मोदी-योगी आमने सामने, केंद्रीय मंत्री ने नहीं मानी योगी की बात
17 अन्य पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए योगी सरकार के फैसले को केंद्र की मोदी सरकार ने तगड़ा झटका दिया है. राज्य सरकार की मुहिम को केंद्र सरकार में मंत्री थावरचंद गहलोत ने झटका देते हुए संसद में कहा कि किसी वर्ग की किसी जाति को अन्य वर्ग में डालने का अधिकार सिर्फ संसद को है.
केंद्रीय मंत्री से राज्यसभा में बहुजन समाज पार्टी के सांसद सतीश चंद्र मिश्र ने सवाल किया था. इस सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने कहा है कि किसी जाति को किसी वर्ग डालने का अधिकार संसद के पास है. उन्होंने कहा,
“यह उचित नहीं है और राज्य सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए था. किसी भी समुदाय को एक वर्ग से हटाकर दूसरे वर्ग में शामिल करने का अधिकार केवल संसद को है. पहले भी इसी तरह के प्रस्ताव संसद को भेजे गए लेकिन सहमति नहीं बन पाई.”
दरअसर योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश की की 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का फैसला किया है और जिन जातियों को अनुसूचित जाति में डाला गया उन्हें प्रमाणपत्र बांटने का काम भी शुरु हो गया है. योगी सरकार ओर से इस बारे में शासनादेश भी जारी कर दिया गया था और जिलाधिकारियों को जाति प्रमाण पत्र जारी करें.
लेकिन योगी सरकार के इस फैसले पर मोदी सरकार का रुख योगी के फैसले के खिलाफ जा सकता है. केंद्र सरकार की आपत्ति के बाद योगी सरकार के इस फैसले पर सवाल खड़ा हो गया है. बीएसपी मुखिया ने योगी सरकार के इस फैसले को पहले ही असंवैधानिक बताया था. अब मंगलवार को केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत ने भी राज्य सभा में यही बात कही.
योगी-मोदी के आमने सामने आने से बीजेपी पसोपेश में है. राज्य सरकार का कोई प्रतिनिधि या बीजेपी नेता कुछ भी कहने से बच रहा है. कहा जा रहा है कि मोदी सरकार की आपत्ति के बाद योगी सरकार अपने इस फैसले को वापस ले सकती है. केंद्रीय मंत्री ने साफ कहा है कि अगर योगी सरकार जातियों को ओबीसी से एससी में लाना चाहती है तो उसके लिए एक प्रक्रिया है. दरअसल राज्य सभा में बोलते हुए बीएसपी नेता सतीश चंद्र मिश्र ने कहा था कि,
“संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत संसद की मंज़ूरी से ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की सूचियों में बदलाव किया जा सकता है. यहां तक कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग की सूचियों में बदलाव करने का अधिकार भारत के राष्ट्रपति के पास भी नहीं है. बसपा चाहती है कि इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए लेकिन यह निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार होना चाहिए और अनुपातिक आधार पर अनुसूचित जाति का कोटा भी बढ़ाया जाना चाहिए. संसद का अधिकार संसद के पास ही रहने देना चाहिए, यह अधिकार राज्य को नहीं लेना चाहिए.”
आपको बता दें कि योगी सरकार ने जिन 17 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का फैसला किया है, उनमें से ज़्यादातर की सामाजिक स्थिति दलितों जैसी ही है. सूबे में जिन जातियों को योगी सरकार के फैसले का फायदा होगा उनकी सूबे में आबादी लगभग 14 फीसदी है. इन जातियों में निषाद, बिंद, मल्लाह, केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआरा, प्रजापति, राजभर, कहार, कुम्हार, मांझी, तुरहा, गौड़ जैसी जातियां हैं.
इन जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की पहले भी कोशिश होती रही है. मुलायम सिंह और मायावती भी सरकार में रहते हुए ऐसा करने की कोशिश कर चुके हैं. अखिलेश यादव ने भी इस बारे में काफी प्रयास किए लेकिन कामयाबी नहीं मिली. अब योगी सरकार ने भी इस आदेश को जारी कर दिया लेकिन केंद्र सरकार का रुख योगी के फैसले के खिलाफ जा रहा है.