गोसंरक्षण: गाय माता है लेकिन…

0

गाय हमारी माता है, हमको कुछ नहीं आता है’ यही काम आजकल सरकार कर रही है. गाय माता तो है लेकिन उसके लिए किया कुछ नहीं जाता. अब आप कहेंगे कि ये कैसे कह सकते हैं सरकार कर तो बहुत कुछ रही है गोसंरक्षण के लिए. तो चलिए देखते हैं सरकार कर क्या रही है और है क्या ?

तो पहले आपको बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी सरकार से कहा है कि जिला प्रशासन और नगर निगम आवारा पशुओं के लिए बाड़े बनाएं और उनके चारे-पानी के इंतजाम करे. दरअसल अदालत ने आदेश उस याचिका पर दिया जिसमें कहा गया था कि इस बारे में शासनादेश के बावजूद ठीक से अमल नहीं हो रहा है. इस मामले में अगली सुनवाई 25 जनवरी को होगी. खैर ये तो कोर्ट कचहरी की बात रही. हो क्या रहा है इसकी बात करते हैं.

गाय का सम्मान सभी करते हैं. लेकिन बेचारी गाय जब तक दूध दे तब तक वो किसानों के लिए अच्छी है. दूध खत्म हुआ तो किसान उसे छोड़ कर छुट्टा बना देते हैं. वैसे ही सरकार ने भी नब्ज पकड़ ली है. गाय जब तक चुनावी फायदा दे रही है तब तक सरकार उसके बारे में सोचती है जैसे ही चुनावी फायदा कम हुआ गाय से कोई लेना देना नहीं.  

योगी आदित्यनाथ की गोसंरक्षण नीति क्या वाकई में गायों के लिए सुविधाएं उपलब्ध करा रही है. सुविधाओं के बारे में बाद में बात करेंगे पहले गायों की वजह से परेशानी क्या-क्या हो रही है.

  1. खेती को बड़ा नुकसान हो रहा है.
  2. सड़कों पर दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं.
  3. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हो रहा है.

गायों को बचाने के लिए सरकार गोहत्या के मामले में गैंगस्टर एक्ट तक लगवा दे रही है. अभी एक ऐसे ही मामले में लखनऊ हाई कोर्ट ने योगी सरकार को लताड़ भी लगाई. इसके बाद योगी आदित्यनाथ ने गोकल्याण सेस लगाया और गायों और गोवंश के संरक्षण के लिए सक्रियता दिखाई. साल की शुरूआत में एक खबर आई थी कि योगी आदित्यनाथ ने 10 जनवरी तक सारे छुट्टा गोवंश को गो संरक्षण केंद्रों में पहुंचाने के आदेश दिए थे. सीएम साहब ने सभी जिलों के डीएम के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के कर ये आदेश दिया था.

सीएम के आदेश के बाद डीएम और एसएसपी ने काम शुरू भी किया. गोवंश पकड़ गए लेकिन समस्या ये खड़ी हो गई कि ये रखे कहां जाएं. 9 जनवरी को यूपी के मुख्य सचिव अनूप चन्द्र पांडेय ने हर ग्राम पंचायत में अस्थाई गोशालाएं बनाने के लिए एक टास्क फोर्स के गठन की घोषणा कर दी. इस फोर्स में ग्राम्य विकास, राजस्व, पुलिस पंचायती राज और पशुधन अधिकारियों के साथ प्रधानों को भी शामिल करने का फैसला किया गया. डीएम के निर्देशन में ये टास्क फोर्स काम करेगी. ये टास्क फोर्स ये तय करेगी कि गोशाला बनी या नहीं बनीं. गोवंश का भरण-पोषण हुआ, बीमारियों के इलाज ठीक से हो रहा है या नहीं. इतना ही नहीं मुख्य सचिव हर हफ्ते इस फोर्स के कामों की समीक्षा करेंगे.

तो ये तो नहीं कहा जा सकता कि सरकार कुछ कर नहीं रही कर रही है लेकिन कैसे, इस पहलू को भी समझ लीजिए. एक आकंड़े के मुताबिक यूपी में करीब 21 लाख छुट्टा और 10 लाख से ज्यादा निराश्रित गोवंश है. यानी इतने पशुओं को रखने के लिए साढ़े सोलह हजार बड़े मैदानों से भी जमीन की जरूरत है. अब इतनी जमीन कहां से आएगी? कोई नहीं बता रहा. इसके अलावा सातवें राज्य विधि आयोग की ओर से बनाए गए गोसंरक्षण अधिनियम 2018 के लिए सरकार क्या कर रही है? इस विधेयक का मसौदा 206 पन्नों का है 21 जून 2018 से सीएम साहब के पास है. लेकिन इसको अमल में लाने का कोई काम नहीं हुआ.

