क्या है किबुत्ज़ जिसकी इसराइल-हमास युद्ध में हो रही है सबसे ज्यादा चर्चा ?
इसराइल-हमास युद्ध: 7 अक्टूबर को हमास ने इसराइल पर जो अचानक हमले किए, उसके सबसे पहले निशाने पर कफ़र अज़ा, नहाल ओज़े और मेगान शहर आए. ये वो शहर हैं जहां से किबुत्ज़ रहते हैं।
हिब्रू में किबुत्ज़ का मतलब होता है किसान समुदाय. इसराइल में किबुत्ज़िम एक अनूठी जीवन शैली है, जो अपने समाजवादी और सख़्त लोकतांत्रिक प्रयोगों की वजह से बेहद क़ामयाब साबित हुई.
इस समुदाय का इतिहास एक देश के रूप में इसराइल की स्थापना से 4 दशक पहले शुरू होता है. इसराइल के गठन के दौरान इन्होंने सरकार को कई मोर्चों पर सहयोग किया.
किबुत्ज़ समुदाय की शुरुआत कुछ आदर्शवादियों ने एक ग्रामीण समूह के रूप में की थी. इनका मूल मंत्र था यहूदी लोगों के लिए स्थाई घर बनाने के साथ बेहतर दुनिया का निर्माण.
इस समुदाय ने यहूदी जीवन शैली को अनूठे तरीके से विकसित किया. इसमें लोग प्रार्थना से ज़्यादा ज़मीन से जुड़े होते हैं. इस तरह इस समुदाय ने इसराइल में धर्मनिरपेक्ष जीवन की भी बुनियाद रखी.
इस समुदाय के सदस्यों को किबुत्ज़निक कहा जाता है. इन्होंने मजबूत नागरिकों, कुशल किसानों और बहादुर सैनिकों में अपने विश्वास के जरिए ‘ज़ायोनिस्ट’ आदर्शों को मजबूत किया.
हालांकि इसराइल की कुल आबादी में इनकी तादाद हमेशा कम रही. लेकिन देश के सामाजिक ताने-बाने को मजबूत बनाने में इनकी भूमिका अहम रही.
किबुत्ज़ समुदाय की शुरुआत किनेरेट लेक के किनारे यहूदी राष्ट्रीय कोष की ज़मीन पर 1909 में हुई थी. तब ये इलाक़ा ओटोमॉन साम्राज्य के नियंत्रण में हुआ करता था.
इसी तरह डेगानिया में समुदाय के घरों की स्थापना पूर्वी यूरोप से आए 12 यहूदियों के समूह ने किया था. इनका सपना था ज़मीन पर काम करते हुए एक ऐसी वैकल्पिक जीवनशैली विकसित करने की, जिसमें असली बराबरी का बर्ताव और जीवन को नए मूल्यों से भरा जा सके.
इसके लिए इन्होंने पहले बहुमत के वोटों का इस्तेमाल करते हुए खुद को सभी अहम निर्णय लेने के काबिल बनाया. इस तरह इसने अपनी पहचान पुरानी यहूदी किसानों की बस्तियों से अलग बनाई.
बाद में कई और लोग इनकी दी गई मिसालों का पालन करने लगे.
इनमें से सबसे ख़ास बात है, पूरे समुदाय में हर कोई बराबर माना जाता है. हर कोई हर काम करता था और समुदाय की हर चीज़ पर हर किसी का हक़ होता था. यहां तक कि पर्सनल गिफ्ट में भी सबकी हिस्सेदारी थी.
इस समुदाय में हर काम की ख़ास अहमियत होती थी. इस अवधारणा ने काम की गरिमा ऐसे बढ़ाया कि किसी भी काम को ख़ास परिस्थिति या सामग्री से जोड़ना नहीं पड़े.
इसी तरह पूरे समुदाय में हर काम बारी-बारी से किए जाते थे. समुदाय में जिसे भी एक दिन का प्रशासक बनाया जाता था, वो अगले दिन सामूहिक भोजन कक्ष में बरतन भी धोता था.
इसी तरह समुदाय के हर किसी की ज़रूरतों को सामूहिक रूप से पूरा किया जाता था. इसमें घर से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य और मनोरंजन से लेकर साबुन, टूथब्रश और तौलिये तक सबकुछ सामूहिक होता था.
संपूर्ण बराबरी के आदर्श को बनाए रखने के लिए किबुत्ज़ लोग सामूहिक रसोई घर में खाना बनाते और खाते थे. कपड़े भी एक ही तरह के पहनते थे.
इसके साथ बच्चों की परवरिश, सांस्कृतिक और दूसरे सामाजिक कामों में भी साझी जिम्मेदारी दी जाती थी.
रेगिस्तानी इलाक़ा होने के नाते हालांकि यहां का मौसम खेती के अनुकूल नहीं था. पानी की कमी की वजह से जमीन अक्सर उजाड़ हो जाती थी. ऊपर से शुरुआती किबुत्ज़ लोगों में खेती-बाड़ी का अनुभव भी कम था. लेकिन अपनी मेहनत, लगन और नई तरक़ीबों की बदौलत ये रेगिस्तान को खुशहाल बनाने में क़ामयाब रहे.
समय के साथ किबुत्ज़ लोगों की किसानी का तरीका उन्नत होता गया. और देखते ही देखते ये कृषि को तकनीकि रूप से भी उन्नत उद्यम बनाने में सफल रहे.
1920 और 1930 का दशक आते आते तो किबुत्जु समुदाय ने पूरा का पूरा उद्योग खड़ा कर लिया. इसमें कपड़े से लेकर कई तरह के खाद्य पदार्थ, प्लास्टिक और धातुओं का उत्पादन होता था.
इसके साथ इन्होंने रेगिस्तान में सिंचाई की उन्नत तकनीक भी विकसित की.
ये इतनी बड़ी क़ामयाबी थी, कि इसराइल की आबादी में सिर्फ 2.5 फीसद हिस्सेदारी रखने वाला ये समुदाय देश के कुल कृषि उत्पादन में 33 फीसद का योगदान देने लगा.
इसी तरह उद्योगिक उत्पादन में भी 6.3 फीसद हिस्सेदारी अकेले किबुत्ज़ समुदाय की हो गई.
अगर राजनीतिक रूप से देखें, तो किबुत्ज़िम ने इसराइल में वैचारिक और बुनियादी विकास में योगदान देने के साथ श्रमिक आंदोलन की भी नींव रखी. साथ ही श्रमिक सरकारों के लंबे शासनकाल को भी सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई.
इसीलिए किबुत्ज़ आंदोलन को आधुनिक इसराइल के मुख्य आधार स्तंभों में से एक माना जाता है.
लेकिन किबुत्ज़ लोगों के आस-पास की दुनिया इतनी तेज़ी से बदलती गई, कि समुदाय के आदर्शवादियों के पास मौजूदा हालात से समझौता करने के सिवा और कोई चारा नहीं बचा.
इन्हें अपने कई बुनियादी आदर्शों को भी नए वक़्त के साथ बदलना पड़ा.
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