‘नोटबंदी का अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था पर आघात था’
8 नवंबर 2016, ये तारीख इतिहास में बड़े बड़े अक्षरों में दर्ज हो गई है. वक्त के साथ इस तारीख और इस दिन लिए गए एक एतिहासिक फैसले नोटबंदी को लेकर कई बातें सामने आ रही हैं. जब मोदी सरकार ने नोटबंदी का फैसला किया था उस वक्त सरकार के आर्थिक सलाहकार थे अरविंद सुब्रमण्यन,सुब्रमण्यन ने रिटायर होने के बाद एक किताब लिखी. ‘ऑफ काउंसिलः द चैलेंजेस ऑफ दमोदी-जेटली इकनॉमी’. किताब में नोटबंदी पर ‘टू पजल ऑफ डिमॉनेटाइजेशन’ नाम से एक पूरा चैप्टर है। इसमें नोटबंदी से जुड़ी कई बातें विस्तार से बताई हैं.
अचानक 500 और 1000 के नोट बंद करने से इकॉनमी को तगड़ा झटका लगा था. इसकी वजह से 8 फीसदी की दर से बढ़ रही अर्थव्यवस्था 6.8 फीसदी के निचले स्तर पर जा पहुंची. एक ही झटके में 86 फीसदी करंसी को कागज के टुकड़े बना देने की सबसे ज्यादा मार असंगठित क्षेत्र पर पड़ी. नोटबंदी एक अनोखा फैसला था. आधुनिक इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं है, जब सामान्य परिस्थितियों में किसी देश ने नोटबंदी जैसा फैसला लिया हो. नोटबंदी लागू करने के पीछे पीएम नरेंद्र मोदी के पास कोई ठोस वजह नहीं थी. अचानक से 90 हजार करोड़ रुपये छू मंतर हो गया और किसी को पता भी नहीं चला. हमें बैंकों के सुधार पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है और यह सुधार उसका निजीकरण है. मेरे हिसाब से एनबीएफसी के एसेट क्वालिटी का रिव्यू करना चाहिए.
अरविंद सुब्रमण्यम, पूर्व आर्थिक सलाहकार
नोटबंदी करके क्या चाहती थी सरकार ?
दो साल पहले केंद्र सरकार ने पांच सौ और एक हज़ार के नोटों का चलना अचानक बंद कर दिया था. प्रधानमंत्री ने देश को संबोधित करते हुए कहा था कि इससे कालेधन पर लगाम लगेगी. लेकिन बाद में ये आंकड़े सामने आए कि नोटबंदी के बावजूद 99 फीसदी नोट वापस बैंकों में आ गए. सरकार अब कह रही है कि इस कदम से आयकर भरने वालों की संख्या बढ़ गई.