‘नोटबंदी के बाद 50 लाख लोगों ने नौकरी गंवाई’

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Demonetisation

नोटबंदी के नफा-नुकसान के बारे में कई रिपोर्ट आ चुकी हैं उन्हीं रिपोर्टस में एक और रिपोर्ट आई है. अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की. सेंटर फॉर सस्टेनेबल एंप्लॉयमेंट (सीएसई) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि नोटबंदी में 50 लाख लोगों की जान चली गई.

मोदी सरकार ने 2016 में नोटबंदी की थी. शुरु में कहा गया कि नोटबंदी ब्लैक मनी और आतंकवाद पर लगाम लगाएगी. बाद में इसके फायदे बदल गए. अब अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के तहत आने वाले सेंटर फॉर सस्टेनेबल एंप्लॉयमेंट (सीएसई) ने अपनी एक रिपोर्ट में एक चौकाने वाली जानकारी दी है. रिपोर्ट के मुताबिक साल 2016 से 2018 के बीच देश में करीब 50 लाख लोगों ने अपनी नौकरियां खो दीं.

रिपोर्ट में बताया गया कि नौकरियां गंवाने का सिलसिला 2016 में केंद्र सरकार द्वारा लगाई गई नोटबंदी से शुरू होता है. रिपोर्ट में ये तो नहीं बताया गया कि नौकरियां खोने का कारण नोटबंदी ही है लेकिन ये कहा गया है कि देश में बेरोजगारी की समस्या साल 2011 से बनी हुई है. साल 2018 तक बेरोजगारी दर छह प्रतिशत तक बढ़ गई जो 2000-2011 के मुकाबले दोगुनी है.

लीक हुई रिपोर्ट से हुआ बड़ा खुलासा

CME ने सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी के उपभोक्ता पिरामिड सर्वेक्षण के आकंड़ों के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है. ये आंकड़े बेरोजगारी को लेकर नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन द्वारा किए गए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण की उसी रिपोर्ट के तहत इकट्ठा किए गए थे जिसे अभी तक जारी नहीं किया गया है.

जनवरी में लीक हुई रिपोर्ट के आधार पर बताया गया कि 2017-18 के बीच देश में बेरोजगारी दर 6.1 प्रतिशत रही जो बीते 45 सालों में सबसे ज्यादा है. CME की रिपोर्ट के मुताबिक बेरोजगारी की समस्या उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों और 20 से 24 वर्ष के युवाओं के बीच सबसे ज्यादा है. शहरी इलाकों से जुड़े रोजगार में इस आय समूह के 13 प्रतिशत लोग हैं, लेकिन उनमें से 60 प्रतिशत बेरोजगार हैं.

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