Pulwama Terror Attack: दुनिया हमले पर क्या कह रही है और भारत की सियासत क्या कर रही है?

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पुलवामा में जैश-ए-मोहम्मद ने जो आतंकी हमला किया है उसमें पुलवामा का ही आत्मघाती आंतकी इस्तेमाल किया गया. इससे पहले जब भी इस तरह के आत्मघाती हमले अंजाम दिए गए उसमें पाकिस्तानी आत्मघाती आतंकियों का इस्तेमाल किया गया. जैश सरगना मसूद पहले ही इस हमले की चेतावनी दे चुका था लेकिन भारत की सुरक्षा एजेंसियां चूक गईं.

हमले के बाद पूरे देख में आक्रोश है और सभी दल एक सुर में कह रहे हैं कि आतंकी हमले पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. लेकिन ये भी सच है कि सभी दल अपने अपने हित के हिसाब से इस हमले पर प्रतिक्रिया दे रहे है. महज़ महीने भर बाद ही लोक सभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने वाली है. केंद्र सरकार राफेल पर घिरी है. तीन तलाक़, नागरिकता कानून में संशोधन के मसले पर भी मोदी के सामने बड़ी चुनौतियां हैं.

इन तमाम मसलों के बीज पुलवामा में केंद्रीय आरक्षित पुलिस बल (CRPF) के काफ़िले पर अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला होने से हालात और ज्यादा खराब हो गए हैं. हमले के बाद सभी राजनीति दलों ने प्रतिक्रिया दी है. और अपने अपने हिसाब से एक सुर में आतंकी हमले की निंदा की है. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा,

 ‘आतंकी हमले का ख़ुफ़िया अलर्ट पहले से था. लेकिन वे कौन लोग हैं जो इस तरह के अलर्ट पर भी कार्रवाई नहीं कर सकते. जिन्होंने नहीं की. आपने उन्हें ही पूरी ज़िम्मेदारियां क्यों दे रखी हैं? उन्हें पद से हटाइए.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी एक तरफ़ कह रहे हैं कि वे और उनकी पार्टी ‘इस मुश्किल घड़ी में सरकार के साथ है. हमें कोई बांट नहीं सकता.’ लेकिन पार्टी प्रवक्ता कहते हैं,

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके ‘56 इंच के सीनेकी ताक़त दिखाने की चुनौती दे रहे हैं.

पीएम मोदी अपील कर रहे हैं कि ‘यह ‘भावनात्मक पल’ है. और देश के लोगों का खून खौल रहा है, लेकिन पीएमओ में मंत्री जितेंद्र सिंह इस हमले के बाद जम्मू-कश्मीर के सियासी दलों को कटघरे में खड़ा कर चुके हैं. प्रधानमंत्री भी सभी से कह रहे हैं कि उन्होंने इस मामले में सेना को कुछ भी करने की खुली छूट दे दी है. जबकि सभी को पता है कि इतने बड़े मसले पर कोई भी फैसला सिर्फ देश का राजनीतिक नेतृत्व ही ले सकता है.

ये तो तय है कि इस आतंकी हमले को लेकर आने वाले लोकसभा चुनाव में जमकर सियासत होने वाली है. फिर चांहे वो सत्ताधारी पार्टी करे या फिर विपक्ष करे. लेकिन अहम ये है कि देश की सुरक्षा को चाकचौबंद कैसे किया जाए ये सोचें. पुलवामा का आतंकी हमला बीते तीन दशक का सबसे बड़ा आतंकी हमला है.

इस हमले जो जिस आंतकी संगठन ने अंजाम दिया है उसका मुखिया अजह मसूद पाकिस्तान में है. भारत की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इंडियन एयरलाइंस के एक यात्री विमान के हाइजैक किए जाने के बाद 155 यात्रियों को सुरक्षित लाने के बदले उसको रिहा किया था. उस वक्त के विदेश मंत्री जसवं सिंह उसे विमान से कंधार लेकर गए थे. मोदी सरकार ने मसूद को आतंकी घोषित कराने के लिए यूएम में कोशिश की लेकिन चीन ने रोक लगा दी.

पुलवामा हमले के बाद चीन और पाकिस्तान में ज्यादा चर्चा नहीं हो रही है. चीन इस हमले की आलोचना तक नहीं की है. इस घटना को चीनी मीडिया ने बहुत कम जगह दी है. चीनी मीडिया ने अजहर मसूद के मसले पर भी ज्यादा बात नहीं की है. चीन और पाकिस्तान की करीबी के बारे में सब जानते हैं और चीन, पाकिस्तान में अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर पर काम कर रहा है.

वहीं पाकिस्तानी मीडिया में पुलवामा हमले को लेकर कोई खास खबर नहीं छापी गई है. पाकिस्तान अखबारों में पुलवामा हमले से ज्यादा 17 फ़रवरी को होने वाले सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान के पाकिस्तान दौरे से जुड़ी खबरें छपी हैं.

पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने भारतीय उप-उचायुक्त को तलब किया और पुलवामा हमले में पाकिस्तान पर आरोप को लेकर विरोध पत्र थमा दिया. पाकिस्तान ने अपने ऊपर लगे आरोपों को खारिज कर दिया है. पाकिस्तान का कहना है कि सीआरपीएफ हुआ हमला एक साजिश है जिससे वर्तमान पीएम चुनाव जीत सकें.

सऊदी अरब ने पुलवामा में सीआरपीएफ़ के काफ़िले पर हुए हमले की निंदा की है. हम आपको बता दें कि 19 फरवरी को क्राउन प्रिंस भारत भी आएंग. अमेरिका और यूरोप भी में मीडिया ने पुलवामा हमले को लेकर ज्यादा गंभीरता नहीं दिखाई. अमेरिकी राष्ट्रपति ने तो इस घटना के बा कोई बयान तक नहीं दिया है. इसराइल के राष्ट्रपति बिन्यामिन नेतन्याहू ने ट्वीट कर संवेदना व्यक्त की है. ईरान ने भी इस हमले के बाद घटना की निंदा की है.

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