मिले माया और मुलायम, हवा में उड़ गए…
लखनऊ : राजनीति में कुछ भी हो सकता है, जो कभी अच्छे दोस्त होते हैं वो दुश्मन हो जाते हैं और जो दुश्मन होते हैं वो दोस्त हो जाते हैं. मैनपुर में माया-मुलायम जब शुक्रवार को एक मंच पर दिखाई दिए जो पुरानी बातें याद आ गईं. यकीनन ये दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया क्योंकि दशकों की अदावत के बाद राजनीति महत्वाकांक्षा ने दो दुश्मनों को मिला दिया.
मैनपुर के क्रिश्चियन कॉलेज के ग्राउंड में सपा-बसाप-रालोद की साझा रैली में सबसे ज्यादा दर्शनीय था माया-मुलायम का एक मंच पर आना. लोकसभा चुनाव में इस रैली का क्या महत्व है ये आप इस बात से समझ सकते हैं कि मैनपुर ही नहीं बल्कि समूचे यूपी में एक सपा-बसपा के नेताओं के बीच संदेश पहुंचा दिया है कि आप मिलकर मतदान करें. माया-मुलायम के मंच साझा करने के गवाह रालोद के मुखिया अजित सिंह भी बने. दोनों पार्टियों के लिए ये रैली बहुत जरूरी थी लिहाजा इसमें करीब 2 लाख लोगों के पहुंचने की बात कही जा रही है.
मंच पर मुलायम सिंह यादव, मायावती और अखिलेश यादव एक साथ दिखाई दिए.
मुलायम सिंह यादव ने इस मौके पर कहा, “हमारे भाषण कई बार आप सुन चुके हो. मैं ज्यादा नहीं बोलूंगा. आप हमें जिता देना. पहले भी जिताते रहे हो, इस बार भी जिता देना.”
मुलायम ने ये भी कहा, “मायावती जी ने हमारा साथ दिया है, मैं इनका एहसान कभी नहीं भुलूंगा. मुझे खुशी है वे हमारे साथ आई हैं, हमारे क्षेत्र में आई हैं.”
मुलायन ने अपने कार्यकर्ताओं से ये भी कहा, “मायावती जी का हमेशा सम्मान करना.”
जब बिगड़े थे माया-मुलायम के रिश्ते
1995 में हुए गेस्ट हाउस कांड को ना तो मायावती भूली हैं और ना ही मुलायम सिंह, लेकिन दोनों नेताओं ने अपनी अपनी पार्टियों को आगे बढ़ाने के लिए उस कांड को भुलाना ही मुनासिब समझा. जब गेस्ट हाउस कांड हुआ था तब सूबे की राजनीति में बदलाव आया था और अब मैनपुरी में जब दोनों नेता एक मंच आए तब भी राजनीति में बड़े परिवर्तन की उम्मीद लगाई जा रही है. माया-अखिलेश से पहले मुलायम-कांशीराम साथ मिलकर चुनाव लड़े थे. 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई और 1993 के विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा था. इस गठबंधन को जीत मिली थी और मुलायम सिंह यादव सीएम बने थे. हालांकि, दो ही साल में दोनों पार्टियों के बीच रिश्ते खराब होने लगे.
मुलायम सिंह को इस बात की भनक लग गई थी कि मायावती बीजेपी के साथ जा सकती हैं.मायावती लखनऊ स्थित गेस्ट हाउस में विधायकों के साथ बैठक कर रहीं थीं. इतने में एसपी के कार्यकर्ता और विधायक वहां पहुंचे और बीएसपी के कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट करने लगे. आरोप है कि मायावती पर भी हमला करने की कोशिश की गई लेकिन उन्होंने खुद को एक कमरे में बंद करके खुद को बचा लिया. इस घटना के बाद मायावती ने समर्थन वापस लेने के ऐलान कर दिया. इसके बाद मायावती बीजेपी से समर्थन से सीएम बन गईं. तब से माया-मुलायम की अदावत के किस्से मशहूर हैं लेकिन मुलायम के बेटे अखिलेश ने इस अदावत को खत्म करने की कामयाब कोशिश की है अब देखना ये होगा कि इस फायदा दोनों पार्टियों को कितना होता है.