क्या खत्म होगा नौकरी मिलने का इंतजार ?
“श्याम बीते करीब तीन सालों से कानपुर में रहकर सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं.घर में आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि उनका खर्चा उठा सके इसलिए ट्यूशन पढ़ाकर अपना खर्चा निकालते हैं. श्याम कहते हैं कि पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने एक साल कोचिंग की और फिर खुद से ही पढ़ाई करते हैं. हजारों रुपये नौकरी के फार्म और इम्तिहान के लिए आने-जाने में बर्बाद हो गए लेकिन नौकरी नहीं मिली. वो कहते हैं कि अब तो लगता है कि नौकरी मिलेगी ही नहीं.”
श्याम जैसे करोड़ों युवा हैं जो नौकरी के इंतजार में हैं. सालों से सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं. नौकरी के लिए आवेदन करते करते थक गए हैं लेकिन नौकरी नहीं मिली. कई युवाओं की उम्मीद तो टूट चुकी है. कई ऐसे हैं जो हारने को तैयार नहीं हैं. कई युवाओं ने अपनी आजीविका चलाने के लिए कोई दूसरा रास्ता तलाश लिया है. लेकिन क्या नौकरी मिलने का इंतजार खत्म होगा.
बांबे स्टॉक एक्सचेंज और सेंटर फॉर मानिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने मार्च 2018 में एक रिपोर्ट जारी थी. ये रिपोर्ट बताती है कि देश में बेरोजगारी का औसत 6.23% हो गया है. गांवों में ये 5.95 और शहरों में 6.76% है. नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद नौकरियां और दूर हो गईं.
क्या कहते नौकरी से जुड़े आकंड़े ?
- बेरोजगारों की संख्या 1 करोड़ 86 लाख हो गई है.
- 2017 में 1 करोड़ 83 लाख बेरोजगारों की फौज थी.
- 2018 में बेरोजगारों की संख्या में 30 लाख का इजाफा.
- 2015 में सिर्फ एक लाख 35 हजार लोगों को नौकरी मिली
- हर दिन देश में साढ़े पांच सौ नौकरियां खत्म हो रही हैं
- भारत दुनिया का सबसे ज्यादा बेरोजगार देश बन गया है
- 11% आबादी यानी करीब 12 करोड़ लोग बेरोजगार हैं
- विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने से नहीं पैदा हुईं नौकरियां
करीब तीस लाख की बढ़ोतरी हुई है. केंद्रीय श्रम और रोजगार राज्यमंत्री ने संसद में जो आंकड़े दिए वो बताते हैं कि 2016 से देश में रोजगार के वास्तविक आंकड़ों को जानने के लिए कोई देशव्यापी सर्वे नहीं कराया गया. CMIE ने 2017 के शुरुआती चार महीनों को लेकर एक सर्वे कराया था इसमें पता चलता है कि नोटबंद के बाद 7 महीनों में करीब 15 लाख लोगों ने नौकरी गंवाई थी. संयुक्त राष्ट्र श्रम संगठन ने आशंका जताई थी कि 2018 में बेरोजगारी ज्यादा बढ़ी है. मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया और स्टार्टअप जैसी योजनाएं युवाओं को नौकरी देने के लिए शुरू हुईं थीं. इनके प्रचार-प्रसार पर करोड़ों रुपए खर्च भी किए गए, लेकिन बेरोजगारी दूर करने में ये योजनाएं कारगर साबित नहीं हो सकीं. हालात इतने खराब हो गए हैं कि उत्तर प्रदेश सचिवालय में चपरासी के मात्र 368 पदों के लिए 23 लाख आवेदन आए थे. नौकरियां इसलिए भी नहीं मिल रहीं क्योंकि 57% छात्रों के पास रोजगार प्राप्त करने का कौशल ही नहीं है. आंकड़े बताते हैं कि देश के 95% इंजीनियर डवलपमेंट के क्षेत्र में काम करने योग्य नहीं हैं.