गंगा-यमुना के पानी में ऐसा क्या है जो इसे खास बनाता है ?
उत्तर भारत की दो पवित्र नदियां गंगा और यमुना भले ही दूषित हो गईं हों लेकिन लोगों की आस्था इनके लिए कम नहीं हुई है. लोग आज भी गंगाजल के आचमन के लिए, गंगा स्नान के लिए और गंगा जल को अपने घर तक लाने के लिए गंगा तक पहुंचते हैं. लेकिन ऐसा क्या है इन नदियों के जल में जो इसको खास बनाता है.
आप जब भी बीमार होते हैं तो इलाज के लिए एटीबॉयोटिक दवाएं दी जाती हैं. लेकिन अब ये दवाएं भी ज्यादा कारगर नहीं रहीं क्योंकि बैक्टीरिया इन दवाईंयों से लड़ना सीख गए हैं. ऐसे में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में वैज्ञानिक प्रो. गोपाल नाथ ने बैक्टीरिया फगेस को लेकर एक हीलिंग ट्रीटमेंट तैयार किया है, जिसकी मदद से गंभीर से गंभीर रोगों का इलाज संभव है.
प्रो. नाथ का शोध कहता है कि बैक्टीरियोफगेस का सबसे बड़ा स्त्रोत गंगा, यमुना और घाघरा जैसी नदियां हैं. शोध कहता है जिन नदियों का पानी साफ नहीं होगा वहां पर ये बैक्टीरियोफगेस आसानी से पनप सकते हैं. प्रो. नाथ ने अपने ट्रीटमेंट का प्रयोग जानवरों पर किया तो नतीजा अच्छा रहा. इस ट्रीटमेंट से हड्डी में नासूर जैसी बीमारियां भी ठीक होने लगीं.
ये ट्रीटमेंट का बर्न और इन्फेक्शन से पीड़ित मरीजों पर भी प्रयोग किया गया तो उसमें भी प्रो. नाथ को कामयाबी मिली. इस शोध के बाद डायबिटिक और नॉन डायबिटिक मरीजों पर भी प्रयोग किया गया है और दोनों ही तरह से मरीजों पर इसका सकारात्मक असर रहा. प्रो. नाथ का शोध उन मर्जों पर भी कारगर है जिनको ठीक होने में चार से पांच साल का वक्त लगता है.
बैक्टीरियोफगेस का मतलब होता है कि बैक्टीरिया को खाने वाला. प्रो. नाथ का शोध बताता है कि बैक्टीरियोफगेस बैक्टीरिया को खा जाता है. यह बैक्टीरियोफगेस पानी, धरती, हवा में, शरीर के कई हिस्सों में मौजूद होता है. असान भाषा में कहें तो जहां बैक्टीरिया है, वहां बैक्टीरियोफगेस मौजूद होंगे ही. यह बैक्टीरियोफगेस बैक्टीरिया को मारते रहते हैं.
प्रो.नाथ ने बताया है कि वो बैक्टीरियोफगेस को बीमारी वाली जगह पर इजेक्ट करते हैं इस प्रक्रिया को हीलींग कहते हैं. इस तरह बैक्टीरियोफगेस बैक्टीरिया को खाने लगते हैं. कई हफ्तों तक इस तरह से हीलिंग की जाती है और हर दिन बीमारी में बदलाव होता है जिससे धीरे धीरे मर्ज ठीक होने लगती है और इसका नतीजा ये होता है कि मरीज ठीक हो जाता है.प्रो. नाथ कहते हैं कि इस तरह के बैक्टीरियोफगेज गंगा और यमुगा जैसी नदियों में बड़ी तादाद में पाए जाते हैं.