6 दिसंबर 1992: क्या हुआ था इस दिन जो भुलाए नहीं भूलता ?

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6 दिसंबर 1992, वो तारीख जिसने हिन्दुस्तान में शुरूआत की एक नए किस्म की राजनीति की, तारीख जिसने हिन्दुस्तान की राजनीति को 360 डिग्री पर घुमा दिया. 6 दिसंबर की सुबह अयोध्या के लोगों को ठंडक का अहसास रोज़ की तरह ही हो रहा था लेकिन कुछ सुलग रहा था अयोध्या में और उसकी गर्मी लोग महसूस कर रहे थे.

गीता जयंती थी उस दिन, गीता जयंती के बारे में तो जानते ही होंगे आप, नहीं जानते तो बता दें आपको, इसी दिन द्वापर में महाभारत हुई थी. कलयुग में भी एक महाभारत का आंरभ इसी दिन 6 दिसंबर 1992 को हुआ.

सुबह 7.30 बजे…

विनय कटियार को भारत के प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव का फोन आया और उन्होंने विनय कटियार से पूछा कि सब ठीक है न. विनय कटियार ने कहा सब ठीक है. मंच विवादित ढांचे से करीब 300 मीटर दूर है कारसेवक वहीं रहेंगे. जब कटियार पीएम से बात कर रहे थे उसी वक्त उनके घर आडवाणी, जोशी और अशोक सिंघल नाश्ते पर कारसेवा की योजना पर बातचीत करने के लिए मौजूद थे.

सुबह 9.30 बजे…

कारसेवकों ने रात में जो तय किया था उसको करने का समय आ गया था. तय ये हुआ था कि कारसेवा सिर्फ दिखाने के लिए होगी. तैयारी पूरी हो चुकी थी. 9.30 बजते-बजते अयोध्या में हाहाकार के हालात बनने लगे थे. मुहूर्त 11.30 बजे का था और इसी समय जुलाई 1992 में विवादित स्थल से बाहर जो एक चबूतरा बनाया गया था वहां साधु-संत प्रतीकात्मक स्तंभ बनाने की शुरुआत करने वाले थे. कारसेवकों को बैरिकेडिंग के बाहर से उस जगह पर अक्षत, फूल, पानी डाल कारसेवा करनी थी.

करीब 10 बजे…

करीब 10 बजे 150 से 200 साधु-संत पूजन के लिए जैसे चबूतरे के पास पहुंचे तभी लालकृष्ण आडवाणी, अशोक सिंघल और मुरली मनोहर जोशी को साथ लेकर एडिशनल एस.पी. अंजू गुप्ता वहां पहुंच गईं. आडवाणी चबूरते के पास पहुंचे ही थे कि कारसेवक भड़क उठे और बैरिकेडिंग तोड़कर चबूतरे पर पहुंचने की कोशिश करने लगे. पुलिस ने भीड़ को खदेड़ना चाह लेकिन तब तक हालात खराब हो चुके थे. बमुश्किल संघ के स्वयंसेवक और बजरंग दल के लोगों ने तीनों नेताओं को रामकथा कुंज के मंच तक पहुंचाया. यहीं से इनको भाषण देना था. ये मंच जहां पर बनाया गया था वहां से विवादित ढांचा करीब 250 मीटर था. विवादित जगह का मुख्य दरवाजा बंद कर दिया गया था और रामलला के दर्शन चालू थे. वहीं पर गर्भगृह के सामने मानस भवन की छत पर विश्व हिंदू परिषद ने पत्रकारों को बैठाया.

दोपहर 11 बजे…

कारसेवकों के हुजूम ने पाबंदियों को अपनी दरकिनार कर दिया और मानस भवन की छत पर कब्जा कर लिया. विवादित ढांचे के पास ही सीता रसोई थी जहां पुलिस कंट्रोलरूम में दिल्ली और लखनऊ से सारी सूचनाएं आ रही थीं.

दोपहर 12 बजे…

दोपहर के 12 बजने वाले थे और आडवाणी का भाषण चल ही रहा था कि शेषावतार मंदिर की तरफ से भीड़ ने पुलिसबलों पर पत्थर फेंकने शुरू कर दिए. पहले कारसेवकों ने चबूतरे का घेरा और फिर राम जन्मभूमि परिसर में घुस गए. थोड़ी देर बाद शेषावतार मंदिर की ओर से कुछ लोग ढांचे पर पत्थर फेंकने लगे. भगदड़ मची और हजारों लोग जन्मभूमि परिसर में घुस गए. सारी व्यवस्थाएं फेल हो गईं थी. करीब 200 सौ लोग गुंबद के ऊपर चढ़ गए. 25 हजार से ज्यादा लोग विवादित परिसर में थे और लाखों कारसेवक विवादित ढांचे के चारों ओर गोलबंद हो चुके थे. सुरक्षा व्यवस्था फेल हो गई थी और रामकथा कुंज से लालकृष्ण आडवाणी जो कारसेवकों से लौट आने की अपील कर रहे थे वो भी नाकाम साबित हो रही थी. बारह बजे तक परिसर पूरी तरह कारसेवकों के हवाले था. पहले कारसेवकों ने हॉटलाइन काटी. फिर बैरिकेडिंग के लोहे के पाइपों से गुंबदों पर हमला किया. वो चबूतरा जहां कारसेवा होनी थी वहां पूजा-सामग्री पैरों तले कुचली जा रही थी और तमाम साधु-संत अपने मठों में लौट गए थे. कारसेवक गुस्से से लाल थे और विवादित इमारत गिरा रहे थे.

6 दिसंबर को राम की अयोध्या ने जो महाभारत देखी वो कभी नहीं भूलेगी. 25 साल बाद भी अयोध्या में ध्वंस की धूल और उसके गुबार दिखाई देते हैं. विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका की मर्यादाएं कैसे तार तार होती हैं सब ने वो मंजर देखा है अयोध्या में. लेकिन अब फैसला सर्वोच्च न्यायलय को करना है. इंतजार जारी है…

 

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