गौवध निवारण अधिनियम 1955 में आज के हिसाब से बदलाव करके ये रिपोर्ट तैयार की गई है.1955 के कानून में समय समय पर बदलाव हुए हैं. लेकिन 2018 से पहले 2002 में ही इसमें संशोधन किया गया था. जस्टिस एएन मित्तल द्वारा प्रस्तावित इस एक्ट में गोसंरक्षण के तमाम कानूनी पहलुओं और धार्मिक मान्यताओं का जिक्र है. इस एक्ट में सभी पहलुओं पर विस्तार से बात की गई है. इसमें कहा गया है कि,

  • विवादित मीट की अधिकृत लैब से जांच में गौमांस होने की पुष्टि होने के बाद ही पुलिस कार्रवाई की जाए.
  • राज्य भर में ऐसी प्रयोगशालाएं खोलने के लिए राज्य सरकार को आर्थिक व्यवस्था करे.
  • अपराध की पुष्टि होने पर इसमें दो से सात साल की सजा और एक लाख रु तक के जुर्माना.
  • गौशालाएं खोलने और उसके लिए रखरखाव के लिए आर्थिक प्रबंध करने की बात कही गई.
  • एक से दूसरे स्थान तक गोवंशीय पशुओं को लाने-ले जाने के लिए परमिट का भी प्रावधान है.
  • गोवंश को रखने और चारा पानी के इंतजाम के लिए तहसील स्तर पर बड़ी गौशालाओं की जरूरत.
  • अदालतों में जारी मुकदमों की तेज पैरवी की भी जरूरत बताई गई.

गोवंश से जुड़े अदालतों में 2017 में ही गोहत्या से जुड़े 32,542 मुकदमे चल रहे थे जिनमें 52,129 लोग आरोपित थे. 2018 में इसमें 30 फीसदी वृद्धि हो चुकी है. ये तो रिपोर्ट की बात रही अब आते हैं कि योगी सरकार ने क्या किया. सौ बात की एक बात ये है कि सरकार कुछ नहीं किया. बस उसने गौ संरक्षण के नाम पर प्रदेश में मौजूद काजी हाउसों का नाम बदल कर गौसंरक्षण केन्द्र कर दिया है. गो सेवा आयोग के अध्यक्ष के लिए मुख्य सचिव के बराबर कैडर दे दिया है. जुलाई, 2017 से अब तक इस आयोग ने गोवंश का कितना संरक्षण किया है और सड़क पर निकल देख सकते हैं. एक और बात जानकर हैरानी होगी कि सरकार करोड़ों रुपये में कान्हा उपवन खोल रही है लेकिन साल 2010 से लखनऊ में स्थापित 54 एकड़ के कान्हा उपवन बदहाल है.

लखनऊ के कान्हा उपवन को अपर्णा यादव का एनजीओ चलाता है. अपर्णा यादव के एनजीओ को पांच साल में गायों के लिए 8.35 करोड़ मिले लेकिन गायों के संरक्षण में बुनियादी फर्क भी नहीं आया. सरकार तो पीएसी कैंपों में भी गोसंरक्षण योजना शुरू करने का फैसला किया लेकिन ये लागू नहीं हो सका क्योंकि पीएसी मुख्यालय ने आपत्ति जताई. अब सरकार जेलों में गोसंरक्षण केंद्र खोल रही है. मेरठ, रायबरेली, सीतापुर, सीतापुर, आगरा, सुल्तानपुर जैसे 12 जिलों की जेलों में ये केंद्र खोले जाएंगे. ये वो जेलें हैं जहां पर पहले ही अव्यवस्थाओं का बोलबाला है वहां सरकार गाय पलवा रही है. वाह योगी जी अस्थाई गोशालाएं बनाकर आप कितने गोवंश को संरक्षित कर सकते हैं ये सोचने की बात है. और सोचने की बात ये भी है कि गोवंश संरक्षण के नाम पर कितने के बारे न्यारे हो जाएंगे.

About Post Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *