मेडिकल शिक्षा में यूपी बन रहा उत्तम प्रदेश

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एस. हनुमंत राव

नौ नए मेडिकल कॉलेज की सौगात मगर चुनौतियां बरकरार

मेडिकल शिक्षा में उत्तर प्रदेश नए आयाम गढ़ रहा है | प्रदेश की योगी सरकार ने इस सत्र यानी वर्ष 2020-21 से 9 नए मेडिकल कॉलेजों में 900 यूजी मेडिकल सीट की सौगात दी है| अगले सत्र से उत्तर प्रदेश में 13 से 14 नए मेडिकल कॉलेज खुलने की पूरी संभावना है | यूपी सरकारी मेडिकल कॉलेज की संख्या के मामले में अर्धशतक लगाने की ओर तेजी से अग्रसर है | मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस विषय में जबरदस्त संकल्प दिखाया है | इसके लिए चाहे बजटीय प्रावधान हो या शिक्षक और स्टाफ की नियुक्ति हर मामले में प्रदेश सरकार ने चुस्ती और फुर्ती दिखाई है | इतना कुछ होने के बाद भी उत्तर प्रदेश में मेडिकल शिक्षा की तमाम चुनौतियां अब भी बरकरार हैं | 

एक जिला एक मेडिकल कॉलेज से आगे सोचना होगा

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का संकल्प है कि उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिले में एक मेडिकल कॉलेज हो | उनका यह संकल्प जल्द पूरा होता हुआ दिख रहा है | अगले सत्र में 13 से 14 नए सरकारी मेडिकल कॉलेज से इतर 16 नए मेडिकल कॉलेज भी पीपीपी मॉडल पर प्रस्तावित हैं | उत्तर प्रदेश जैसे विशाल आबादी वाले राज्य में यह संख्या भी भविष्य में कम पड़ेगी | देश के ही कुछ राज्य जैसे आंध्र प्रदेश,तेलंगाना आदि प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में कम से कम एक मेडिकल कॉलेज का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं | आंध्र प्रदेश में वर्तमान में 13 जिलों में 13 सरकारी मेडिकल कॉलेज संचालित हैं | अगले 2 वर्ष में 16 नए सरकारी मेडिकल कॉलेज बनकर तैयार हो जाएंगे | आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 25 सीटें हैं और मेडिकल कॉलेज की संख्या बढ़कर 29 हो जाएगी | जबकि 20 प्राइवेट मेडिकल कॉलेज वहां पहले से ही खुले हुए हैं| इसी तरह के लक्ष्य को लेकर तेलंगाना भी आगे बढ़ रहा है | इस लिहाज से उत्तर प्रदेश की सरकार को भविष्य में कम से कम 100 सरकारी मेडिकल कॉलेज का लक्ष्य लेकर चलना चाहिए | सरकार का यही संकल्प रहा तो यह लक्ष्य नामुमकिन नहीं है | उत्तर प्रदेश में अभी कुल दो एम्स हैं | एक अवध क्षेत्र यानी रायबरेली में और दूसरा पूर्वांचल यानी गोरखपुर में | उत्तर उत्तर प्रदेश की विशाल आबादी को देखते हुए कम से कम दो और एम्स खोलने चाहिए| एक बुंदेलखंड और दूसरा एम्स पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खोला जाए तो क्षेत्रीय संतुलन के लिहाज से यह एक उत्तम कदम होगा | प्रदेश सरकार को इस बाबत केंद्र से अविलंब खतो- किताबत करनी चाहिए | 

