यूपी में राहुल की कांग्रेस इतनी आशावान क्यों है ?
11 फरवरी को कांग्रेस की सबसे बड़ी उम्मीद, नई महासचिव और पूर्वी यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी अपने भाई और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ यूपी आएंगी. उनके दौरे को लेकर कांग्रेसियों में उत्साह है और तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं. प्रियंका अपने दौरे में प्रयाग जाएंगी, लखनऊ में रोड-शो करेंगी. ये सब क्या यूपी में कांग्रेस को जिंदा कर पाएगा.
ये सवाल इसलिए उठा है क्योंकि राहुल गांधी कह रहे हैं कि वो फ्रंटफुट पर खेलेंगे. लेकिन कैसे? बीते एक दशक में कांग्रेस की यूपी में हालत पतली ही होती गई है. कांग्रेस का वोट बैंक भी यूपी में लगातार कम हुआ है.
2009 में 78 लोक सभा सीटों पर चुनाव लड़ा, 21 सीटें जीती थीं, 18.2 फीसदी वोट मिले, 2012 में विधान सभा चुनाव में 355 सीटों पर लड़कर 28 सीटों विजयी हुई और उसे कुल 11.6 फीसदी वोट हासिल हुए.
2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस 67 सीटों पर लड़ी और 2 सीटों के साथ 7.5 फीसदी वोट मिले, 2017 में सपा के साथ मिलकर विधानसभा की 114 सीटों पर लड़ी सिर्फ7 सीटें जीती, वोटबैंक सिमटकर 6.25 फीसदी रह गया.
कांग्रेस को 2014 में सपा के 22.70 और बसपा के 19.60 फीसदी मतों की तुलना में 7.5 फीसदी कम वोट मिले थे. यानी कांग्रेस चौथे नंबर पर है. ऐसी हालत में प्रियंका गांधी वाड्रा के क्या कर सकती हैं. उनको जब पूर्वी यूपी सौंपने का एलान किया गया तब प्रियंका विदेश में थीं और राहुल गांधी अमेठी में. सिर्फ एक प्रेस नोट जारी करके कांग्रेस ने अपने बड़े दांव का एलान किया.
दरअसल राहुल गांधी 2009 के लोकसभा चुनावों को देख रहे हैं. जब यूपी में कांग्रेस ने 21 सीटें मिलीं थी उनमें से 18 सीटें नई थीं. जबकि पुरानी नौ सीटों में से वो छह सीटें हार गई. तो कांग्रेस सोच रही है कि कुछ नई सीटों पर वो 2019 में भी जीत सकती है. कांग्रेस लड़े कितनी भी सीटों पर लेकिन फोकस 20 से 30 सीटों पर ही है. दूसरा कांग्रेस युवा नेताओं को ज्यादा तरजीह दे रही है.
ग्रामीण इलाकों पर ज्यादा फोकस
2009 में पार्टी को 21 में से 17 सीटें ग्रामीण बहुल लोकसभा क्षेत्रों में मिली थीं. लिहाजा पार्टी का पूरा फोकस देहात पर है. राहुल गांधी का किसानों को लक्ष्य कर घोषणाएं करना इसी रणनीति का हिस्सा लगता है. प्रियंका के कारण पूर्वी यूपी की ग्रामीण बहुल सीटों पर पार्टी को फायदा हो सकता है ऐसी पार्टी को उम्मीद है. यूपी में कांग्रेस गैर बीजेपी वोटरों में मुस्लिम, ब्राह्मण और यादवों को छोड़ कर बाकी पिछले वर्ग के मतदाताओं पर फोकस कर रही है. यहां कांग्रेस ये भी देख रही है कि 2009 में उसके कौन से उम्मीदवार जीते थे. कांग्रेस अब पिकनिक पॉलिटिक्स से बाहर आकर यूपी पर फोकस कर रही है लेकिन ये आसान नहीं होगा क्योंकि इस बार उसके लिए करो या मरो वाले हालात हैं.