ब्रह्मांड में ऐसी ताक़त नहीं है जो यह कहने पर मजबूर कर सके कि रफाल के दस्तावेज किसने दिए – एन राम

0

रफाल मामले में कुछ और नई चीजें निकल सामने आई हैं. सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के दौरान  भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने बुधवार को कहा था कि ‘द हिन्दू’  के खिलाफ मुकदमा किया जाएगा. क्योंकि अखबार ने गोपनीयता के कानून का उल्लघंन किया है.

एटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि फ़्रांस से 36 लड़ाकू विमानों की ख़रीद से जुड़े दस्तावेज रक्षा मंत्रालय से चोरी हो गए गए हैं. एटार्नी जनरल ने ये भी कहा कि जो दस्तावेज चोरी हुए उनके आधार पर ‘द हिन्दू’ ने अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की है. उन्होंने ये भी कहा कि अखबार ने जिन दस्तावेजों को प्रकाशित किया उस आधार पर रफाल की जांच नहीं होनी चाहिए. क्योंकि ये सरकार की गोपनीय फाइलें हैं. ‘द हिंदू’ अखबार पर सवाल उठने के बाद ‘द हिन्दू पब्लिशिंग ग्रुप’ के चेयरमैन एन राम ने कहा है कि ये रिपोर्ट उन्होंने जनहित में प्रकाशित की हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए उन्होंने कहा,

”इसमें कुछ भी परेशानी की बात नहीं है. जो प्रासंगिक था उसे हमने प्रकाशित किया है और मैं इसके साथ पूरी तरह से खड़ा हूं. हमने रक्षा मंत्रालय से दस्तावेज़ चुराए नहीं हैं. हमें ये दस्तावेज़ गोपनीय सूत्रों से मिले हैं और इस ब्रह्मांड में कोई ऐसी ताक़त नहीं है जो मुझे यह कहने पर मजबूर कर सके कि दस्तावेज किसने दिए हैं. हमने जिन दस्तावेज़ों के आधार पर रिपोर्ट प्रकाशित की है वो जनहित में हमारी खोजी पत्रकारिता का हिस्सा है. रफ़ाल सौदे की अहम सूचनाओं को दबाकर रखा गया जबकि संसद से लेकर सड़क तक इसे जारी करने की मांग होती रही. हमने जो भी प्रकाशित किया है, उसका अधिकार ‘संविधान के अनुच्छेद 19 (1) से मिला है. ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना के अधिकार का हिस्सा है. इससे राष्ट्र सुरक्षा और उसके हितों से समझौते का कोई सवाल ही खड़ा नहीं होता है. लोकतांत्रिक भारत को 1923 के औपनिवेशिक गोपनीयता के क़ानून से अलग होने की ज़रूरत है. गोपनीयता का क़ानून औपनिवेशिक क़ानून है और यह ग़ैर-लोकतांत्रिक है. स्वतंत्र भारत में शायद ही किसी प्रकाशन के ख़िलाफ़ इस क़ानून का इस्तेमाल किया गया हो. अगर किसी तरह की जासूसी हो रही हो तो वो अलग बात है. हमने जो छापा है वो जनहित में है. इसलिए अटॉर्नी जनरल के तर्क को माना जाए तो इससे खोजी पत्रकारिता पर बहुत बुरा असर पड़ेगा. ये केवल हिन्दू का मामला नहीं है. अन्य स्वतंत्र प्रकाशकों के लिए भी ख़तरनाक है. 1980 के दशक में हमने बोफ़ोर्स की जांच में अहम भूमिका अदा की थी. इस सरकार में मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर डर बढ़ा है. भारतीय मीडिया को इसे लेकर बहुत कुछ करने की ज़रूरत है.”

तीन जजों के बेंच कर रही है सुनवाई

रफाल पर पुनर्विचार याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और केएम जोसेफ़ की बेंच कर रही है. सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई 14 मार्च तक टाल दी है. हाल ही में ‘द हिन्दू’ अखबार ने रक्षा सौदों के संबंध कई रिपोर्ट को छापा था और इसके बाद सरकार घिर गई थी. वहीं याचिका दाखिल करने वाले प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वो अदालत में वही दस्तावेज रख रहे हैं जो सार्वजनिक रूप से पहले से ही मौजूद हैं. ये मामला सेना से जुड़ा हुआ है क्योंकि भारत ने अपनी सेना को आधुनिक करने के प्रोग्राम के तहत फ़्रांस की दसो कंपनी से 8.7 अरब डॉलर में 36 रफ़ाल लड़ाकू विमानों का सौदा किया था.

About Post Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed