तेलंगाना का संग्राम…KCR के लिए नहीं रहा आसान! जानिए कैसे

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दक्षिण की राजनीति में बीजेपी अपनी जमीन तलाश रही है और तेलंगाना उसे सबसे उपजाऊ जमीन के रूप में नजर आ रहा है. तेलंगाना में 7 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे लेकिन माना ये जा रहा है कि ये चुनाव कहीं ना कहीं 2019 के संग्राम के समीकरण बनाएगा.

जब तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता और मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने तेलंगाना विधानसभा भंग की थी तो ये लग रहा था कि KCR की सधी की हुई राजनीति का ये हिस्सा है. लेकिन अब तस्वीर में कुछ धुंधला छटा गया और कुछ और चीजें उभर कर सामने आई हैं. तेलंगाना में एक बाद जो इतने दिनों में बदली है वो ये है कि बीजेपी एक तरफ है. टीआरएस एक तरफ है. और बाकी सभी दल एक तरफ हैं. ये बदलाव इसलिए आया क्योंकि कांग्रेस ने अपनी राजनीति सूझबूझ का परिचय देते हुए तेलगू देशम पार्टी और बाकी छोटी पार्टियों को साथ लेकर पीपुल्स फ्रंट बनाया है ये फ्रंट KCR के लिए मुश्किल का सबब बनने लगा है.

सिर्फ KCR ही नहीं बल्कि BJP और मोदी के लिए भी मुश्किल ये है कि अगर तेलंगाना में ये फ्रंट सफल रहा तो 2019 में विपक्ष की राजनीति रणनीति को नई धार देने का काम करेगा. खैर ये बाद बात है अभी आप ये समझिए कि बीते कुछ महीनों में ऐसा क्या हुआ है तेलंगाना में कि सियासी समीकरण बदल गए हैं. दरअसल आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू का जब से NDA और मोदी से मोहभंग हुआ वो ग़ैर बीजेपी पार्टियों को एकजुट करने के मिशन में लग गए हैं. तेलंगाना में 119 सीटें हैं और तीन दावेदार हैं बात बीजेपी की करें तो अभी तक यहां बीजेपी तीसरे नंबर पर है. अभी तक तो तेलंगाना में समीकरण बदले हैं उसके मुताबिक पीपुल्स फ्रंट केसीआर की पार्टी टीआरएस को कड़ी टक्कर देने के स्थिति में है. 100 सीटों को जीतने का दावा करने वाले KCR अब बहुमत तक पहुंचने की जुगत में लग गए हैं. अभी हाल ही में KCR ने एक चुनावी रैली में ये कहा कि

“अगर टीआरएस हार जाती है तो मेरा कोई नुक़सान नहीं होगा. मैं चला जाऊंगा और अपने फ़ार्महाउस में आराम करूंगा.”

2014 में वो देश के सबसे युवा राज्य के मुख्यमंत्री बने KCR को ये क्या कहना पड़ा ये समझना मुश्किल नहीं है. अभी तक KCR ने जिन कल्याणकारी योजनाओं पर 52000 करोड़ खर्च किए थे उनके दम पर जीत का दम भर रहे थे. लेकिन अब समीकरण वैसे नहीं हैं. और इसकी वजह ये है कि कुछ तबकों की नाराजगी सामने आ रही है. नौकरियां पैदा करने, खाली पड़े सरकारी पदों को भरने, गरीबों को घर देने, मुस्लिमों और पिछड़ी जातियों को 12 फीसदी आरक्षण देने का वादा अभी तक अधूरा है. लिहाज ये कहा जा सकता है कि KCR के लिए सत्ता हासिल करना आसान नहीं होगा.

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