा डर यह है, कि नोटबंदी की वही गलती फिर से बड़े पैमाने पर दोहराई जा रही है। जबकि नोटबंदी ने गरीबों की बचत और आजीविका को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाया। आपका यह अ-नियोजित लॉकडाउन भी हमारे जीवन और आजीविका दोनों के ऊपर एक घातक प्रभाव डालने जा रहा है। गरीबों के पास उनका ख़याल रखने के लिए आज सिवाय आपके कोई भी नहीं है महोदय। एक तरफ आप अधिक विशेषाधिकार प्राप्त लोगों से रोशनी का तमाशा आयोजित करने के लिए कह रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ गरीब आदमी की दुर्दशा खुद एक शर्मनाक तमाशा बन रही है। जिस समय आपकी दुनिया के लोगों ने अपनी बालकनियों में तेल के दीये जलाए हैं, गरीब अपनी अगली रोटी सेंकने के लिए काम भर तेल इकट्ठा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। राष्ट्र के नाम अपने अंतिम दो संबोधनों से आप उन लोगों को शांत करने की कोशिश कर रहे थे, जो इन हालात में आवश्यक भी है, लेकिन इसके अलावा भी बहुत कुछ ऐसा है, जिसे किया जाना निहायत जरूरी है। मनोचिकित्सा की यह तकनीक उस विशेषाधिकार सम्पन्न वर्ग की चिंताओं का समाधान कर सकती है, जिसके पास खुशी ज़ाहिर करने के लिए अपनी बालकनी है। लेकिन उन लोगों के बारे में क्या, जिनके सिर पर छत भी नहीं है?
मुझे यकीन है कि आप केवल बालकनी वाले लोगों के लिए एक बालकनी सरकार नहीं चलाना चाहते होंगे, और न ही पूरी तरह से उन गरीबों की अनदेखी करना चाहते होंगे, जो हमारे समाज, हमारी समर्थन प्रणाली की सबसे बड़ी आधार संरचना तैयार करते हैं, जिस पर हमारा मध्य-वर्ग और सम्पन्न वर्ग अपने जीवन का निर्माण करता है। यह सही है कि गरीब आदमी कभी भी फ्रंट पेज की खबर नहीं बन पाता, लेकिन प्राणशक्ति और जीडीपी- राष्ट्र निर्माण के दोनों पक्षों में उसके योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। राष्ट्र में उसकी बहुमत हिस्सेदारी है। इतिहास ने साबित कर दिया है, कि तल को नष्ट करने के किसी भी प्रयास से अन्तत: शीर्ष ही कमज़ोर होता है। यहां तक कि विज्ञान भी इससे सहमति ही जताएगा!
यह पहला संकट है, पहली महामारी जो समाज के शीर्ष तल पर प्रस्फुटित हुई है, और उसका प्रसार सबसे ऊपर से नीचे की तरफ़ हुआ है। लेकिन आपको देख कर ऐसा लगता है महोदय कि आप सबसे नीचे की आबादी को छोड़ कर ऊपर वालों को ही राहत देने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं। लाखों-लाख दिहाड़ी मजदूर, घरेलू कामगार, रेहड़ी-पटरी विक्रेता, ऑटो-रिक्शा तथा टैक्सी चालक और असहाय प्रवासी कामगार इस उम्मीद में सारी तक़लीफ़ें सहन कर रहे हैं कि इस लंबी सुरंग के दूसरे छोर पर प्रकाश की कोई किरण ज़रूर होगी। पर हम केवल एक पहले से ही सुसंगठित मध्य-वर्गीय क़िले को और अधिक सुरक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। महोदय मुझे गलत मत समझिए, मैं यह सुझाव नहीं दे रहा हूं कि हम मध्यम वर्ग या किसी एक वर्ग की उपेक्षा करें। वास्तव में, मैं इसके ठीक विपरीत सुझाव दे रहा हूं।
मैं चाहता हूं कि आपको हर एक किले को सुरक्षित करने के लिए और अधिक प्रयास करना चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि कोई भी भूखा न सोए। COVID-19 को और अधिक शिकारों की तलाश रहेगी, लेकिन हम उसके लिये गरीबों की भूख (एच), थकावट (ई) और अभाव (डी) से एक उपजाऊ खेल का मैदान बना रहे हैं। HED- 20 एक ऐसी बीमारी है जो दिखने में छोटी लगती है, लेकिन COVID-19 की तुलना में वह कहीं अधिक घातक है। COVID-19 के जाने के बाद भी इसका प्रभाव लंबे समय तक महसूस किया जाएगा।
जब कभी ऐसा महसूस होता है कि हमारे पास इस फिसलन की रफ़्तार को थाम लेने का मौका है, हर बार आप अपने आपको एक सुरक्षित ढलान पर फिसलने देते हैं, और उस मौके को एक उत्साही चुनावी-शैली के अभियान में बदल देते हैं। हर बार यही प्रतीत होता है कि आप अपनी सुविधा से जिम्मेदारीपूर्ण व्यवहार को जनसामान्य के ऊपर और पारदर्शिता को राज्य सरकारों के ऊपर टाल रहे हैं। आपके बारे में ऐसी धारणा का निर्माण आप स्वयं कर रहे हैं, ख़ासकर उन लोगों के बीच जो भारत के वर्तमान और भविष्य को बेहतर बनाने के लिए अपनी बुद्धिजीविता का सर्वोत्तम उपयोग करते हुए काम करने में समय बिताते हैं। मुझे खेद है यदि मैंने यहां बुद्धिजीवी शब्द के इस्तेमाल से आपको नाराज़ किया हो, क्योंकि मुझे पता है कि आप और आपकी सरकार को यह शब्द कतई पसंद नहीं है। लेकिन मैं पेरियार और गांधी का अनुयायी हूं, और मुझे पता है कि वे पहले बुद्धिजीवी थे। यह वह बुद्धि है, जो सभी के लिए धार्मिकता, समानता और समृद्धि का मार्ग चुनने में मार्गदर्शन करती है।
केवल उत्तेजक और फ़र्जी प्रचार के माध्यम से येन केन प्रकारेण लोगों के उत्साह को जीवित रखने के आपके रुझानों की वजह से ही शायद उन ज़रूरी कार्रवाइयों की अनदेखी करने की आपकी मंशा दृढ़ हुई है, जिनसे वास्तव में बहुत-सी जानें बचाई जा सकती थीं। महामारी के इस लंबे दौर में, जब पूरे देश में कानून और व्यवस्था को दुरुस्त रखना बेहद अहम कार्यभार था, आपका तंत्र देश के विभिन्न हिस्सों में अज्ञानी और मूर्ख लोगों की सभाओं और जमावड़ों को रोकने में विफल रहा। आज वे भारत में महामारी के प्रसार के सबसे बड़े केंद्र बन गए हैं। इस लापरवाही के कारण जितने लोग जान गंवाने वाले हैं, उन सभी लोगों के लिए कौन जिम्मेदार होगा?
