क्या कांग्रेस के शिकंजे से छूट रहा है राजस्थान, BJP ने मायावती के साथ मिलकर बनाया है यह प्लान?
राजस्थान में सियासी उठापटक जारी है. अब ऐसा लग रहा है की बीजेपी बीएसपी प्रमुख मायावती के भरोसे कांग्रेस को राज्य की सत्ता से बाहर करने की जुगत में है. 200 सदस्यों वाली राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस के इस वक़्त 107 विधायक हैं. जिनमें छह विधायक वो हैं जो बसपा से आए हैं. बसपा ने इन विधायकों के लिए भी जारी किया है.
एक तरफ विधानसभा सत्र बुलाने के लिए राजस्थान सरकार और राज्यपाल के बीच विवाद है, तो दूसरी तरफ बीएसपी ने व्हिप ज़ारी कर अपने विधायकों को संभावित विश्वासमत प्रस्ताव की स्थिति में कांग्रेस के ख़िलाफ वोट देने का आदेश दिया है. बीएसपी के इस फैसले का राजस्थान की सियासत पर क्या असर होगा यह जानने से पहले आपको यह बता देते हैं कि वह दरअसल होता क्या है? व्हिप वह लिखित आदेश है कि पार्टी के सदस्य एक महत्वपूर्ण वोट के लिए उपस्थित हों, या वे केवल एक विशेष तरीके से मतदान करें. भारत में सभी पार्टियां अपने सदस्यों को व्हिप जारी कर सकती हैं. पार्टियां व्हिप जारी करने के लिए अपने सदन के सदस्यों में से एक वरिष्ठ सदस्य की नियुक्ति करती हैं. इस सदस्य को मुख्य व्हिप कहा जाता है. व्हिप का उल्लंघन करने वाले सदस्य अयोग्य घोषित किए जा सकते हैं. लेकिन ऐसे सदस्यों का वोट गिना जाता है.
लेकिन यहां कांग्रेस सवाल उठा रही है कि बीएसपी का अपने विधायकों के लिए व्हिप जारी करना संवैधानिक तौर पर सही नहीं है क्योंकि यह विधायक कांग्रेस में विलय कर चुके हैं. बीएसपी के इस व्हिप ने कई क़ानूनी सवाल खड़े दिए हैं और दोनों पार्टियां अपने-अपने तर्क दे रही हैं. कांग्रेस का कहना है कि कांग्रेस में विलय होने के बाद ये विधायक कांग्रेस के हैं इसलिए बसपा उनके लिए व्हिप ज़ारी नहीं कर सकती. जबकि बीएसपी का तर्क है कि दल-बदल क़ानून (10वीं अनुसूची) के पैरा 4 के अनुसार राष्ट्रीय पार्टी जब तक विलय नहीं करती तब तक राज्य इकाई विलय नहीं कर सकती.
क्यों पेचीदा बन गया है यह मसला?
2019 में राजस्थान में बसपा के छह विधायकों ने कांग्रेस में विलय कर लिया था. विधानसभा चुनाव में बीएसपी के छह उम्मीदवार जीते थे- संदीप यादव, वाजिब अली, दीपचंद खेरिया, लखन मीणा, जोग्रेंद्र अवाना और राजेंद्र गुधा. लेकिन, सभी छह विधायकों ने सितंबर 2019 में कांग्रेस में एक समूह के रूप में विलय कर लिया. विधानसभा स्पीकर ने उनकी विलय की अर्जी पर आदेश दिया था कि इन छह विधायकों से कांग्रेस के सदस्य की तरह व्यवहार किया जाए. अपने विधायकों के इस फैसले से बीएसपी को उस समय कोई एतराज नहीं था लेकिन जैसे ही सचिन पायलट ने अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत की मायावती सक्रिय हो गईं. उन्हें मौका नजर आया और अब बीएसपी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने व्हिप ज़ारी कर छह विधायकों को कांग्रेस के ख़िलाफ़ वोट देने का आदेश दिया है.
बीएसपी ने पहले क्यों नहीं उठाए सवाल?
व्हिप में कहा गया है कि संविधान की दसवीं अनुसूची के पैरा चार के तहत पूरे देश में हर जगह समूची पार्टी (बसपा) का विलय हुए बगैर राज्य स्तर पर विलय नहीं हो सकता है. बीएसपी एक राष्ट्रीय पार्टी है इसलिए राज्य इकाई अकेले किसी अन्य पार्टी में विलय नहीं कर सकती. आप यहां सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है की ये छह विधायक किस पार्टी के हैं और बीएसपी का व्हिप इन विधायकों के लिए कितना बाध्यकारी है. यहां एक बात यह भी है कि बसपा ने विलय के समय इस पर कोई क़ानूनी आपत्ति नहीं जताई थी. हालांकि, राज्य सभा चुनावों के दौरान भी बसपा ने निर्वाचन आयोग से संपर्क किया था कि इन विधायकों को बसपा का माना जाए लेकिन तब आयोग ने ये कहते हुए दख़ल देने से इनकार कर दिया था कि यह विषय विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार क्षेत्र में आता है. तू अब सभी की निगाहें इस बात पर है कि मायावती के इस कदम का अशोक गहलोत सरकार पर क्या असर होगा? जानकारों का मानना है की व्हिप के उल्लंघन के बावजूद भी सदस्यों का वोट गिना जाता है. हालांकि, विधायकों की अयोग्यता की कार्रवाई शुरू की जा सकती है. इसमें भी बसपा विधानसभा स्पीकर से ही अपील कर सकती है.
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