PM मोदी क्यों चाहते हैं महागठबंधन का चेहरा हो ?

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कोलकाता में विपक्षी दलों के महासम्मेलन के बाद मोदी ने विपक्ष को घेरने की पूरी कोशिश की और बीजेपी के तमाम नेताओं ने एक सुर में कहा कि मोदी के खिलाफ सब एकजुट हुए हैं.  ममती बनर्जी ने 20 से ज्यादा पार्टियों के नेताओं को एक मंच पर लाकर एक बाद तो दिखा दी कि आगामी चुनाव में मोदी के किसी एक से नहीं बल्कि अलग अलग राज्यों में अलग अलग पार्टियों से टकराना पड़ेगा.

इस महासम्मेलन को जितनी भी क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं ने संबोधित किया सभी ने आम चुनावों में पीएम मोदी और बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को सत्ता से बाहर करने की अपील की. लेकिन एक बात साफ नहीं हुई कि महागठबंधन का नेता कौन होगा? यानी किसके नेतृत्व में महागठंधन चुनाव लड़ेगा ? हालांकि बीजेपी कई बार बिना नेतृत्व के महागठबंधन को घेरने के लिए कह चुकी है कि ये बना दुल्हे की बारात है. लेकिन बीजेपी के इस बयान पर अखिलेश यादव प्रतिक्रिया दे चुके हैं. उन्होंने कहा है,

कभी-कभी ये लोग हमें चिढ़ाने के लिए कहते हैं कि इनके पास दूल्हे बहुत हैं. हम तो कहते हैं कि हमारे पास दूल्हे ज्यादा हैं तो जो जनता तय करेगी वही बनेगा. पहले भी बना है, फिर एक बार नया प्रधानमंत्री बनेगा.”

दरअसल बीजेपी चाहती है कि महागठबंधन एक नेता घोषित करे जिससे की मोदी को किसी एक नेता से मुकाबला करना पड़े. मोदी यही चाहते हैं. लेकिन महागठंबधन की रणनीति ये है कि मोदी को चौतरफा घेरा जाए. मोदी चाहते हैं कि ये चुनाव राष्ट्रपति चुनावों जैसा हो जाए जिसमें चेहरे से चेहरा टकराए. 2014 में ऐसा ही हुआ था. इसका फायदा मोदी को हुआ. 2014 में मोदी के सामने राहुल गांधी थे और इसका नुकसान कांग्रेस को हुआ. 2019 में भी बीजेपी यही चाहती है कि एक चेहरा हो जिससे वो टकराएं. वो ये भी चाहते हैं कि वो चेहरा राहुल गांधी का हो.

प्रेज़िडेंशियल चुनावों की तर्ज पर अगर चुनाव होगा तो मोदी को इसका फायदा होगा. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों की कोशिश है कि वो बिना चेहरे के मैदान में उतरें क्योंकि इस रणनीति से मैदान मारने की संभावना बढ़ जाती है. छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने बिना चेहरे के चुनाव लड़ा और जीता. दलित, किसान और बेरोज़गारों और नोटबंदी-जीएसटी की नाराजगी को भुनाने के लिए विपक्ष कोशिश कर रहा है मोदी को एक एक करके सभी दल घेरें. शनिवार को ममता बनर्जी हों या अखिलेश यादव, उन्होंने यह सफ़ाई देने की कोशिश की कि वो मिलकर चुनाव में जाएंगे और अगर प्रधानमंत्री की बात है तो वो बाद में देखेंगे.

महासम्मेलन में एक बात तो साफ हो गई कि विपक्ष दलों ने ये राय बना ली है कि चुनाव बाद जो जितना ताकतवर होकर उभरेगा पीएम पद का उम्मीदवार वही होगा. सपा-बसपा-टीएमसी-डीएमके जैसे दल इसी रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं. लिहाजा चुनाव के बाद मिली सीटें तय करेंगी कि विपक्ष का पीएम कैंडिडेट कौन होगा. लेकिन बीजेपी बेचैन इसलिए हो रही है कि अगर नाम पहले आ जाए तो वो उसे चौरतफा घेरे के 2019 को फतेह कर लें.

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