हिजाब पर हंगामा होने के पीछे इस्लाम का हाथ है या… ?
हिजाब पर हंगामा मचा हुआ है. कर्नाटक में हिजाब पहनने को लेकर छिड़ी बहस राजनीति के केंद्र में है. दरअसल मंगलवार को एक वायरल वीडियो की वजह से ये बहस गर्माई और अब इसे लेकर लगातार प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं.
हिजाब इस्लाम में जरूरी है लेकिन इसे लेकर इतना हंगामा क्यों मचा है. ये हंगामा शुरु हुआ एक वीडियो के वायरल होने के बाद जिसमें दिखता है कि मांड्या ज़िले के एक प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में हिजाब पहनी एक छात्रा अपनी बाइक पार्क कर क्लास की ओर बढ़ती है और एक भीड़ उसके पीछे लग जाती है. भगवा गमछा-पाटा ओढ़े और उग्र नारेबाज़ी करते लोग जय श्री राम के नारे लगाते हुए छात्रा की ओर बढ़ते हैं जिसके बाद वो भी जवाब में भीड़ की ओर पलटकर दोनों हाथ उठाकर अल्लाहु अकबर का नारा लगाने लगती है. इस वीडियो के वायरल होने के बाद लोग हिजाब को लेकर ना सिर्फ बहस कर रहे हैं बल्कि वो ये जानने की कोशिश भी कर रहे हैं कि आखिर ये छात्रा है कौन?
इस छात्रा का नाम मुस्कान है जो मैसूर-बेंगलुरु हाइवे पर स्थित पीईएस कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स, साइंस एंड कॉमर्स में बी. कॉम. द्वितीय वर्ष की छात्रा है. घटना के बारे में मुस्कान ने अख़बार इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ”मैं असाइनमेंट जमा करने जा रही थी, मेरे कॉलेज में घुसने से पहले ही कुछ छात्राओं को हिजाब पहनने के कारण परेशान किया गया था, वो रो रही थीं. मैं यहां पढ़ने आती हूं, मेरा कॉलेज मुझे ये कपड़े पहनने की इजाज़त देता है. भीड़ में सिर्फ़ 10 फ़ीसदी छात्र मेरे कॉलेज के लोग थे, बाक़ी सब बाहरी लोग थे. जिस तरह से वे बर्ताव कर रहे थे उसने मुझे परेशान किया और मैंने उसका जवाब दिया.” मगर उन्होंने कहा कि उन्हें कॉलेज के प्रिंसिपल और अन्य कर्मचारियों के अलावा उनकी हिंदू सहपाठियों का भी समर्थन मिला. मुस्कान ने कहा, ”मेरे कॉलेज प्रशासन और प्रिंसिपल ने कभी बुर्का पहनने से नहीं रोका. कुछ बाहरी लोग आकर हम पर दबाव बना रहे हैं, हमें रोकने वाले ये लोग कौन हैं? क्यों हमें इनकी बात सुननी चाहिए?”
हिजाब में इस्लाम जरूरी क्यों है?
एक रिपोर्ट के अनुसार हिजाब की शुरुआत महिलाओं की जरूरत के आधार पर की गई थी. इसका इस्तेमाल मैसापोटामिया सभ्यता के लोग करते थे. शुरुआती दौर में तेज धूप, धूल और बारिश से सिर को बचाने लिनेन के कपड़े का प्रयोग किया जाता था. इसे सिर पर बांधा जाता था. 13वीं शताब्दी में लिखे गए प्राचीन एसिरियन लेख में भी इसका जिक्र किया गया है. हालांकि, बाद में इसे धर्म से जोड़ा गया. इसे महिलाओं, बच्चियों और विधवाओं के लिए पहनना अनिवार्य कर दिया गया. इसे धर्म के सम्मान के प्रतीक के तौर पर पहचाना जाने लगा.
इसे सभी महिलाओं को पहनना अनिवार्य था लेकिन निम्न वर्ग की महिलाओं और वेश्याओं को सिर ढकने की मनाही थी. अगर ये इनका प्रयोग करती भी थीं तो सार्वजनिक तौर पर इनका अपमान किया जाता था या फिर इनकी गिरफ्तारी की जाती थी. फैशन के इतिहास की जानकारी रखने वाली न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी की हिस्टोरियन नैंसी डेयल का कहना है, धीरे-धीरे हिजाब को सम्मानित महिलाओं के पहनावे के तौर पर भी पहचाना जाने लगा. खासतौर पर इसका प्रचार उन क्षेत्रों में अधिक हुआ जहां किश्चियन और इजरायली मूल के लोग रहते थे. ये अपने बालों को ढककर रखते थे. इसकी जानकारी उनके पवित्र ग्रंथ में भी मिलती है.
लेखन फेगेह शिराजी ने अपनी किताब ‘द वेल अनइविल्ड: द हिजाब इन मॉडर्न कल्चर’ में लिखा है कि सऊदी अरब में इस्लाम से पहले ही महिलाओं में सिर को ढकने का चलन आम हो चुका था. इसकी वजह थी वहां की जलवायु. तेज गर्मी से बचने के लिए महिलाएं इसका इस्तेमाल करने लगी थीं. धीरे-धीरे हिजाब में कई तरह के बदलाव किए गए. इसे स्टाइलिश बनाया गया. अलग-अलग फैशन डिजाइनर्स ने इसे इतना आकर्षक बना दिया है कि जिन देशों में इसका चलन नहीं भी था वहां महिलाएं इसे खुद को खुबसूरत दिखाने के लिए पहनने लगीं.