यूपी में नीट की हाई कटऑफ का समाधान क्या हो

उत्तर प्रदेश के नीट यानी नेशनल एलिजिबिलिटी एंट्रेंस टेस्ट में अभ्यर्थी कुल 720 में 600 से ज्यादा नंबर लाने के बावजूद इस बात के लिए आशंकित रहते हैं कि उन्हें सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल सकेगा या नहीं | सामान्य और ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों का कट- ऑफ पिछले वर्ष 605 नंबर से भी ज्यादा था |इस बार 900 सीटों की अतिरिक्त सौगात मिलने से यह कट-ऑफ 600 नंबर से थोड़ा नीचे आने की उम्मीद है | लेकिन यह कट-ऑफ देश के कई अन्य राज्यों के कट-ऑफ से काफी ज्यादा है | कई राज्यों में सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी 520 से 530 नंबर लाकर भी अपने राज्यों में आराम से सरकारी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन ले लेते हैं | इन राज्यों में ओबीसी और अन्य वर्गों का कट-ऑफ तो 500 नम्बर से भी नीचे जता है | जबकि उत्तर प्रदेश में 600 नंबर लाने वाला अभ्यर्थी भी प्रवेश से वंचित हो जाता है| प्रदेश की सरकार मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों की इस समस्या से निश्चित रूप से वाकिफ होगी | तभी ताबड़तोड़ तरीके से नए मेडिकल कॉलेज खोले जा रहे हैं | जिससे उत्तर प्रदेश के प्रतिभाशाली छात्र मेडिकल शिक्षा से वंचित ना रहे और प्रदेश का हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर गुणवत्तापूर्ण तरीके से बेहतर हो  लेकिन इस दिशा में कुछ त्वरित कदम भी उठाने की जरूरत है |

देश के कई राज्यों में प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की 50% सीट वहां के राज्य सरकारों ने अपने अधीन ले रखी हैं | यह सीट केवल राज्य के डोमिसाइल या मूलनिवासी अथवा स्थाई निवासी को ही मिलती हैं |

इन कॉलेजों की 50% सीट की फीस लगभग सरकारी मेडिकल कॉलेज के फीस के बराबर होती है | शेष 50 प्रतिशत सीट मैनेजमेंट कोटा सीट कहलाती हैं | जिनमें 35% सीट ओपन होती हैं इसमें किसी भी राज्य का विद्यार्थी प्रवेश ले सकता है | शेष 15% सीट एन आर आई विद्यार्थी के लिए आरक्षित होती है | यदि पर्याप्त संख्या में एन आर आई विद्यार्थी नहीं मिले तो यह सीट भी ओपन कोटा में भरी जाती हैं | सरकार के अधीन 50% सीटों पर फीस लगभग रुपये साठ हज़ार प्रतिवर्ष होती है | जोकि किसी भी आय वर्ग के मेडिकल छात्रों के लिए अफोर्डेबल होती है | ओपन सीट की फीस लगभग 14 से 15 लाख प्रति वर्ष और एन आर आई  सीटों पर फीस लगभग 24 से 36 लाख प्रति वर्ष होती है | इस व्यवस्था से प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की सीट भी पूरी तरह से भर जाती है और उनका वित्तीय प्रबंधन भी गड़बड़ नहीं होता | जबकि उत्तर प्रदेश के प्राइवेट कॉलेज में सभी सीटों पर फीस 17 से 18 लाख बैठती है जोकि मेधावी किंतु अल्प या मध्यम आय वर्ग के छात्रों के पहुंच से बाहर होती है | यदि उत्तर प्रदेश की सरकार इसी सत्र से प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की कम से कम 50% सीट सरकार के नियंत्रण में लेकर कम फीस पर मेधावी अभ्यर्थियों को प्रवेश देने की व्यवस्था कर दे तो न केवल कई मेधावी छात्रों का भला होगा बल्कि प्रदेश को अच्छे डॉक्टर भी मिलेंगे | मुझे लगता है प्रदेश के डीजीएमई या प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा को इस मामले में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों के मॉडल का अध्ययन कर प्रदेश सरकार को एक प्रस्ताव तत्काल देना चाहिए | जिससे प्राइवेट कॉलेज में मेधावी छात्रों के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त हो | प्राइवेट मेडिकल कॉलेज को भी इस व्यवस्था से विशेष वित्तीय नुकसान नहीं होगा बल्कि एन आर आई  अभ्यर्थियों से मिलने वाली मोटी फीस उनकी वित्तीय व्यवस्था को और मजबूत करेगी | उनकी सीट भी पूरी भरेंगी | यह बात भी विचारणीय है कि प्रदेश सरकार को एक नया मेडिकल कॉलेज बनाने के लिए भारी-भरकम राशि का निवेश करना पड़ता है | इसके बजाय यदि प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की 50% सीट अपने अधीन लेकर उस पर फीस की सब्सिडी या विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति दी जाए तो यह सरकार के लिए भी फायदे का सौदा होगा । इस संदर्भ में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की चिकित्सा शिक्षा प्रवेश प्रणाली का अध्ययन करना समीचीन रहेगा | इस सत्र में यूजी मेडिकल प्रवेश में अभी लगभग एक माह का समय शेष है अतः सरकार और प्रशासनिक अधिकारी चुस्ती फुर्ती दिखाएं तो यह व्यवस्था इसी सत्र से लागू हो सकती है | 