डब्ल्यूएचओ को दिये गये चीनी सरकार के आधिकारिक बयान के अनुसार, 8 दिसंबर को कोरोना के संक्रमण का पहला मामला दर्ज़ किया गया था। भले ही आपने इस तथ्य को स्वीकार किया हो, कि दुनिया को स्थिति की गंभीरता को समझने में बहुत समय लगा, फरवरी की शुरुआत तक, पूरी दुनिया को पता चल चुका था कि यह वायरस एक अभूतपूर्व कहर बरपाने वाला है। भारत का पहला मामला 30 जनवरी को दर्ज़ किया गया था। हमने देखा था कि इटली में क्या हुआ था। फिर भी, हमने समय रहते अपने सबक लिये कोई सबक नहीं सीखा। जब हम अंततः अपनी नींद से जागे, तो आपने 4 घंटे के भीतर 140 करोड़ लोगों के पूरे देश को लॉकडाउन करने का फ़रमान सुना दिया। आपके पास पूरे 4 महीने की नोटिस अवधि थी, जबकि देश की इतनी विशाल आबादी के लिए मात्र 4 घंटे की नोटिस अवधि! दूरदर्शी नेता वे होते हैं, जो समस्याओं के गंभीर होने से बहुत पहले उसके समाधान पर काम करते हैं।
मुझे यह कहते हुए खेद है महोदय, कि इस बार आपकी दृष्टि विफल रही। इसके अलावा, आपकी सरकार और उसके सहयोगियों की सारी शक्ति किसी भी प्रतिक्रिया या रचनात्मक आलोचना का मुंहतोड़ जवाब देने में ख़र्च हो रही है। राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखने वाली और देश की बेहतरी चाहने वाली जो भी आवाजें कहीं से उठती हैं, उन्हें फ़ौरन कुचलने और बदनाम कर देने के लिये आपकी ट्रोल आर्मी पिल पड़ती है, और ऐसी आवाज़ों को राष्ट्र-विरोधी करार दे दिया जाता है।
आज मैंने यह हिम्मत कर ली है कि जिसको कहना हो मुझे राष्ट्र-विरोधी कह ले। परिमाणात्मक रूप से इस तरह के विशाल संकट के लिये अगर आम आबादी तैयार नहीं है, तो इसके लिये उसको दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसके लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ आपको दोषी ठहराया जा सकता है। लोग अपने लिए सरकार चुनते और उसका ख़र्च उठाते ही इसीलिए हैं कि वह उनके जीवन को सुरक्षित और सामान्य बनाये रखे।
इस परिमाण की घटनाओं को दो कारणों से इतिहास में दर्ज़ किया जायेगा, पहला कारण वह तबाही (बीमारी और मृत्यु) है, जो वे अपने मूल स्वभाव के कारण पैदा करती हैं। दूसरा कारण यह है कि वे मनुष्यों की प्राथमिकताओं पर कैसा दीर्घकालिक प्रभाव डालते हैं, और किस तरह के सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव लाते हैं। मैं अपने समाज को एक ऐसे प्रकोप से त्रस्त होते देख कर बहुत दुखी हूं, जो प्रकृति द्वारा हमारी तरफ़ उछाले गये किसी भी दूसरे वायरस के प्रकोप से बहुत अधिक खतरनाक और दीर्घजीवी है।
महोदय, यह समय उन आवाजों को सुनने का है, जो वास्तव में सरोकार रखती हैं। मुझे उनकी परवाह है। यह सभी सीमाओं को तोड़ देने और हर एक से यह स्पष्ट आह्वान करने का समय है कि वे आपके साथ आयें और मदद का हाथ बढ़ाएं। भारत की सबसे बड़ी क्षमता इसकी मानवीय क्षमता है, और हमने अतीत में बड़े-बड़े संकटों को पार किया है। हम इसे भी पार कर लेंगे, लेकिन इसे इस तरह से पार किया जाना चाहिए ताकि सभी एक साथ आएं और इसमें पक्षपात के लिये कोई जगह न हो।
हम नाराज अवश्य हैं, लेकिन हम अब भी आपके साथ हैं।
जय हिन्द।
कमल हासनअध्यक्ष,मक्कल नीधि माईयम।
साभार- द हिन्दू, अंग्रेज़ी से अनुवाद- राजेश चन्द्र