नर्क का दरवाजा (Gateway to Hell) कहां है और क्यों बनाया जा रहा है उसे बंद करने का प्लान?
नर्क का दरवाजा (Gateway to Hell) को बंद करने का प्लान बनाया जा रहा है. तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति ने इसे बुझाने के आदेश दिए हैं.
नर्क का दरवाजा (Gateway to Hell) एक बड़ा सा गड्ढा है जो तुर्कमेनिस्तान के उत्तर में मौजूद है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि तुर्कमेनिस्तान एक ऐसा देश है जिसके 70 फ़ीसदी हिस्से में काराकुम रेगिस्तान मौजूद है. करीब साढे तीन वर्ग किलोमीटर में फैले इस रेगिस्तान के उत्तर में मौजूद है यह नर्क का दरवाजा. एक गड्ढा है जिसको गेट क्रिएटर कहते हैं.
नर्क का दरवाजा सालों से धधक रहा है
69 मीटर चौड़े और 30 मीटर गहरे इस गड्ढे में कई दशकों से आग धधक रही है. जानकार कहते हैं कि इस आग का कारण मीथेन गैस है और अब तुर्कमेनिस्तान की सरकार इस आग को बुझाना चाहती है यानी इस गड्ढे को बंद करना चाहती है. राष्ट्रपति गुरबांगुली बर्डीमुखामेदोव चाहते हैं कि इसे पर्यावरण और स्वास्थ्य कारणों के साथ-साथ गैस निर्यात बढ़ाने के प्रयासों के रूप देखा जाए.
क्या है गेटवे टू हेल का इतिहास?
स्थानीय लोग और कई जानकारियां मानते हैं कि 1971 में नर्क का दरवाजा खुला था. साल 1971 में सोवियत संघ के भू-वैज्ञानिक काराकुम के रेगिस्तान में कच्चे तेल के भंडार की खोज कर रहे थे. यहां एक जगह पर उन्हें प्राकृतिक गैस के भंडार मिले, लेकिन खोज के दौरान वहां की ज़मीन धंस गई और वहां तीन बड़े-बड़े गड्ढे बन गए.
इस गड्ढों से मीथेन के रिसने का ख़तरा था जो वायुमंडल में घुल सकता था. एक थ्योरी के अनुसार इसे रोकने के लिए भू-वैज्ञानिकों ने उनमें से एक गड्ढे में आग लगा दी. उनका मानना था कि कुछ सप्ताह में मीथेन ख़त्म हो जाएगी और आग अपने आप बुझ जाएगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं और आज कई दशकों बाद भी यह आग जल रही है.
लेकिन यह जानकारी भी अधूरी है क्योंकि कुछ जानकार इस थ्योरी से बात नहीं रखते. इसलिए अभी उन तथ्यों की पड़ताल हो रही है कि आखिर कब से तुर्कमेनिस्तान के इस गेटवे टू हेल में आग जल रही है. तुर्कमेनिस्तान के भू-वैज्ञानिकों के अनुसार ये विशाल गड्ढा वास्तव में 1960 के दशक में बना था लेकिन 1980 के दशक में ही इसमें आग लगी.
टूरिस्ट स्पॉट बन गया है गेटवे टू हेल
तुर्कमेनिस्तान में जाने वाले लोगों के लिए नर्क का दरवाजा पर्यटन का केंद्र है. यहां हर साल हजारों की तादाद में टूरिस्ट इस आपको देखने आते हैं. लेकिन अब तुर्कमेनिस्तान की सरकार इस आग को बुझाने की प्लानिंग कर रही है. हालांकि इससे पहले भी आग को बुझाने की कई कोशिशें की जा चुकी हैं. इससे पहले साल 2010 में भी राष्ट्रपति ने विशेषज्ञों को आग बुझाने के लिए उपाय खोजने का आदेश दिया था.
हालांकि इसके बाद साल 2018 में राष्ट्रपति ने आधिकारिक तौर पर इसका नाम बदलकर ‘शाइनिंग ऑफ़ काराकुम’ रख दिया था. तुर्कमेनिस्तान की सरकार का आंकड़ा है कि सालाना करीब 6000 लोग मीथेन से चलने वाली आग का दीदार करने आते हैं.
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