कोरोना के समय में लू लगना कितना खतरनाक है और इससे बचे कैसे?
नौतपा चल रहा है कुछ जगहों पर पारा 50 के पार जा चुका है. देश की राजधानी दिल्ली में 25 मई का दिन 18 साल का सबसे गर्म दिन रहा. आप घर से बाहर निकलिए तो लू के थपेड़े आपको बेचैन करने लगते हैं. गर्मी इस बार कुछ ज्यादा ही खतरनाक है क्योंकि एक तरफ कोरोना का संक्रमण और दूसरी तरफ लू के थपेड़े, ऐसे में लू आपके लिए कुछ ज्यादा ही खतरनाक हो सकती है.
एक अनुमान के मुताबिक तेज़ लू लगने के बाद इसका पूरा इलाज कराने के बावजूद भी करीब 63 प्रतिशत मरीजों की मौत हो जाती है.
हमारे शरीर की यह तासीर है कि आसपास का वातावरण यदि गर्म हो तो वह पसीने की मात्रा बढ़ाकर और त्वचा द्वारा वातावरण की हवा में ताप के निरंतर उत्सर्जन से यह अतिरिक्त गर्मी शरीर से बाहर निकालता रहता है और हमें बाहर तेज गर्मी होने के बावजूद बुखार नहीं हो पाता.
लेकिन शरीर यह काम एक निश्चित सीमा तक ही कर सकता है. हमें एक घंटे में अधिकतम ढाई लीटर तक पसीना आ सकता है. फिर? यदि हम उसी भयंकर गर्मी में ही किसी कार्यवश खड़े रहें और उसी गर्म वातावरण में शारीरिक मेहनत का काम भी करते रह जाएं तो हमारे शरीर का यह सिस्टम, एक सीमा के बाद असफल होने लगता है. पसीना कम होने लगता है और त्वचा से हवा में ताप के उत्सर्जन की दिशा उल्टी हो जाती है. तब हमारे शरीर का तापमान पूरी तरह बाहर की तेज गर्मी के हवाले हो जाता है. ऐसे में हमें बुखार होने लगता है. शुरू में कम बुखार. फिर भी यदि आसपास की गर्मी में कोई बदलाव नहीं आए तो इस तेज गर्मी में शरीर के थर्मोस्टेट का पूरा सिस्टम फेल हो जाएगा और हमें इतना तेज बुखार हो जाएगा कि उसके असर में शरीर का हर सिस्टम फेल होने लगेगा. यही स्थिति तेज़ लू लगना या हीट स्ट्रोक कहलाती है. यहां आपको यह भी बताना जरूरी है कि हीट स्ट्रोक इतनी खतरनाक बीमारी है जिसके पूरे इलाज के बाद भी करीब 63 प्रतिशत लोग इससे मर जाते हैं.
अब इसी लू या हीट स्ट्रोक के बारे में कुछ बुनियादी बातें समझते हैं.
लू लगने का खतरा किन लोगों को ज्यादा रहता है?
यूं तो बेहद गर्म वातावरण में लगातार मेहनत का काम करते हुए किसी को भी लू लग सकती है, परंतु तेज गर्मी में लू लगने का सबसे ज्यादा खतरा इन लोगों को रहता है :
(1) बहुत छोटी उम्र वाले बच्चों को और बूढ़ों को – इनमें तापमान नियंत्रण का शारीरिक सिस्टम कमजोर होता है. बुढ़ापे में सारे अंग ही उस क्षमता के साथ काम नहीं कर पाते सो लू को बर्दाश्त करने की इनकी क्षमता भी बहुत कम होती है इसीलिए लू लगने पर ये लोग बड़ी जल्दी गंभीर रूप से बीमार हो जाते हैं.
(3) जिनको मोटापा हो.
(4) दिल के मरीज, खासकर जिनके हार्ट का पम्प कमजोर हो (हार्ट फेल्योर के केस)
(5) जो लोग किसी भी कारण से शारीरिक रूप से कमजोर हों.
(6) वे लोग जो ऐसी दवाएं ले रहे हों जो पसीने के सिस्टम, दिमाग के रसायनों, दिल तथा रक्त नलिकाओं आदि पर असर डालती हैं (एंटी हिस्टामिनिक, एंटी कोलिनर्जिक, मानसिक रोगों में इस्तेमाल होने वाली कुछ महत्वपूर्ण दवाइयां, बीटा ब्लॉकर्स, डाइयूरेटिक्स, एलएसडी-कोकीन आदि नशे की दवाइयां. और हां इनके साथ दारू भी.)
एकदम स्वस्थ युवा भी यदि तेज गर्मी में, देर तक, बिना ठीक से पानी और नमक लिए व्यायाम अथवा मेहनत करते चले जाए तो उन्हें ‘हीट एक्जॉशन’ से लेकर पूरा हीट स्ट्रोक तक कुछ भी हो सकता है. गर्म मौसम में दिनभर घूमना-फिरना, तेज धूप में दिनभर क्रिकेट खेलना, गर्मी में फिजिकल फिटनेस टेस्ट के लिये (पुलिस या फौज इत्यादि की नौकरी में) लंबी दौड़, मैराथन या हाफ मैराथन आदि में हम जब-तब यह होते देखते ही रहते हैं.
हल्की लू को इन लक्षणों से पहचानें –
(1) गर्मी में मेहनत करते हुए अचानक आंखों के सामने अंधेरा छाना और चक्कर खाकर गिर जाना
(2) मांसपेशियों में तेज ऐंठन (स्पाज्म)
(3) मांसपेशियों में बेइंतहा दर्द
(4) बड़ी बेचैनी, घबराहट और उत्तेजित होना या पागलों जैसा व्यवहार
(5) हल्का या तेज बुखार
(6) जी मितलाना, भयंकर प्यास, तेज सिरदर्द होना या बेहद कमजोरी लगना
यह आवश्यक नहीं है कि ये सारे लक्षण एक साथ मिलें. हां, हल्की लू के बारे में एक बात याद रहे. इसमें मरीज को पसीना आता रहता है. लू में जब तक मरीज को पसीना आ रहा हो, यह अच्छा लक्षण है. पसीना यह बताता है कि अभी-भी तापमान नियंत्रण का मैकेनिज्म काम कर रहा है.
लू से बचाव के लिए क्या करें?
- एक से पांच डिग्री के बर्फीले पानी से भरे बाथ टब में मरीज को गले तक डुबाकर रखना.
- या फिर मरीज के पूरे कपड़े उतार दें. उसे एक करवट से लिटा दें. उसके नंगे बदन पर ठंडे पानी (20 डिग्री सेल्सियस के आसपास) का स्प्रे डालें और तेज गति का बड़ा पंखा चलाते रहें.
- या फिर उसके पूरे कपड़े उतारने के पश्चात उसके नंगे बदन पर ठंडे पानी से भीगी पतली चादरें डालकर तेज पंखा चला दें.
स्पॉन्जिंग के अलावा यह भी करें :
(1) आइस केप में बर्फ भर लें. इस ठंडी आइस केप को शरीर पर चार जगहों पर रखें – मरीज के माथे और सिर पर, दोनों कांखों (एक्जिला) में, गले पर सामने की तरफ और दोनों जांघों के संधि स्थल पर, यानि जांघ और पेट के मिलने की जगह पर
(2) त्वचा की मालिश भी लगातार करते रहें
(3) मरीज यदि बहुत खराब हालत में आ रहा है (जहां बुखार न उतर रहा हो वहां) यदि सुविधा हो तो हम लोग ठंडे डायलाइजर द्वारा उसकी हीमोडायलेसिस भी करवा सकते हैं.
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