बॉडी बनाने के लिए आजकल युवा किसी भी हद तक जा रहे हैं. बढ़िया मस्कुलर और गठीला बदन पाने के लिए न सिर्फ Gym में ज्यादा वजन उठा रहे हैं बल्कि protein powder का भी सेवन कर रहे हैं.
बॉडी बनाने के लिए (body banane ke liye) हमें क्या करना चाहिए. जिम में कैसे एक्सरसाइज करनी चाहिए और किन चीजों का सेवन करना चाहिए. इस बात की जानकारी अगर हमें नहीं है तो इससे हमारी सेहत को बहुत नुकसान हो सकता है. Weight training या strength training जिम में एक्सरसाइज करने वालों के लिए बहुत जरूरी है. लेकिन बहुत से लोग जो जिम में पसीना बहाते हैं उन्हें यह नहीं पता कि शरीर को मजबूत और सुडौल बनाने के लिए कितना और कैसे वजन उठाया जाए.
Weight aur strength training ke fayde (वजन उठाने के लाभ)
‘स्ट्रेंथ ट्रेनिंग’ के बहुत सारे लाभ भी हैं. दूसरे फ़ायदों के अलावा ये संतुलन बनाए रखने के लिए अच्छा है. जोड़ों के दर्द में यह मदद कर सकता है. उम्र बढ़ने के साथ-साथ मांसपेशियों में जो ढीलापन आने लगता है, उसे भी ये कम कर सकता है. वज़न कम करने में भी यह मददगार हो सकता है. समस्या यह है कि कितना वज़न उठाना चाहिए, इसे लेकर बहुत सारे परस्पर विरोधी सलाह और मशवरे हैं.
powerlifting को लेकर अलग-अलग लोगों की अलग-अलग रहा है. पावर लिफ़्टर कभी-कभी कहते हैं, ‘भारी उठाओ वर्ना घर जाओ.’ जबकि दूसरी सलाह के मुताबिक़ हल्का वज़न उठाने से मांसपेशियों को कसावट और आकार मिलता है. अब सवाल ये है कि हमें भारी वज़न उठाना चाहिए या हल्का?
Weightlifting या पावर लिफ्टिंग से जुड़ा रिसर्च
बॉडी बनाने के लिए वजन उठाने से जुड़ा एक महत्वपूर्ण रिसर्च हुआ है. कनाडा की मैकमास्टर यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर स्टुअर्ट फ़िलिप्स के रिसर्च ग्रुप के साल 2016 के एक अध्ययन के मुताबिक़, हल्का वज़न उठाकर आप उतना ही फ़ायदा हासिल कर सकते हैं जितना आप भारी वज़न उठाकर हासिल करना चाहते हैं. यकीनन आपके दिमाग में यह सवाल उठ रहा होगा कि रिसर्च है इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचे के कम वजन उठाने से भी बॉडी बनाई जा सकती है.
इस शोध के दौरान 49 ‘वेट ट्रेनर्स’ के दो ग्रुप बनाए गए और 12 हफ़्तों का प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया. हर एक प्रतिभागी के लिए उन्होंने ‘वन-रिपिटीशन मैक्सिमम’ या 1RM रखा यानी कि कोई शख़्स कितना भारी वज़न उठा सकता है. उसके बाद उन्होंने इसे दो समूहों में विभाजित कर दिया. पहला समूह जो अपने RM का 30-50% ही उठाता था. दूसरे समूह ने RM का 75-90% वज़न उठाया. मुख्य बात ये थी कि हर एक समूह ने अपने-अपने वज़न को अपनी पूरी सीमा तक उठाया. दूसरे शब्दों में कहें तो उन्होंने तब तक उठाया जब तक कि उनमें और अधिक वज़न उठाने की ताक़त नहीं बची.
असफलता का सामना किसी को भी करना पड़ सकता है. चाहे वो कितने ही मज़बूत क्यों न हों. हल्का वज़न उठाने वाले समूह ने भारी वज़न वालों की तुलना में 20 से 25 बार भार उठाया. जबकि भारी वज़न वाला समूह ये काम 8 से 12 बार ही कर पाया.
वजन उठाते वक्त हमें थकान क्यों होती है?
अक्सर जिम में हमारे ट्रेनर हमसे कहते हैं कि अगर बॉडी बनानी है तो वजन ज्यादा उठाना होगा लेकिन कनाडा की यूनिवर्सिटी की शोध इससे इत्तेफाक नहीं रखती. ज्यादा वजन उठाते वक्त मांसपेशियों के असफल होने के पीछे ‘मोटर यूनिट्स’ का अहम किरदार है. ‘मोटर यूनिट्स’ तंत्रिका द्वारा नियंत्रित मांसपेशी तंतु (मसल फ़ाइबर) के बंडल होते हैं. जब आप वज़न उठाते हैं तो मांसपेशियों को सिकोड़ने के लिए मोटर यूनिट्स की ज़रूरत होगी.
हर बार जब आप वज़न उठाते हैं तो कुछ मांसपेशियां थक जाएंगी. अगली बार वज़न उठाने के लिए ज़्यादा मोटर यूनिट्स की ज़रूरत होगी. जल्द ही आपके पास मौजूद सभी मोटर यूनिट्स थक जाएंगी और यही वजह है कि आपकी मांसपेशियां वज़न नहीं उठा पाएंगी. इसलिए शोध का निष्कर्ष यह है कि कम वज़न अधिक बार उठाने और भारी वज़न कम बार उठा पाने से कोई ख़ास फर्क़ नहीं पड़ता. हाल ही में हुए शोध के निष्कर्ष इसी ग्रुप द्वारा की गई पुरानी स्टडी से मेल खाते थे.
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इसका मतलब ये है कि आप भारी वज़न या हल्का वज़न उठाकर भी नतीजे हासिल कर सकते हैं. शर्त ये है कि आप अपनी मांसपेशियों को सामान्य से अधिक काम करने दें. आपको नतीजे तक पहुंचने के लिए हमेशा तब तक वज़न उठाते रहने की ज़रूरत नहीं है, जब तक आप थक नहीं जाते. ज़रूरत है कि आपकी मांसपेशियों उससे अधिक काम करें जितना वो सामान्य तौर पर दिन भर में करती हैं.
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