लोकसभा चुनाव 2019: महागठबंधन को कितना नुकसान पहुंचा सकती है निषाद पार्टी ?

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पूर्वांचल में गोरखपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में मिली हार ने बीजेपी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है. यहां करीब साढ़े तीन लाख निषाद मतदाता है और अगर ये बीजेपी से छिटका तो यहां से बीजेपी का जीतना मुश्किल हो जाएगा.

निषाद पार्टी बीजेपी के लिए इसलिए जरूरी हो गई है क्योंकि गोरखपुर और उसके आसपास की लोकसभा सीटों पर इसका अच्छा खासा प्रभाव है. यही कारण है कि बीजेपी ने हर कीमत पर निषाद पार्टी को अपने पाले में लाने की कामयाब कोशिशें कीं. सपा के उम्मीदवार और मौजूदा सांसद प्रवीण निषाद को गोरखपुर से टिकट दिया. ये सब अप्रत्याशित इसलिए था क्योंकि निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद ने खुद ये एलान किया था कि वो सपा-बसपा गठबंधन का हिस्सा है. लेकिन अचानक उन्होंने अपना फैसला बदल लिया. निषाद पार्टी के फैसले के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उनपर निशाना भी साधा.

बीजेपी में शामिल हुए प्रवीण निषाद

प्रवीण निषाद के बीजेपी में शामिल होने के बाद केंद्रीय मंत्री और पार्टी नेता जेपी नड्डा ने कहा कि निषाद पार्टी ने पीएम मोदी की नीतियों से प्रभावित होकर बीजेपी से गठबंधन किया है. लेकिन ये बात वो भी समझते हैं कि जिन प्रवीण निषाद को उन्होंने टिकट दिया है उन्होंने इतिहास रचते हुए उनके सबसे मजबूत नेता और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सीट जीती थी.
निषाद बनाम निषाद का है मुकाबला

गोरखपुर में अब मुकाबला दो निषादों के बीच में हैं. बीजेपी ने प्रवीण निषाद को टिकट दिया है तो सपा ने रामभुआल निषाद को वहां से टिकट दिया है. गोरखपुर लोकसभा सीट योगी आदित्यनाथ के लिए प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई सीट है और वो हर हाल में ये सीट इस बार जीतना चाहते हैं. योगी आदित्यनाथ यहां से 1998 से लगातार सांसद चुने जाते रहे हैं. लेकिन 2017 में सीएम बनने के बाद जब उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था. इसके बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी ने पूरा जोर लगाया था कि यह सीट बरकरार रहे, लेकिन उपचुनाव में निषाद पार्टी के साथ मिलकर सपा ने यह सपना चकनाचूर कर दिया था.

कई सीटों पर निर्णायक है निषाद वोट

निषाद पार्टी की पकड़ निषाद वोटबैंक पर अच्छी है. बीजेपी इसकी ताकत को अच्छी तरह से समझती है. इससे पहले के चुनावों में भी सपा और बसपा निषाद जाति के लोगों का वोट हासिल करने के लिए निषाद उम्मीदवार को ही टिकट देती रही हैं. लेकिन उनके वोट बंट जाते थे. पिछले साल उपचुनाव में साझा उम्मीदवार होने के कारण निषाद जाति के लोगों के वोट एक ही खाते में गए, जिसका नतीजा ये हुआ कि बीजेपी को हार मिली. इतना ही नहीं यूपी में तकरीबन 12 फीसदी आबादी मल्लाह, केवट और निषाद जातियों की है. यूपी की तकरीबन 20 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां निषाद वोटरों की संख्या अधिक है.

बीजेपी जानती है कि पूर्वांचल की गोरखपुर, गाजीपुर, बलिया, संत कबीरनगर, मऊ, मिर्जापुर, भदोही, वाराणसी, इलाहाबाद, फतेहपुर, सहारनपुर और हमीरपुर लोकसभा सीटों पर निषाद वोटरों की संख्या ज्यादा है लिहाजा ये पार्टी बीजेपी के लिए अहम हो गई.

बीजेपी को लगता है कि निषाद वोट बीजेपी के खाते में जाने से उसकी पकड़ मजबूत हो जाएगी. निषाद पार्टी का गठन 2016 में संजय निषाद ने किया था इस पार्टी का नाम निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल है. 2017 विधानसभा चुनाव में पार्टी को ज्ञानपुर सीट से जीत हासिल हुई जहां से विजय मिश्रा जीते थे.

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