G-7 सम्मेलन में पीएम मोदी को क्यों बुलाया गया ?

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G-7 समूह देशों का भारत हिस्सा नहीं है लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फ्रांस के राष्ट्रपति ने विशेष आमंत्रण देकर बुलाया है. इसका क्या मतलब है. G-7 समूह देशों का ये 45वां शिखर सम्मेलन है जो फ्रांस में हो रहा है.

भारत के प्रधानमंत्री को G-7 सम्मेलन में शामिल होने के लिए बुलाया गया था. यहां पर उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की और भारत-पाकिस्तान के बीच फैले तनाव को लेकर भी दोनों देशों के बीच बात हुई. इस बातचीत और भारत के इस सम्मेलन में शामिल होने के मायनों के समझने से पहले आपको ये बता दें कि ये समूह है क्या ?

जी-7 क्या है?

इस सम्मेलन में दुनिया की सात सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश शामिल होते हैं. जिसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमरीका शामिल हैं. इस समूह को ग्रुप ऑफ सेवन भी कहा जाता है. ये ग्रुप खुद को “कम्यूनिटी ऑफ़ वैल्यूज” यानी मूल्यों का आदर करने वाला समुदाय कहता है. स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की सुरक्षा, लोकतंत्र और कानून का शासन और समृद्धि और सतत विकास इस समूह के सिद्धांत हैं. इस ग्रुप की शुरुआत 6 देशों के सात हुई थी. बाद में इस ग्रुप में कनाडा भी शामिल हो गया और ये ग्रुप ऑफ सेवन बन गया. 1975 में इसकी पहली बैठक हुई थी जिसमें वैश्विक आर्थिक संकट के संभावित समाधानों पर विचार किया गया था.

इस समूह की सालाना बैठक होती है जिसमें G-7 देशों के मंत्री और नौकरशाह आपस हितों के मामलों पर बात करने के लिए एक जगह जमा होते हैं. इस समूह की अध्यक्षता बारी बारी से समूह के देश करते हैं. जिस देश को अध्यक्षता का मौका मिलता है वो इस दो दिवसीय सम्मेलन की मेजबानी करता है. आपको ये भी जान लेना चाहिए कि बातचीत की प्रक्रिया एक चक्र में होती है. जैसे ऊर्जा नीति, जलवायु परिवर्तन, एचआईवी-एड्स और वैश्विक सुरक्षा जैसे कुछ विषय हैं, जिन पर पिछले शिखर सम्मेलनों में चर्चाएं हुई थीं. इस सम्मेलन के आखिर में एक सूचना जारी होती है जिसमें सहमति वाले प्वाइंट का जिक्र होता है.

सम्मेलन में भाग कौन लेता है?

G-7 देशों के राष्ट्र प्रमुख, यूरोपीयन कमीशन और यूरोपीयन काउंसिल के अध्यक्ष इस सम्मेलन में शामिल होते हैं. वैसे इस वक्त यूरोपीयन कमीशन के अध्यक्ष ज्यां क्लॉड यंकर हैं, जो स्वास्थ्य कारणों से इस बार के सम्मेलन में भाग नहीं ले रहे हैं. वहीं यूरोपीयन काउंसिल के वर्तमान अध्यक्ष डोनल्ड टस्क हैं, जो इस सम्मेलन में भाग ले रहे हैं. यहां आपको ये भी जान लेना चाहिए कि इस सम्मेलन में दुसरे देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों को भी भाग लेने के लिए बुलावा भेजा जाता है. इसकी वजह से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसमें शामिल हो रहे हैं. इस बार सम्मेलन में चर्चा का मुख्य विषय “असमानता के खिलाफ लड़ाई” रखा गया.

सम्मेलन के खिलाफ होते हैं प्रदर्शन

G-7 शिखर सम्मेलन के खिलाफ बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं. पर्यावरण से जुड़े लोग पूंजीवाद के खिलाफ आवाज उठाने वाले संगठन इन विरोध-प्रदर्शनों में शामिल होते हैं. इन प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए बड़ी संख्या में सुरक्षा बल भी तैनात किए जाते हैं. अब यहां सवाल ये भी है कि इस बड़े शिखर सम्मेलन का क्या कोई फायदा है. इस सम्मेलन के बारे में कहा जाता है कि अब ये प्रभावी नहीं रहा. लेकिन ये समूह दावा करता है कि एड्स, टीबी और मलेरिया से लड़ने के लिए उसके वैश्विक फंड की शुरुआत की. ये समूह ये भी दावा करता है कि 2002 के बाद से अब तक 2.7 करोड़ लोगों की जान बचाई है. समूह का कहना है कि 2016 के पेरिस जलवायु समझौते को लागू करने के पीछे इसकी भूमिका है. लकिन आपके दिमाग में एक सवाल ये भी होगा कि इस सम्मेलन में चीन क्यों नहीं शामिल होता. या चीन इस ग्रुप का हिस्सा क्यों नहीं है?

चीन और रूस समूह का हिस्सा क्यों नहीं?

चीन दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवथा है, फिर भी वो इस समूह का हिस्सा नहीं है. इसकी वजह चीन की आबादी है. क्योंकि चीन में प्रति व्यक्ति आय संपत्ति जी-7 समूह देशों के मुक़ाबले बहुत कम है. इसलिए वो इस समूह का हिस्सा नहीं है. ऐसे में चीन को उन्नत और विकसित अर्थव्यवस्था नहीं माना जाता है. हालांकि चीन जी-20 देशों के समूह का हिस्सा है, इस समूह में शामिल होकर वह अपने यहां शंघाई जैसे आधुनिकतम शहरों की संख्या बढ़ाने पर काम कर रहा है. अगर बात रूस की करें तो रूस 1998 में इस समूह में शामिल हो गया था और यह जी-7 से जी-8 बन गया था. लेकिन साल 2014 में यूक्रेन से क्रीमिया हड़प लेने के बाद रूस को समूह से निलंबित कर दिया गया था.

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अब ऐसे सम्मेलन में पीएम मोदी को बुलाया जाना भारत के लिए अच्छे संकेत हैं. हालांकि कश्मीर मसले के बाद भारत को वैश्विक बिरादरी का जिस तरह सपोर्ट मिला है वो ये बताता है कि भारत की भूमिका को दुनिया किस नजरिए से देखती है. इस समूह को लेकर कहा जाता है कि अफ्रीका, लैटिन अमरीका और दक्षिणी गोलार्ध का कोई भी देश इस समूह का हिस्सा नहीं है. इसलिए इस समूह की आलोचना भी होती है.

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