कोरोना काल में कब तक खोले जा सकेंगे स्कूल?
कुछ दिन पहले केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने स्कूल के घंटे कम करने पर विचार करने की बात कही थी, लेकिन फिर भी ज़्यादातर परिजन फिलहाल स्कूल खोले जाने के पक्ष में नहीं हैं. ऐसे वक्त में जब देश में हर रोज़ 60 हज़ार से ज़्यादा संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं. तब मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि 1 सितंबर से चरणबद्ध तरीक़े से स्कूल खुल सकते हैं.
बच्चों के लिए कोविड -19 का “एटिट्यूड काफी प्रोटेक्टिव” रहा है. डॉ रवि मलिक के मुताबिक़, दुनियाभर में इस बीमारी की चपेट में आए लोगों में सिर्फ 2% ऐसे हैं, जो 18 साल की उम्र से कम है. उनके मुताबिक़, भारत में भी लगभग यही स्थिती है. अगर स्कूल खोलने पर विचार हो ही रहा है तो “ये इस बात पर निर्भर करता है कि भारत के किस कोने में स्कूल खुलने हैं. जहां इस वक़्त मामले कम हैं, वहां तो स्कूल खोलने के बारे में सोच सकते हैं, लेकिन दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु जैसी ज़्यादा मामलों वाली जगहों पर 1 सितंबर स्कूल खोलने के लिए बहुत जल्दी हो जाएगा.
- हाल में लोकल सर्किल संस्था ने एक ऑनलाइन सर्वे करवाया था, जिसमें भारत के अलग-अलग हिस्सों से माता-पिता और दादा-दादी की ओर से 25 हज़ार से ज़्यादा प्रतिक्रियाएं मिलीं. 58% लोगों ने कहा कि वो नहीं चाहते, अभी स्कूल खुलें
- 47% लोगों ने अलग अलग कारण बताए कुछ लोगों का कहना है कि, वो अपने बच्चों को ख़तरे में नहीं डालना चाहते, बच्चे अगर घर में संक्रमण ले आएंगे तो घर के बुज़ुर्गों को गंभीर ख़तरा हो सकता है, स्कूल में सोशल डिस्टेंसिंग मुश्किल होगी. इसके इलावा कुछ लोगों को ये भी लगता है कि स्कूल खुलने से कोविड-19 और ज़्यादा तेज़ी से फैलेगा.
बच्चों को कोरोना से कितना खतरा ?
ब्रिटेन और अमरीका जैसे देशों में कुछ ऐसे मामले सामने आए थे जिनमें बच्चों को कोरोना वायरस से जुड़ा दुर्लभ इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम हुआ था. लेकिन इसमें भी बहुत गिने-चुने बच्चों की हालत ही इतनी गंभीर हुई थी कि कुछ को वेंटिलेटर की ज़रूरत पड़ी थी. इसके पीछे की वजह वायरस के प्रति इम्यून रिस्पॉन्स में देरी को भी माना गया, कुछ वैसे ही जैसे कावासाकी रोग में होता है. वैज्ञानिक ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि इन मामलों में कोरोना वायरस के प्रति इम्यून रिस्पॉन्स में ये देरी क्यों हुई?
चीन के शेनजेन में 2020 की शुरुआत में हुए एक अध्ययन में कहा गया था कि बच्चों के कोरोना वायरस की चपेट में आने का ख़तरा उतना ही होता है. इस अध्ययन में ये चिंता भी जताई गई थी कि बिना कोई लक्षण दिखे बच्चे इस वायरस को दूसरों में फैला सकते हैं. लेकिन उसके बाद हुए अध्ययनों में ऐसी चिंताएं कम ही देखने को मिली.
फ्रेंच आल्प्स में एक क्लस्टर का अध्ययन किया गया. जिसमें पता चला कि एक कोरोना पॉज़िटिव बच्चा 100 से ज़्यादा लोगों के संपर्क में आया था, लेकिन उनमें से एक में भी उस बच्चे से वायरस नहीं गया था. आइसलैंड, दक्षिण कोरिया, नीदरलैंड और इटली में सामुदायिक अध्ययनों में पाया गया कि बच्चों में वयस्कों की तुलना में वायरस होने की संभावना कम थी. इतालवी क्षेत्र ने अपनी 70% आबादी का टेस्ट किया था और ये अध्ययन उसने अपनी उस पूरी टेस्टेड आबादी पर किया था. ऐसे में स्कूल में ज़्यादा बच्चे आएंगे, इसका मतलब ज़्यादा शिक्षक भी काम पर आएंगे, और बच्चों के मां-बाप स्कूल के गेट पर होंगे, और ये साफ़ नहीं है कि जब इतने व्यस्क भी आपस में संपर्क में आएंगे तो कोरोना वायरस के फैलाव पर कितना असर पड़ेगा?
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