2019 का वो हथियार जिससे विपक्षियों को पटखनी देने की तैयारी कर रहे हैं राजनीति दल !

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वो दौर चला गया जब नेता घर-घर, गांव-गांव जाकर लोगों से वोट मांगते थे. खांटी राजनीति का वक्त बदल चुका है. नेतागीरी का तरीका बदल गया है. अब नेता नेता नहीं रहा बल्कि ब्रांड बन गया है. और उसका प्रमोशन वैसे ही किया जाता है कि जैसा कि किसी ब्रांड का प्रमोशन होता है. चलिए पहले आपको एक आंकडा बताते हैं.

फेसबुक के माध्यम से नेता 36% वोटरों तक पहुंच सकता है. भारत में 18 से 65 आयु वर्ग के 27 करोड़ लोग हर महीने फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं. 2014 के लोकसभा चुनावों के मुकाबले देश में फेसबुक का इस्तेमाल करने वालों की तादाद अब दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है.

अब 2019 में सभी राजनीतिक दल फेसबुक का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करेंगे. यानी सोशल मीडिया पर सभी राजनीतिक दल अपनी सक्रियता बढ़ाएंगे. यानी सभी नेता इस मंच को भुनाने में लगे हैं. डेटा पोर्टल ‘स्टेटिस्टा’ के आंकड़े बताते हैं कि फेसबुक के ज्यादातर उपभोक्ता 30 साल से कम उम्र वाले पुरुष हैं और वो शहरी इलाकों में रहते हैं. यानी सोशल मीडिया की मदद से अगर कोई राजनीतिक दल या कोई नेता अपनी सही रणनीति से प्रचार करता है तो वो अपने पक्ष में हवा बनाने में कामयाब हो सकता है. फेसबुक पर अगर सभी सक्रिय मतदाताओं की सूची बनाई जाए तो सबसे ज्यादा सक्रियता 20 से 30 साल के युवा इसमें शामिल हैं. यानी अगर इन युवा मतदाताओं तक पहुंचना है तो सोशल मीडिया सबसे अच्छा माध्यम है.

फेसबुक का इस्तेमाल करने वाले में से 63% की उम्र 30 साल से कम है. 20 से 24 साल की उम्र की कुल आबादी में से 55% युवाओं के फेसबुक पर अकाउंट हैं. अगले आम चुनावों में 14 करोड़ वोटर पहली बार वोट डालेंगे. इनमें से लगभग 53% यानी 7.50 करोड़ लोग फेसबुक पर काफी सक्रिय हैं.

जमीन पर सोशल मीडिया पर चुनाव लड़े जाएंगे!

अब जरा इस आंकड़े को ध्यान से समझिए. दिल्ली एनसीआर में रहने वाले 20 से 65 साल के मतदाताओं की करीब 63 % आबादी फेसबुक पर सक्रिय है. ये आंकड़े अलग-अलग शहरों और राज्यों के हिसाब से अलग अलग हैं. अब एक और आंकड़ा जो एडवर्टाइजिंग प्लेटफार्म के माध्यम से हमें मिला उसके मुताबिक भारत में फेसबुक के कुल उपभोक्ताओं में से लगभग 81% हाई स्पीड फोर-जी कनेक्शन इस्तेमाल कर रहे हैं. कुल मिलाकर सच्चाई ये है कि तकनीक और सोशल मीडिया ने चुनाव लड़ने का तरीका एक दम बदल दिया. इस कारण ये है कि डेटा सर्व सुलभ है. और राजनीतिक दल आईसेल के माध्यम से मतदाओं तक अपनी पहुंच बना रहे हैं.

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