पुलवामा हमला: मौलाना मसूद और और भारत की कूटनीतिक चूक
पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद एक बाद फिर सुर्खिंयों में है. जम्मू कश्मीर के पुलवामा जिले में के अवंतिपुरा इलाके के लिए लेकपुरा से गुजर रहे सीआरपीए के काफिले को इस आतंकी संगठन के लिए स्लीपर सेल ने निशाना बनाया और करीब 4 दर्जन जवानों को शाहदत देनी पड़ी.
संसद हमले के बाद ये जैश का एक और बड़ा आतंकी हमला था. इस हमले के बाद जैश के प्रवक्ता मोहम्मद हसन ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि इस हमले के आदिल अहमद उर्फ वक़ास ने अंजाम दिया. ख़बर ये भी है कि वक़ास पुलवामा का ही रहने वाला था और एक साल पहले ही जैश में शामिल हुआ था.
जैश का मुखिया भारत के लिए हमेशा सिरदर्द रहा
जैश-ए-मोहम्मद पर नकेल कसने और इसके मुखिया के मसले पर भारत की सैन्य और कूटनीकित विफलताएं कई बात उजागर हो हो चुकी हैं. भारत को सबसे पहले 1999 में चौंकाया मसूद ने चौंकाया था जब वायपेई सरकार में 24 दिसंबर 1999 को 180 यात्रियों से भरे विमान को मसूद के साथियों ने अगवा कर लिया था. मौलाना मसूद अज़हर को भारत ने 1994 में कश्मीर में सक्रिय चरमपंथी संगठन हरकत-उल-मुजाहिदीन का सदस्य होने के आरोप में श्रीनगर से गिरफ़्तार किया था. इसके बाद आतंकियों ने विमान को हाईजैक किया और कंधार ले जाकर भारतीय जेलों में बंद मौलाना मसूद अजहर, मुश्ताक ज़रगर और शेख अहमद उमर सईद को रिहा करने की मांग की. विमान अहरण के 6 दिन बाद भारत सरकार ने 31 दिसंबर को आतंकियों को रिहा किया और विमान को आंतकियों के कब्जे से छुड़ाया
साल 2000 में मसूद ने जैश-ए-मोहम्मद बनाया
फरवरी 2000 में मसूद अजहर ने जैश-ए-मोहम्मद बनाया जिसका मकसद भारत में आतंक फैलाना है. जब जैश बनाया गया तो इशमें हरकत-उल-मुजाहिदीन और हरकत-उल-अंसार जैसे आतंकी संगठन शामिल हुए. ख़ुद मौलाना मसूद अज़हर हरकत-उल-अंसार का महासचिव रहा है और हरकत-उल-मुजाहिदीन से भी संपर्क में रहा हैं.
जैश ने कब शुरू किए भारत पर आतंकी हमले
जैश ने सबसे पहला हमला अपने गठन के दो महीने बाद श्रीनगर में बदामी बाग़ में भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर किया था. ये आत्मघाती हमला था. इसके बाद 28 जून 2000 को भी जम्मू कश्मीर सचिवालय की इमारत पर हमला किया. 24 सितंबर 2001 को एक आत्मघाती हमलावर ने विस्फोटक से भरी कार से श्रीनगर में विधानसभा भवन पर हमला किया. इस हमले में 38 लोग मारे गए. इसक बाद जैश-ए-मोहम्मद एक बड़े हमल को अंजाम दिया 13 दिसंबर 2001 को उसने निशाना बनाया. इसके बाद जनवरी 2016 में पंजाब के पठानकोट में भी जैश ने हमा किया. 2008 में हुए मुंबई हमले में भी जैश का हाथ था. 2001 में संसद पर हुए हमले का दोषी अफ़ज़ल गुरु भी जैश से जुड़ा था. दिसंबर 2016 में कश्मीर के उड़ी में भी जैश ने हमला किया था जिसमें 18 जवान मारे गए थे.
जैश-ए-मोहम्मद पर भारत की कूटनीतिक चूक
जैश को भारत, ब्रिटेन, अमरीका और संयुक्त राष्ट्र ने ‘आतंकी’ संगठनों की सूची में रखा है. 2002 में पाकिस्तान ने जैश पर पाबंदी लगाई थी लेकिन जैश प्रमुख मौलाना मसूद अज़हर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के बहावलपुर में रहता है. और पाकिस्तानी सेना उसे संरक्षण देती हैं. पठानकोट हमले के बाद उसके ठिकाने पर छापेमारी की गई थी लेकिन कोई खास फर्क इससे पड़ा नहीं. भारत कई बार मसूद के प्रत्यपर्ण की कोशिश कर चुका है लेकिन पाकिस्तान हर बार सबूतों की बात कहकर भारत की बात टालता रहा है. पठानकोट हमले के बाद तो जैश ने अल-कलाम पर एक ऑडियो क्लिप जारी करके भारत की एजैंसियों को मजाक उड़ाया था.
चीन तो मसूद को आतंकी साबित होने से बचाने के लिए यूएन में वीटो तक इस्तेमाल कर चुका है. और भारत की कूटनीति और सैन्य नीति यहां पर फेल साबित हुई है. जैश-ए-मोहम्मद भारत में कथित गौरक्षकों के मुसलमान युवकों पर हमले और कश्मीर मुद्दे को लेकर मुसलमानों को ‘उकसा’ रहा है. और उसका सबसे पसंदीदा हथिया है आत्मघाती हमला. पुलवामा में भी जैश ने इसी तरह से हमले को अंजाम दिया. पुलवामा हमले के बाद अब एक बार फिर से भारत सरकार को मसूद पर नकेल कसने के लिए अपनी सैन्य नीति और कूटनीति की समीक्षा करने की जरूरत है.