यूजी मेडिकल शिक्षा के साथ साथ पीजी पर भी हो नजर

उत्तर प्रदेश में यूजी मेडिकल की सीटों में गत वर्षो में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है | यह बेहद प्रशंसनीय है | लेकिन देखा जाए तो यूजी के सापेक्ष पीजी की सीटों का प्रतिशत उत्तर प्रदेश में बेहद कम है | कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु आदि राज्यों में जितनी यूजी की सीट हैं उसके अनुपात में उनके यहां लगभग 50% या उससे थोड़ा अधिक पीजी की सीटें हैं | इससे पीजी मेडिकल शिक्षा और यूजी मेडिकल शिक्षा का संतुलन बना रहता है | जबकि उत्तर प्रदेश में यूजी सीटों के अनुपात में पीजी सीटों की संख्या 40% से भी कम है | मेडिकल शिक्षा में विस्तार कार्यक्रम में इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि यूजी सीटों के सापेक्ष पीजी की सीट भी तेजी से बढ़े और उत्तर प्रदेश को ज्यादा से ज्यादा एम्स और विश्वस्तरीय पीजी इंस्टीट्यूट मिले | यदि इस दिशा में सही तरीके से काम हुआ तो आने वाले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश देश ही नहीं दुनिया में एक बड़े मेडिकल हब के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब होगा | यहां के मानव संसाधन का लोहा पूरी दुनिया मानती है | 

फैकल्टी की कमी से कैसे निपटें

उच्च स्तरीय मेडिकल शिक्षा की ओर कदम बढ़ा रही प्रदेश सरकार की एक बड़ी चिंता नए मेडिकल कॉलेज में अच्छी फैकल्टी की व्यवस्था या भर्ती को लेकर भी है | यह समस्या यूजी शिक्षा के साथ-साथ पीजी शिक्षा में भी है | सरकार ने 70 वर्ष तक के अनुभवी प्रोफेसर्स को कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्ति देकर इसका समाधान निकालने की पूरी कोशिश की है | लेकिन अभी योग्य फैकल्टी की कमी पूरी नहीं हो पा रही है | यह मेरी समझ से परे है कि हम अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाने वाले विदेशी प्रोफेसर्स को अनुबंध के आधार पर अपने यहां पढ़ाने के लिए आमंत्रित करने से परहेज क्यों करते हैं | कई ऐसे विशेषज्ञता के क्षेत्र हैं जहां अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाने वाले विदेशी शिक्षक हमारे लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकते हैं | अगर हम विदेशी कोच की मदद से ओलंपिक में मेडल जीत सकते हैं तो विदेशी शिक्षकों की मदद से देश में अच्छे डॉक्टर क्यों नहीं बना सकते | जब हम इस मामले में आत्मनिर्भर हो जाए तो इस व्यवस्था पर पुनर्विचार किया जा सकता है | लेकिन फिलहाल तो यह जरूरी है कि हम मेडिकल शिक्षा के कुछ क्षेत्रों में विदेशी चिकित्सकीय शिक्षकों की भरपूर मदद लेने में कोई परहेज न करें | भविष्य में जब हमारे पास पर्याप्त उच्च डिग्रीधारी डॉक्टर बन चुके होंगे तो वही हमारे भविष्य के शिक्षक भी होंगे | एक बात और गौर करने वाली है की यदि हमारे प्रदेश में मेडिकल शिक्षा का स्तर सुधरता है तो भविष्य में प्रदेश चिकित्सा के क्षेत्र में न केवल अपनी धाक कायम कर चिकित्सा प्रदान करते हुए विदेशी मुद्रा कमाने का एक बड़ा जरिया बनाएगा बल्कि हमारी आवश्यकता पूरी होने के बाद मेडिकल शिक्षा का क्षेत्र भी विदेशी छात्रों के लिए खोला जा सकता है | जो पुनः विदेशी मुद्रा के आने का एक बड़ा साधन बनेगा | विदेशी और एन आर आई  छात्रों की फीस को अधिक रखकर हम उससे होने वाली अतिरिक्त आय से अपना हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर निरंतर सुधार सकते हैं |  इस अतरिक्त आय का उपयोग प्रदेश के मेधावी छात्रों को फीस सब्सिडी या स्कॉलरशिप देने में भी किया जा सकता है |

