शौचालय का शोर ज्यादा काम कम- रिपोर्ट
मोदी सरकार के कामकाज का आंकलन शुरू हो गया है. सरकार ने समय पूरा कर रही है ऐसे में सरकार की महत्वाकांक्षी योजना स्वाच्छ भारत मिशन के तहत जो कामकाज हुए उसका आंकलन करने का समय आ गया है. मोदी सरकार ने करीब चार साल पहले ये योजना शुरू की थी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 27 अब खुले में शौच से मुक्त हैं. सरकार का दावा है कि ये सरकार की बड़ी उपल्ब्धि है.
अब सवाल ये है कि क्या वाकई मोदी सरकार ने खुले में शौच की समस्या का समाधान कर दिया है? ये सवाल इसलिए अहम हो गया है क्योंकि ब़डे पैमाने पर इस योजना का प्रचार प्रसार सरकार ने किया. स्वच्छ भारत अभियान के पोर्टल पर अगर आप जाएं तो यहां दिए गए आंकड़े आपको सुकून देने वाले हैं. यहां पर बताया गया है कि
भारत के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 27 अब खुले में शौच से मुक्त यानि ओपन डिफीकेशन फ्री (ओडीएफ) हैं. इसमें बताया गया है कि भारत के 98.6 प्रतिशत घरों में शौचालय की सुविधा है.
सरकारी आंकड़ों को देखकर अगर आप रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कम्पैशनेट इकोनॉमिक्स यानी राइस के शोध का देंखे तो दोनों में जमीन आसमान का फर्क है. राइस की रिपोर्ट कहती है कि
बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में अभी भी 44 फीसदी ग्रामीण आबादी खुले में शौच करती है.
वहीं अगर आप सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो वहां ये बताया गया है कि बिहार के अलावा बाकी तीनों राज्य खुले में शौच से लगभग मुक्त हो चुके हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश ने ग्रामीण घरों की 100 फीसदी स्वच्छता कवरेज हासिल किया है. वहीं राइस का शोध कहता है कि ऐसा नहीं है तीनों ही राज्यों में शौचालय वाले घरों का अनुपात कम है.
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि बिहार में 92 फीसदी घरों में शौचालय हैं लेकिन राइस की रिपोर्ट में है कि यहां सिर्फ 50 फीसदी घरों में शौचालय है.
राइस ने इस शोध को करने के लिए बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तरप्रदेश और राजस्थान में 15 से ज्यादा घरों का सर्वे किया था. लेकिन जहां सरकारी आंकड़े कहते हैं कि यहां तीनों राज्यों में 100 फीसदी घरों में शौचालय हैं. वहीं राइस का शोध कहता है कि एमपी में 90, राजस्थान में 78 और उत्तर प्रदेश में सिर्फ 73 फीसदी घरों में शौचालय हैं. राइस की रिपोर्ट ये भी बताती है कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत लोगों में जागरुकता बढ़ी है.
2014 में 37 प्रतिशत ग्रामीण घरों में शौचालय थे जो कि 2018 में बढ़ कर 71 प्रतिशत हो गये हैं. ये कहना गलत नहीं होगा कि इस बढ़त का श्रेय स्वच्छ भारत मिशन को जाता है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि 2014 में जिन ग्रामीण घरों में शौच की व्यवस्था नहीं थी उनमें से 57 फीसदी ग्रामीण घरों में 2018 तक एक शौचालय बन गया. 42 फीसदी ग्रामीण घरों में सरकार ने शौचालय बनाने में मदद की.
एमपी, राजस्थान, बिहार और यूपी में 2014 के 70 फीसदी से घटकर 2018 में 44 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं. एमपी और यूपी में सबसे ज्यादा सुधान हुआ है.
राइस की रिपोर्ट में एक बात और सामने आई है. एससी एसटी वर्ग के 12 फीसदी लोगों ने कहा है कि उनके ऊपर जबरदस्ती की गई. शौचालय बनवाने या खुले में शौच करने के लिए धमकाया गया. राइस की रिपोर्ट कहती है कि सरकार ने सिर्फ शौचालय बनवा कर आंकड़े पूरे करने का काम किया. जबकि खुले में शौच रोकने के लिए बड़े पैमाने पर जागरुकता अभियान चलाकर लोगों को इसके बारे में बताना होगा और पानी की व्यवस्था, मल के निपटारे, का इंतजाम भी साथ में करना होगा, जहां तक सरकार की ओर से बनाए गए शौचालयों की बात है तो यूपी, एमपी, राजस्थान और बिहार में करीब 42 फीसदी शौचालय ऐसे हैं जिसमें जुड़वां गड्ढे हैं. बाकी शौचालय मानकों के विपरीत बनाए गए हैं.