यूपी चुनाव में किसान क्या योगी आदित्यनाथ को वोट देगा?
यूपी चुनाव में किसान का वोट सत्ता परिवर्तन की वजह बन सकता है इसलिए सभी पार्टियां किसानों को लुभाने में लगी हैं. ऐसे में सपा और भाजपा दोनों ही किसानों के लिए वादों का पिटारा खोल रहे हैं. लेकिन सच-झूठ का फर्क भी जरूरी है.
यूपी चुनाव से पहले बीजेपी और सीएम योगी खुद ये दावा कर रहे हैं कि 2014 से पहले किसान आत्महत्या करने को मजबूर थे. लाखों किसानों ने आत्महत्या कर ली थी. लेकिन 2014 के बाद, सरकार द्वारा किसान समर्थक नीतियां लागू करने के नतीज़े आए और अब किसान खुशहाल है. क्या ये दावा सही है और क्या वाकई किसानों की आत्महत्या के आंकड़े कम हुए हैं.
उत्तरप्रदेश के सीएम ने ये दावा लखनऊ में किसानों के एक कार्यक्रम में किया था. जनवरी में उन्होंने एक रैली के दौरान ये दावा किया था. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राज्य में किसानों की आत्महत्या के लिए पहले की सरकारें ज़िम्मेदार थीं. हालांकि आत्महत्याओं में ये कमी तब हुई, जब 2014 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने डेटा कलेक्शन के तरीक़ों में बदलाव कर दिया.
एनसीआरबी ने अब खेती से जुड़े लोगों की आत्महत्याओं के मामलों को ‘किसान’ और ‘खेतिहर मज़दूर’, इन दो अलग-अलग समूहों में दर्ज़ करना शुरू कर दिया है. वहीं जिन किसानों के पास ज़मीन का कोई मालिकाना हक़ नहीं है, वे अभी तक इन आंकड़ों का हिस्सा नहीं बनते.
‘किसान’ वे हैं जो खेतों में काम करने के साथ ही खेती करने के लिए मज़दूरों को भी काम पर रखते हों. इस तरह किसान की नई परिभाषा से ‘खेतिहर मज़दूर’ और ‘भूमिहीन श्रमिक’ बाहर हो गए.
एनसीआरबी
उत्तर प्रदेश में खेती से जुड़े लोगों के आत्महत्या करने के मामले 2012 और 2013 में लगभग 745 और 750 थे. 2014 के बाद आत्महत्याओं के ये मामले 100 से भी कम हो गए. वहीं 2017 में 110 और 2019 में 108 लोगों ने आत्महत्या की.
एनसीआरबी
देश भर की बात करें तो 2013 में 11,774 ‘किसानों’ ने आत्महत्या की थी. वहीं 2014 में नए तरीक़े से वर्गीकरण होने के बाद ‘किसानों’ की आत्महत्याओं के मामले घटकर महज 5,650 रह गए, जबकि खेती से जुड़े 12,360 लोगों ने उस साल आत्महत्या की थी.
वैसे किसानों की आत्महत्याओं की मुख्य वजह अभी भी कर्ज़ का बोझ, घरेलू समस्याएं और फसल की बर्बादी है. यूपी चुनाव के दौरान किसानों के वोटों पर सभी की नजर है और सभी पार्टियों खुद को किसान हितैषी साबित करने में लगी हुई हैं. लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि किसानों की हालत खराब है और इसके लिए मौजूदा सरकार के साथ-साथ पुरानी सरकारें भी जिम्मेदार हैं.
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