राजनीतिक विरोध बेमानी

विगत दिनों यह देखने में आया कि जब माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में 9 मेडिकल कॉलेजों का लोकार्पण किया तो कुछ एक मेडिकल कॉलेज की फोटो को ट्वीट कर पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव और उनकी पार्टी के कुछ नेताओं ने आधे अधूरे निर्माण का हवाला देकर तंज कसे | यह नितांत गैर जरूरी था | आज प्रदेश में 9 नए मेडिकल कॉलेजों को स्वीकृति मिलने से 900 मेधावी छात्रों को प्रवेश मिल सकेगा | जिसमें हर वर्ग और जाति का छात्र होगा | कोई भी नया मेडिकल कॉलेज सत्र शुरू होने और अगले एक-दो वर्षों में समस्त संसाधन जुटा लेता है | शुरुआत की छोटी मोटी दिक्कतों को नजरअंदाज करना ही ज्यादा ठीक होगा | एक उदाहरण देना चाहूंगा कि जब एम्स मंगलागिरी का काम अधूरा रह गया था तो आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने दूरदर्शिता दिखाते हुए विजयवाड़ा के सिद्धार्थ मेडिकल कॉलेज में अस्थाई निर्माण करा कर एम्स मंगलागिरी की  सत्र 2018-19 से पढ़ाई शुरू करा दी | 2 वर्ष बाद बिल्डिंग का लगभग 80% कार्य पूरा होने पर यानी सत्र 2020-21 से छात्रों को एम्स मंगलागिरी की मूल बिल्डिंग में शिफ्ट किया गया | लेकिन इस निर्माण के दौरान एम्स में 2 बैच  एडमिशन लेने में सफल रहे | इससे भी मजेदार और ताजा उदाहरण एम्स मदुरई का है | अभी एम्स की मात्र जमीन अधिग्रहित की गई है | एम्स मदुरई सन 2026 में बनकर तैयार होगा लेकिन तमिलनाडु के वर्तमान मुख्यमंत्री एम के स्टालिन लगातार इस बात के लिए प्रयास कर रहे हैं कि इसी सत्र से एम्स मदुरई में प्रवेश प्रक्रिया को एनएमसी द्वारा हरी झंडी मिल जाए | वह इस बात के लिए तैयार हैं कि एम्स के छात्रों को प्रदेश के ही दूसरे किसी प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज से तब तक के लिए संबद्ध कर दिया जाएगा जब तक एम्स मदुरई की बिल्डिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर पूरा नहीं हो जाता | उत्तर प्रदेश में तो लगभग 9 मेडिकल कॉलेज पूरी तरह तैयार हो चुके हैं कुछ काम शेष रह भी गया तो राजनैतिक व्यक्तियों को ऐसे मामलों पर उदारता पूर्ण रवैया अपनाना चाहिए | फिर अखिलेश यादव तो खुद भी एक संजीदा मुख्यमंत्री रहे हैं और उनके कार्यकाल में भी कई महत्वपूर्ण मेडिकल कॉलेजों की नीव पड़ी और उन्हें पूरा भी किया गया| महज राजनीतिक विरोध के लिए अगर विरोध होगा तो प्रदेश हर मेडिकल कॉलेज के हिसाब से लगभग सौ डॉक्टर प्रतिवर्ष खोएगा और चिकित्सा की कमी से हजारों मरीज प्रभावित होंगे| कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश मेडिकल एजुकेशन और इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में कायाकल्प की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है | चुनाव के बाद भी बनने वाली सरकार इसे और द्रुतगति देगी ऐसी उम्मीद और जरूरत है | 

 (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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