तीन दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत ‘लिंचिंग’ नहीं तो और क्या है ?

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लिंचिंग पर एक बार फिर नई बहस शुरु हो गई है. इस बहस को जन्म दिया है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत नें. भागवत ने कहा है कि भारत में लिंचिंग की आड़ में साजिश चल रही है. लेकिन सवाल ये है कि जहां भीड़ ने तीन दर्जन से ज्यादा लोगों को पीट पीट कर मार डाला वहां लिंचिंग नहीं तो और क्या है?

दशहरा पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है भारत में लिंचिंग जैसा कुछ नहीं है. इस तरह की खबरें एक साजिश का हिस्सा हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख हर साल विजयदशमी पर एक भाषण देते हैं. इस बार उन्होंने संघ के स्वयंसेवकों और अधिकारियों को बताया कि लिंचिंग के बारे में वो क्या सोचते हैं. उनके भाषण में भीड़ द्वारा लोगों को पीट-पीट कर मार दिए जाने की बढ़ती घटनाओं पर विशेष जोर रहा. इस पीछे क्या मकसद है पहले आपको बता देते हैं कि भीड़ ने देश में कितनी हिंसा की है.

भीड़तंत्र की भेंट चढ़ते लोग

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच के आकंड़े कहते हैं कि भारत में मई 2015 और दिसंबर 2018 के बीच 100 से भी ज्यादा घटनाएं हुईं, जिनमें कम से कम 44 लोगों को भीड़ ने मिल कर मार दिया. इस दौरान भीड़ की भेंट चढ़े लोगों में करीब 280 लोग घायल हो गए. भीड़ द्वारा पिटाई में जिन लोगों की मौत हुई उसमें 36, यानी करीब 82 फीसदी मुसलमान थे. मरने वाले लोगों में दादरी का 52 वर्षीय व्यक्ति मोहम्मद अखलाक भी था और अलवर का पहलू खान भी था. भीड़ ने जिन लोगों की हत्या की उसमें कई हत्याओं के आरोप तथाकथित गोरक्षकों पर लगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इन घटनाओं की निंदा की और कहा कि ऐसे लोग गोरक्षक नहीं हो सकते.

वैसे तो लिंचिंग की कितनी घटनाएं हुईं इसके ठीक ठीक आंकड़े मौजूद नहीं है लेकिन इंडियास्पेंड नाम की वेबसाइट बताती है कि सिर्फ जनवरी 2017 और जुलाई 2018 के बीच इस तरह की करीब 69 घटनाएं हुईं, जिनमें कम से कम 33 लोगों की जान चली गई. सुप्रीम कोर्ट में भी लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए कई याचिकाएं दायर की गई हैं. और इन याचिकाओं की सुनवाई करते हुए जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने संसद को एक विशेष कानून लाने के लिए कहा ताकि इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके.

सरकार ने नहीं बनाया कोई कानून

सुप्रीम कोर्ट के कहने के बाद भी अभी तर सरकार ने इस तरह की घनटाओं को रोकने के लिए कोई कानून नहीं बनाया है. हां संघ प्रमुख ने जिस तरह से लिंचिग शब्द को खारिज किया उसने एक नई बहस को जरूर जन्म दे दिया है. मोहन भागवत ने भीड़ हिंसा का व्याख्यान किया है और अपनी राजनीतिक विचारधारा को इससे अलग करने की कोशिश की है. हालांकि लिंचिंग शब्द विदेशी है लेकिन भारत में इस तरह की बढ़ती घटनाएं भारत में राजनैतिक खुराक बन गईं हैं. दशहरा पर दिय अपने भाषण में भागवत ने कहा,

एक समुदाय द्वारा दूसरे समुदाय के व्यक्तियों पर आक्रमण कर उन्हें सामूहिक हिंसा का शिकार बनाने की यह प्रवृत्ति भारत की परंपरा नहीं है. ऐसी घटनाओं को ‘लिंचिंग’ जैसे शब्द देकर सारे देश को और हिन्दू समाज को बदनाम किया जा रहा है. यह देश के तथाकथित अल्पसंख्यक वर्गों में भय पैदा करने का एक षड़यंत्र है और विशिष्ट समुदाय के हितों की वकालत करने की आड़ में लोगों को आपस में लड़ाने का उद्योग है जिसके पीछे कुछ नेता हैं.

मोहन भागवत की ये बात इसलिए भी सुर्खियों में है क्योंकि बीजेपी के कई नेताओं के नाम किसी न किसी तरह लिचिंग के आरोपियों के सिलसिले में सुर्खियों में रहे हैं. अखलाक की हत्या के एक आरोपी के निधन पर हुई शोक सभा में केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा पहुंचे, तो झारखंड में लिचिंग की एक घटना के आरोपियों को जब जमानत मिली तो बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने फूलों के हार से अपने निवास पर इनका स्वागत किया था.

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अब जब लिंचिग का जिक्र मोहन भागवत ने किया तो इसका मतलब ये है कि संघ इसके पीछे किसी रणनीति पर काम कर रहा है. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिंचिंग की घटनाओं की निंदा की है और ऐसी घटनाओं को रोके जाने की अपील की थी.

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